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सिमटती जा रही गन्ने की खेती, घटता जा रहा रकबा

प्रखंड क्षेत्र में कभी हरियाली और मिठास की पहचान रही गन्ना की खेती आज धीरे धीरे इतिहास बनती जा रही है.

कृष्णाब्रह्म. प्रखंड क्षेत्र में कभी हरियाली और मिठास की पहचान रही गन्ना की खेती आज धीरे धीरे इतिहास बनती जा रही है. एक समय था जब प्रखंड के लगभग हर गांव की बधार में गन्ने की लहलहाती फसल दिखाई देती थी. खेतों से उठती गन्ने की खुशबू और कोल्हुओं पर उबलते रस से बनने वाले गुड़ की मिठास गांवों की अर्थव्यवस्था को मजबूती देती थी. लेकिन बदलते वक्त के साथ गन्ना की खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है, जिसका सीधा और गहरा असर गुड़ उत्पादन पर पड़ रहा है. स्थानीय किसानों के अनुसार पहले गन्ना ऐसी फसल थी, जिससे सालभर की आमदनी का मजबूत सहारा मिल जाता था. गुड़ की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती थी और किसानों को इसका उचित मूल्य भी मिल जाता था. यही कारण था कि गन्ना की खेती को लाभकारी माना जाता था. लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट हो चुके है. आज गन्ना की खेती कहीं कहीं ही देखने को मिलती है, जबकि अधिकांश खेतों से यह फसल लगभग गायब हो चुकी है. किसान बताते हैं कि संसाधनों के अभाव ने गन्ना की खेती को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है. सिंचाई की समुचित व्यवस्था न होना, महंगे बीज और खाद, मजदूरी की बढ़ती लागत तथा आधुनिक कृषि उपकरणों की कमी ने किसानों की कमर तोड़ दी है. ऊपर से गन्ना तैयार होने में लंबा समय लगता है, जबकि धान और गेहूं जैसी फसलें अपेक्षाकृत कम समय में तैयार होकर तुरंत नकदी दे देती है. ऐसे में किसान मजबूरी में दूसरी फसलों की ओर रुख कर रहे है. गन्ना की खेती घटने से सबसे ज्यादा असर गुड़ उद्योग पर पड़ा है. पहले गांव गांव में कोल्हू चलते थे, जहां से ताजा और शुद्ध गुड़ निकलता था. आज कई कोल्हू बंद पड़े हैं, कुछ पूरी तरह जर्जर हो चुके है. गुड़ बनाने वाले कारीगरों और मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बाजार में बाहर से आने वाला मिल का गुड़ अब स्थानीय गुड़ की जगह ले रहा है, जिससे पारंपरिक स्वाद और गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है. किसानों का कहना है कि अगर समय रहते गन्ना की खेती को बढ़ावा नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में यह फसल पूरी तरह खत्म हो सकती है. इससे न केवल किसानों की आमदनी घटेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की एक मजबूत कड़ी भी टूट जायेगी. गन्ना और गुड़ से जुड़े हजारों परिवारों की आजीविका पर इसका सीधा असर पड़ेगा. क्षेत्र में गन्ना की खेती केवल एक फसल नहीं, बल्कि परंपरा और संस्कृति का हिस्सा रही है. इसकी मिठास ने न सिर्फ लोगों की थाली को मीठा किया, बल्कि गांवों की आर्थिक सेहत को भी मजबूत बनाया.

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