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राजगीर में नालंदा साहित्य महोत्सव का समापन

वैश्विक ज्ञान और साधना की ऐतिहासिक भूमि राजगीर में आयोजित पांच दिवसीय नालंदा साहित्य महोत्सव बुधवार को संपन्न हो गया।

राजगीर. वैश्विक ज्ञान और साधना की ऐतिहासिक भूमि राजगीर में आयोजित पांच दिवसीय नालंदा साहित्य महोत्सव बुधवार को संपन्न हो गया। समापन समारोह के अवसर पर वर्ष 2027 में पुनः राजगीर में नालंदा साहित्य महोत्सव के आयोजन की घोषणा निदेशक गंगा कुमार द्वारा की गयी़ जिसका करलत ध्वनी से स्वागत किया गया़ इससे साहित्य, संस्कृति और बौद्धिक विमर्श से जुड़े लोगों में उत्साह का संचार हुआ़ इस वर्ष आयोजित महोत्सव के दौरान कुल 38 सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें देश और दुनिया के नामचीन लेखक, इतिहासकार, शिक्षाविद, दार्शनिक, कलाकार, नीति विशेषज्ञ और युवा विचारक शामिल हुए़ इन सत्रों में साहित्य, इतिहास, भारतीय सभ्यता, समकालीन राजनीति, वैश्विक चुनौतियाँ, धर्म और जीवन-दर्शन, शिक्षा, कला-संस्कृति तथा भविष्य की दिशा जैसे विविध विषयों पर गहन और विचारोत्तेजक चर्चाएं हुई। महोत्सव ने नालंदा की उस परंपरा को जीवंत किया, जिसमें संवाद, तर्क और ज्ञान-विनिमय को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। वक्ताओं ने भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास और संस्कृति को समझने पर बल देते हुए यह संदेश दिया कि भारत की बौद्धिक विरासत आज भी वैश्विक समस्याओं के समाधान की क्षमता रखती है़ कई सत्रों में युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने यह साबित किया कि नई पीढ़ी विचार, विमर्श और रचनात्मकता को लेकर गंभीर है़ नालंदा साहित्य महोत्सव ने केवल एक साहित्यिक आयोजन के रूप में ही नहीं, बल्कि एक वैश्विक संवाद मंच के रूप में अपनी पहचान बनाई है़ इसने देश-दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा आधुनिक संदर्भों में भी उतनी ही प्रासंगिक है़ समापन सत्र में आयोजकों ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि 2027 का नालंदा साहित्य महोत्सव और अधिक व्यापक, समावेशी और प्रभावशाली होगा़ राजगीर एक बार फिर विश्व के बौद्धिक मानचित्र पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने की दिशा में अग्रसर है़ — इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव एवं प्रख्यात विद्वान डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि नालंदा केवल एक ऐतिहासिक स्मृति नहीं, बल्कि जीवंत बौद्धिक परंपरा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह महोत्सव भारत की उस ज्ञान-परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है, जिसमें संवाद, सहिष्णुता और विचारों का मुक्त आदान-प्रदान सर्वोपरि रहा है. डॉ. जोशी ने कहा कि आज के वैश्विक संदर्भ में जब समाज अनेक वैचारिक और सांस्कृतिक चुनौतियों से गुजर रहा है, तब नालंदा साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन मानवता को जोड़ने का कार्य करते हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारतीय ज्ञान परंपरा में साहित्य, कला, दर्शन और विज्ञान को कभी अलग-अलग नहीं देखा गया है, बल्कि इन्हें एक समग्र दृष्टि से समझा गया है़ उन्होंने युवाओं की सक्रिय भागीदारी की सराहना करते हुए कहा कि यह संकेत है कि आने वाली पीढ़ी अपनी जड़ों को जानने और उन्हें आधुनिक संदर्भों में समझने के लिए उत्सुक है। डॉ. जोशी ने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि यह महोत्सव केवल विमर्श का मंच नहीं, बल्कि विचारों की साधना है। अंत में उन्होंने 2027 में प्रस्तावित अगले महोत्सव के लिए शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि राजगीर वैश्विक बौद्धिक मानचित्र पर और अधिक सशक्त रूप से उभरेगा। — केन्द्र सरकार में वरिष्ठ प्रशासक एवं विचारक संजय कुमार ने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने यह सिद्ध कर दिया है कि साहित्य केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाली चेतना है। उन्होंने कहा कि पांच दिनों तक चले इस महोत्सव में जिन विषयों पर चर्चा हुई, वे आज के समय की ज्वलंत