गंगा नदी में पाये गये 50 प्रकार के पक्षी : जिले में गंगा नदी के किनारे 50 प्रकार के करीब हजार से ज्यादा पक्षियों की गिनती की गयी. जिनमें देसी और प्रवासी पक्षी शामिल थे. प्रवासी पक्षियों का आगमन यहां सुदूर देशों से हुआ है जिनमें ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब यानि शिवा हंस, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड यानि लालसर, रूडी शेलडक यानि चकवा, टफ्टेड डक यानि अबलक बतख, गडवाल यानि मैल, कॉमन पोचार्ड यानि बुरार, नॉर्दर्न पिनटेल यानि सींखपर, ग्रीनशैंक यानि टिमटिमा, टेमिंक स्टिंट छोटा पनलव्वा, ऑस्प्रे यानि मछरंगा, केंटिश प्लोवर मेरवा, व्हाइट वैगटेल यानि सफेद खंजन, ब्लैक हेडेड गल यानि धोमरा, पलाश गल यानि बड़ा धोमरा, ओस्प्रे यानि मछलीमार और बार्न स्वालो आदि शामिल हैं. यहां प्रवासी पक्षी ग्रे प्लोवर / ब्लैक बेलीड प्लोवर यानि बड़ा बटान का दिखना, यह पक्षी पूरे राज्य में ही यदा-कदा दिखायी देता है. इसके पूर्व इस पक्षी को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के गवर्निंग कौंसिल के सदस्य अरविंद मिश्रा और एडब्ल्यूसी बिहार के नोडल ऑफिसर श्री एस सुधाकर ने भागलपुर की गंगा नदी में देखा था. यह पक्षी साधारणतया समुद्री तटों पर ही दिखायी देता है और कभी कभी ही नदियों में मिलता है. स्थानीय पक्षियों में रीवर लैपविंग यानि गंग टिटहरी का बड़ा झुंड भी यहां दिखा. इसके अलावा ग्रे हेरॉन यानि अंजन, एशियन ओपनबिल यानि घोंघिल, रेड नेप्ड आइबिस यानि काला बुजा जैसे स्थानीय पक्षी भी अच्छी संख्या में नजर आये. अन्य जीवों में गंगा के क्षेत्र में 20-25 रीवर डॉल्फिन यानि सोंस के साथ सियारों और काले हिरणों की अच्छी संख्या देखी गयी.
गोकुल जलाशय में पाये गये 71 प्रजाति के पक्षी : गोकुल जलाशय में भी 71 प्रजातियों के करीब हजार पक्षी मिले जिनमें स्थानीय पक्षी एशियन ओपनबिल यानि घोंघिल, लिटिल कोर्मोरेंट यानि छोटा पनकव्वा, ग्रेट कोर्मोरेंट यानि बड़ा पनकव्वा आदि अधिक संख्या में दिखे परन्तु लेसर व्हिसलिंग डक यानि छोटी सिल्ही नहीं मिले जो कि गोकुल जलाशय में सबसे अधिक मिला करते हैं. जलाशय में जल स्तर अच्छा खासा बना हुआ था जिस कारण यहां प्रवासी ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब यानि शिवा हंस और ओस्प्रे यानि मछलीमार मजे में दिखायी दिये. सबसे सुखद रहा यहां युवा बर्ड गाइड मनीष और अन्य की मदद से यूरेशियन थिक नी यानि करवानक के 32 की संख्या में बड़े झुण्ड में दिखायी देना. अरविंद मिश्रा ने बताया कि बताया कि अपने दशकों के पक्षी अध्ययन के दौरान उन्होंने इस पक्षी का इतना बड़ा झुण्ड कभी नहीं देखा. जलकुम्भी जैसे खतरनाक खर पतवार नहीं के बराबर मौजूद थे. जल, खेती, झाड़ियां, घासीय क्षेत्र और कुछ पेड़ों की मौजूदगी गोकुल जलाशय की जैव विविधता को और संपन्न कर देती है, जिस कारण यहां राज्य के किसी भी एक साइट में मिलने वाली पक्षियों की सबसे अधिक प्रजातियां मिलती हैं. रेंजर सुरेश कुमार, वनकर्मी नितीश कुमार, रंजन कुमार और बिपिन कुमार शामिल रहे.
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