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जर्जर कमरों में पढ़ाई करने को विद्यालय के बच्चे हैं मजबूर

सरकार एक तरफ जहां शिक्षा के विकास पर पैसे पानी की तरह बहा रही है, वहीं दूसरी तरफ कई विद्यालयों के बुनियादी ढांचे तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके हैं.

बिहारशरीफ. सरकार एक तरफ जहां शिक्षा के विकास पर पैसे पानी की तरह बहा रही है, वहीं दूसरी तरफ कई विद्यालयों के बुनियादी ढांचे तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके हैं. मामला गिरियक प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय बेलदरिया का है, जो वर्षों से जीर्णोद्धार का इंतजार कर रहा है. इस विद्यालय में वर्तमान में पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक में कुल 127 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं, जिनमें से लगभग 115 छात्र- छात्राएं नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित होते हैं. विद्यालय में पूर्व से निर्मित पांच कमरे मौजूद है. जिनमें से तीन कमरे बुरी तरह से क्षतिग्स्त हो चुके हैं. जहां पढ़ाई करना नामुमकिन है. शेष बचे दो कमरों की भी हालत अत्यंत खराब है. एक कमरे की छत का कंक्रीट गिर जाने से कमरे में बैठे-बैठे ही आसमान नजर आता है.जबकि दूसरे कमरे को जैसे तैसे ग्रामीणों के सहयोग से खड़ा रखा गया है. इस कमरे का इस्तेमाल कार्यालय के साथ-साथ स्टोर रूम के रूप में भी किया जाता है. विद्यालय के दो जीर्ण-शीर्ण कमरे में ही सभी वर्गों के बच्चे खतरे उठाकर पढ़ाई करने को मजबूर है. इस संबंध में ग्रामीणों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि विभागीय उपेक्षा के कारण इस विद्यालय का भवन का निर्माण आज तक नहीं हो सका है. आसपास में कोई विद्यालय नहीं होने के कारण वे अपने बच्चों को मजबूरी में इस विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजते हैं. बच्चे जब तक वापस घर नहीं लौटते हैं तब तक वे अनहोनी की आशंका से चिंताग्रस्त बने रहते हैं. विद्यालय का भवन इतना जीर्ण-शीर्ण हो गया है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. ऐसे में उनके बच्चों का भविष्य कैसे संवर सकता है. विद्यालय का तीन कैमरा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कहने को तो इस विद्यालय में पांच कमरे हैं, लेकिन विद्यालय का तीन कमरा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है और किसी भी समय पूरी तरह से गिर सकता है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से इन तीनों कमरों को बंद रखा जाता है. विदित हो कि प्राथमिक विद्यालय बेलदरिया में पावा कॉलोनी, बंगाली नगर, और बेलदरिया के लगभग 127 बच्चे नामांकित है. समाज के कमज़ोर तबके से आने वाले और मेहनत मजदूरी करते हुए भी अभिभावक अपने बच्चों को उज्जवल भविष्य बनाने के लिए नजदीक के विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजते हैं. एक कमरे में की गई है लकड़ी की सेटिंग विद्यालय के एक जीर्ण-शीर्ण कमरे को उपयोग में लाने के लिए ग्रामीणों के सहयोग से उसे बांस के बल्ले और लकड़ी के पटरो से सेंटरिंग की गई है. इसी प्रकार स्कूल के बरामदे में भी लकड़ी के पटरो की सेंटरिंग कर बच्चों की पढ़ाई की जा रही है ताकि विद्यालय का यह कमरा या बरामदा कभी अचानक से नहीं गिर पड़े और कोई हादसा हो. हालांकि सुरक्षा के दृष्टिकोण से बच्चों को कमरे की बजाय बरामदे में ही बैठाया जाता है. लेकिन विद्यालय का कार्यालय इसी कमरे में संचालित किया जाता है .इससे विद्यालय के शिक्षकों को हमेशा खतरा बना रहता है. प्राथमिक विद्यालय ईसापुर की घटना से भी नहीं लिया सबक कुछ महीने पूर्व ही गिरियक प्रखंड के ही प्राथमिक विद्यालय ईसापुर के विद्यालय की छज्जा गिरने से विद्यालय के कई बच्चे घायल हो गए थे जिनका इलाज वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज पावापुरी में कराया गया था. उन दिनों विभाग में काफी हाय- तौबा भी मची थी.मुखिया प्रतिनिधि धनंजय कुमार ने बताया कि जब बच्चों की जान ही सुरक्षित नहीं होगा तब बच्चे सुरक्षित माहौल में शिक्षा कैसे ग्रहण करेंगे. बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सुरक्षित माहौल का भी होना अत्यंत आवश्यक है. बच्चे पढ़ाई की जगह छत गिरने की डर से छत की तरफ ही टकटकी लगाए रहेंगे तो फिर पढ़ाई कैसे करेंगे. उन्होंने छात्र हित में इस क्षतिग्रस्त कमरों को तोड़कर नए कमरे बनाने की मांग संबंधित पदाधिकारीयों से की है. क्या कहते हैं प्रधानाध्यापक “विद्यालय के क्षतिग्रस्त कमरों की सूचना कई बार जिला शिक्षा कार्यालय को दी गई है. जब विभाग द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे ग्रामीणों की सहयोग से किसी तरह मरमती कर विद्यालय का संचालन कर रहे हैं. लेकिन जब भी कोई हादसा होती है तो प्रधानाध्यापक पर ही गाज गिरती है. ” -रोहित कुमार, प्रधान शिक्षक, प्राथमिक विद्यालय बेलदरिया, गिरियक क्या कहते हैं अधिकारी:- “जिले के ऐसे पुराने और जीर्ण-शीर्ण भवन वाले विद्यालयों की पहचान के लिए सभी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को निर्देश दिया गया है. इस मामले में संबंधित प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से जानकारी प्राप्त कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी. ” -आनंद विजय, जिला शिक्षा पदाधिकारी, नालंदा

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