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Papaya Farming: रेड लेडी पपीते की खुशबू से गुलजार हुई चंपारण की फिजां, एक लाख खर्च कर किसान कमा रहे 10 लाख

Papaya Farming पपीते की खूबी है कि इसमें आम के साथ पपीते का स्वाद होता है. पूरी तरह से पकने के बाद ही इसे व्यपारियों को दिया जाता है. पकने के बाद यह 10 से 12 दिनों तक खराब भी नहीं होता. इसको कार्बाइट से पकाने व कोल्ड स्टोरेज करने का भी झंझट नहीं है.

बिहार के पूर्वी चंपारण का पीपराकोठी का क्षेत्र पपीते की उन्नत प्रभेद रेड लेडी (red lady papaya) की खुशबू से गुलजार हो रहा है. पपीते की यह उन्नत प्रभेद चंपारण के खेतों में लहलहाती देखी जा रही है. उद्यान विभाग व केविके ने बीज जिले के किसानों को उपलब्ध कराया  है. वहीं, जिला उद्यान की ओर से बगवानी मिशन के तहत किसानों को सब्सिडी उपलब्ध करायी गयी है. यह दस माह में फल दे रहा है.

क्षेत्र के पडरौलिया गांव के सेना से रिटायर्ड राजेश कुमार ने दो एकड़ में पिछले वर्ष रेड लेडी पपीता को लगाया. पहले एक एकड़ में ही लगाया. उन्हें तकनीकी परामर्श केविके से मिला.  दस माह में ही अच्छे फल का उत्पादन होना आरंभ हुआ. वह एक लाख की लागत से खर्च कर दस लाख रुपये का उत्पादन कर चुके हैं. कहा कि इसकी क्यारियों के बीच अदरख व फिर बकला का उत्पादन किया जा सकता है. वह करीब 80 हजार रुपये का हुआ.

रेड लेडी की ये है खासियत

पपीते की खूबी है कि इसमें आम के साथ पपीते का स्वाद होता है. पूरी तरह से पकने के बाद ही इसे व्यपारियों को दिया जाता है. पकने के बाद यह 10 से 12 दिनों तक  खराब भी नहीं होता. इसको कार्बाइट से पकाने व कोल्ड स्टोरेज करने का भी झंझट नहीं है. शहरों के व्यापारी खुद खेतों में आकर 25 से 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ले जाते हैं. जिले के पडरौलिया के अलावे चकिया के संतोष नंदन पाठक, कल्याणपुर के आरबी सिंह, बनकटवा के अनितेश कुमार सिं, और अरेराज के भूपेंद्र सिंह ने खेती की है. इसके प्रत्येक पुष्प से फल निकलता है, जो उत्पादन में इजाफा करता है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत एक ही पौधे पर नर व मादा दोनों फूल का लगना बताया गया है. यानी किसानों को प्रत्येक पौधे से फल मिलने की गारंटी तय होगी. पपीते की अन्य किस्मों में नर व मादा का फूल अलग-अलग पौधों पर लगते हैं. गुदा में विशेष सुगंध होती है.

पौधे लगाने के वैज्ञानिक तरीके

केविके प्रमुख डा अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि खेतों की जुताई करने के बाद दो-दो मीटर की लाइन और एक पौधे से दूसरे की दूरी दो मीटर रखनी पड़ेगी. इस तरह एक एकड़ में एक हजार पौधे लग जाते हैं. मेड़ बनाकर एक-एक फुट गड्ढा खोदकर उर्वरक देकर पौधे लगाकर सिंचाई कर दी जाती है. इसे लगाने के 6 महीने बाद फल-फूल आने लगते हैं. 

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