buxar news : कृष्णाब्रह्म. डुमरांव प्रखंड के सोवा गांव में सरकारी लापरवाही का ऐसा नमूना सामने आया है, जिसने स्थानीय किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है.
गांव के पश्चिम व दक्षिण दिशा में स्थापित सरकारी नलकूप पिछले आठ वर्षों से जर्जर व बंद पड़ा है. यह वही नलकूप है, जिसके सहारे गांव के सैकड़ों एकड़ खेतों में समय पर सिंचाई होती थी. फसल समय पर तैयार होती थी और किसान बिना अतिरिक्त खर्च के खेती कर लेते थे. लेकिन अब स्थिति पूरी तरह उलट चुकी है. सरकारी नलकूप के ठप होने से किसान अपनी फसलें बचाने के लिए निजी पंपिंग सेट, महंगे डीजल और किराये की मोटर पर निर्भर हैं. महंगाई की दौर में यह खर्च किसानों की कमर तोड़ रहा है. धान की फसल किसी तरह निजी साधनों के सहारे तैयार कर ली गयी, लेकिन अब गेहूं की बोआई का समय शुरू हो चुका है और किसानों के सामने फिर वही पुरानी समस्या मुंह बाएं खड़ी है पानी कहां से लाएं.सरकारी पइन हुई लुप्त, मानो कभी अस्तित्व ही नहीं था
किसानों ने बताया कि नलकूप से पानी खेतों तक पहुंचाने के लिए जिस मजबूत पाइपलाइन पइन का निर्माण किया गया था, उसका आज नामोनिशान मिटता जा रहा है. कई जगह पइन टूट चुके हैं, कई हिस्से मिट्टी में धंस गये हैं. स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने लाखों रुपये खर्च कर जिस सिंचाई व्यवस्था को खड़ा किया था, उसकी देखभाल नहीं हो रही है. नतीजा यह हुआ कि पूरी व्यवस्था धीरे-धीरे ध्वस्त हो गयी. किसानों का कहना है कि पइन तो अब ऐसी हो गयी है जैसे किसी ने सालों पहले मिट्टी में गाड़ दी हो. उसका कोई अस्तित्व ही नहीं बचा.निजी साधनों से सिंचाई जेब पर भारी
गांव के किसानों ने बताया कि निजी मोटर से पटवन करने में प्रति बीघा 300 से 500 रुपये तक का खर्च आता है. अगर पानी कम हुआ या मोटर में खराबी आयी, तो यह खर्च और बढ़ जाता है. छोटे व सीमांत किसान इस खर्च को वहन ही नहीं कर पाते. सरकार कागज पर सिंचाई की व्यवस्था दिखाती है, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है. सरकारी बोरिंग बंद है और पइन गायब है.गांव के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में सिंचाई पूरी तरह ठप
विशेषकर गांव के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से में खेती पूरी तरह संकट में है. यहां ज्यादातर किसान सरकारी नलकूप पर ही निर्भर रहते थे. लेकिन अब खेतों में नमी कम होती जा रही है और समय पर पटवन न होने से गेहूं की बोआई भी विलंबित हो सकती है. किसान चिंतित हैं कि सरकारी उपेक्षा का यह सिलसिला अगर लंबे समय तक चला, तो गांव में खेती करना मुश्किल हो जायेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