समस्याओं से सीधे जुड़े थे। संजय कुमार ने कहा कि राजगीर जैसी ऐतिहासिक भूमि पर इस प्रकार का आयोजन होना अपने आप में एक संदेश है कि भारत अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को लेकर सजग है। उन्होंने यह भी कहा कि नालंदा की परंपरा में विविध मतों और विचारों को समान सम्मान दिया जाता था। यह महोत्सव उसी परंपरा का आधुनिक स्वरूप है। उन्होंने आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि इतने बड़े स्तर पर 38 सत्रों का सफल आयोजन एक मजबूत टीमवर्क और दूरदर्शी सोच का परिणाम है। संजय कुमार ने विशेष रूप से युवाओं और विद्यार्थियों की उपस्थिति को भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत बताया। अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने देश-दुनिया को यह संदेश दिया है कि संवाद ही समस्याओं का समाधान है। 2027 में पुनः राजगीर में आयोजन की घोषणा स्वागतयोग्य है। यह निश्चित रूप से इस महोत्सव को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा। — प्रख्यात लेखक अरुप कुमार दत्ता ने समापन समारोह में कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने साहित्य को केवल अकादमिक दायरे से निकालकर आम जनमानस से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि यहां हुए सत्रों में विचारों की गहराई के साथ-साथ अभिव्यक्ति की सहजता भी देखने को मिली, जो किसी भी साहित्यिक आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। दत्ता ने कहा कि नालंदा की ऐतिहासिक विरासत एशिया ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्रोत रही है। ऐसे में राजगीर में आयोजित यह महोत्सव एक सांस्कृतिक सेतु का कार्य करता है, जहां पूर्व और पश्चिम, परंपरा और आधुनिकता के बीच संवाद स्थापित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि आज जब साहित्य को अक्सर सीमित दायरे में देखा जाता है, तब इस तरह के आयोजन यह याद दिलाते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, बल्कि परिवर्तन का माध्यम भी है। अरुप कुमार दत्ता ने आयोजकों और प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यहां की चर्चाओं ने उन्हें भी नए दृष्टिकोण दिए हैं। उन्होंने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव भविष्य में और अधिक भाषाओं, क्षेत्रों और संस्कृतियों को जोड़ने वाला मंच बने, यही इसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। — समापन समारोह में मारिशस की डॉ. सरिता बुद्धू ने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने महिलाओं, युवाओं और विविध सामाजिक समूहों की आवाज़ को समान मंच प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि यह महोत्सव समावेशी संवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां विभिन्न पृष्ठभूमियों से आए वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए हैं। डॉ. बुद्धू ने कहा कि साहित्य केवल शब्दों का संयोजन नहीं, बल्कि अनुभवों और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है। इस महोत्सव में जिन विषयों पर चर्चा हुई, वे समाज के भीतर चल रहे परिवर्तनों को समझने में सहायक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नालंदा की परंपरा में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जन नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का विकास रहा है। यह महोत्सव उसी मूल्यपरक शिक्षा की याद दिलाता है। डॉ. सरिता बुद्धू ने आयोजकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इतने सुव्यवस्थित और विचारोत्तेजक सत्रों का आयोजन आसान नहीं होता है। उन्होंने 2027 में होने वाले अगले महोत्सव के लिए शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यह मंच वैश्विक स्तर पर भारत की बौद्धिक पहचान को और मजबूत करेगा। — नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के कुलपति एवं सह-आयोजक प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि नालंदा केवल अतीत की एक गौरवशाली स्मृति नहीं है, बल्कि यह संवाद, विमर्श और बौद्धिक चेतना की एक सतत और जीवंत परंपरा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि प्राचीन नालंदा महाविहार विश्व का ऐसा केंद्र था, जहां विविध देशों, भाषाओं और विचारधाराओं के विद्वान एकत्र होकर ज्ञान के आदान-प्रदान में संलग्न रहते थे। उसी परंपरा को नालंदा साहित्य महोत्सव जैसे आयोजन आज के संदर्भ में पुनर्जीवित कर रहे हैं। प्रो. सिंह ने कहा कि साहित्य महोत्सव समाज को केवल मनोरंजन या अकादमिक चर्चा तक सीमित नहीं रखता, बल्कि यह लोगों को सोचने, प्रश्न करने और नए दृष्टिकोण विकसित करने की प्रेरणा देता है। ऐसे मंच आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं, जब दुनिया वैचारिक विभाजन और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना कर रही है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय बौद्ध अध्ययन, भारतीय ज्ञान परंपरा और वैश्विक अकादमिक संवाद के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्थान के रूप में निरंतर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। विश्वविद्यालय शोध, शिक्षण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नालंदा की बौद्धिक विरासत को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने आयोजकों, वक्ताओं और प्रतिभागियों को बधाई देते हुए कहा कि इस महोत्सव ने नालंदा की ज्ञान परंपरा को समकालीन समाज से जोड़ने का सार्थक कार्य किया है। उन्होंने विश्वास जताया कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन भारत की बौद्धिक चेतना को और अधिक सशक्त करेंगे। — इतिहासकार डॉ. अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने इतिहास को वर्तमान से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने कहा कि यहां हुई चर्चाओं में अतीत को केवल स्मरण के रूप में नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है और यह महोत्सव उस दिशा में एक सशक्त कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि नालंदा जैसी संस्थाओं की परंपरा हमें यह सिखाती है कि ज्ञान का कोई एक केंद्र नहीं होता, बल्कि यह संवाद से विकसित होता है। उन्होंने युवाओं की भागीदारी की सराहना करते हुए कहा कि इतिहास और साहित्य के प्रति उनकी रुचि भविष्य के लिए आशाजनक है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने राजगीर को फिर से वैश्विक बौद्धिक विमर्श के केंद्र में ला दिया है। — डॉ. अजय कुमार ने समापन समारोह में कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ज्ञान, संस्कृति और नवाचार का संगम है। उन्होंने कहा कि इस महोत्सव में हुए सत्रों ने यह स्पष्ट किया कि साहित्य आज भी समाज की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि राजगीर जैसे ऐतिहासिक स्थल पर इस प्रकार का आयोजन होना अपने आप में प्रेरणादायक है। यहां की ऊर्जा, वातावरण और इतिहास वक्ताओं तथा श्रोताओं दोनों को गहराई से प्रभावित करता है। डॉ. अजय कुमार ने आयोजन समिति की प्रशंसा करते हुए कहा कि विविध विषयों को संतुलित रूप से प्रस्तुत किया गया, जिससे हर वर्ग के श्रोताओं को कुछ न कुछ सीखने को मिला। उन्होंने कहा कि 2027 में प्रस्तावित अगला महोत्सव और अधिक नवाचार, तकनीक और युवा सहभागिता के साथ आयोजित किया जाना चाहिए। नालंदा साहित्य महोत्सव भारत की बौद्धिक शक्ति का प्रतीक बन चुका है। नालंदा साहित्य महोत्सव के निदेशक गंगा कुमार ने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने स्थानीय और वैश्विक विचारों को एक मंच पर लाकर संवाद की नई परंपरा स्थापित की है। उन्होंने कहा कि इस आयोजन से राजगीर की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली है। गंगा कुमार ने कहा कि साहित्य महोत्सव केवल वक्ताओं का मंच नहीं, बल्कि श्रोताओं के लिए भी सीखने और सोचने का अवसर होता है। यहां की चर्चाओं ने समाज, संस्कृति और भविष्य को लेकर नए प्रश्न खड़े किए हैं। उन्होंने सहयोगियों के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इतने बड़े आयोजन का सफल संचालन प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि नालंदा साहित्य महोत्सव ने यह संदेश दिया है कि भारत संवाद और सह-अस्तित्व की संस्कृति में विश्वास करता है। 2027 का आयोजन इस संदेश को और व्यापक बनाएगा।

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