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शिक्षा से सिनेमा तक विचार, भाषा और भविष्य पर मंथन

पांच दिवसीय नालंदा साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को ज्ञान, विचार और विमर्श का सशक्त संगम देखने को मिला.

प्रतिनिधि, राजगीर.

पांच दिवसीय नालंदा साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन सोमवार को ज्ञान, विचार और विमर्श का सशक्त संगम देखने को मिला. विभिन्न सत्रों में शिक्षा, भाषा, साहित्य, सिनेमा, कूटनीति और क्षेत्रीय अस्मिताओं जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा हुई. महोत्सव का केंद्रबिंदु भारतीय बौद्धिक परंपरा, उसकी वर्तमान चुनौतियां और भविष्य की दिशा रही. महोत्सव के एक प्रमुख सत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी द्वारा भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक भूमिका पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में सांसद एवं प्रख्यात लेखक डॉ. शशि थरूर ने भारत की समृद्ध शैक्षणिक विरासत और मौजूदा शैक्षिक परिदृश्य पर विस्तार से विचार रखे. उन्होंने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कभी विश्व का सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय था, जहां एशिया के अनेक देशों से विद्यार्थी बिना किसी शुल्क के अध्ययन के लिए आते थे. डॉ. थरूर ने कहा कि नालंदा का पुनर्जीवन आज अपने मूल स्थल और मूल भावना से दूर प्रतीत होता है. वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि आज भारत के विश्वविद्यालय विश्व के शीर्ष संस्थानों में शामिल नहीं हैं. हालांकि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) जैसे कुछ संस्थान वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष 200 में आए हैं, लेकिन वे अब भी शीर्ष स्तर से काफी पीछे हैं. उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों की घटती संख्या पर भी चिंता जताई. डॉ. थरूर ने कहा कि एक समय अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों के छात्र भारतीय परिसरों का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन आज अधिकांश अंतरराष्ट्रीय छात्र पश्चिमी देशों या रूस का रुख कर रहे हैं. शिक्षा नीति पर बोलते हुए उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सराहना की और कहा कि यह किसी एक सरकार या पार्टी की नहीं, बल्कि पूरे देश के हित में बनायी गयी नीति है, इसी कारण वे इसका समर्थन करते हैं. डॉ. थरूर ने शिक्षा और रोजगार बाजार के बीच बढ़ती खाई पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने सिलिकॉन वैली जैसे वैश्विक मॉडलों का उदाहरण देते हुए कहा कि विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच मजबूत सहयोग अत्यंत आवश्यक है. विभिन्न अध्ययनों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि भारत के अधिकांश स्नातक रोजगार के लिए पूरी तरह तैयार नहीं होते और कंपनियों को उन्हें दोबारा प्रशिक्षण देना पड़ता है. उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति में बदलाव की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि आज भी हमारी शिक्षा प्रणाली परीक्षा और रटने पर आधारित है, जिससे रचनात्मकता, संवाद और स्वतंत्र सोच का विकास नहीं हो पाता. डॉ. थरूर ने कहा कि 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण क्षमता यह नहीं है कि क्या सोचना है, बल्कि यह है कि कैसे सोचना है. उन्होंने चेतावनी दी कि जो छात्र सवाल पूछने, बहस करने और स्वतंत्र रूप से सोचने से रोके जाते हैं, वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और तेजी से बदलती दुनिया के लिए तैयार नहीं हो सकते. इसके बाद आयोजित सत्र ‘शब्दों की सोशल फैक्ट्री’ में संचालक डॉ. अमित कुमार पांडे के साथ प्रो. लक्ष्मीधरे बेहेरा, डॉ. इलारिया तोरे और अदिति महेश्वरी ने भाषा, समाज और विचार निर्माण की प्रक्रिया पर अपने विचार साझा किए. अमिताभ कांत और नालंदा विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो सुनैना सिंह के बीच संवाद सत्र में ‘इन्क्रेडिबल इंडिया’ जैसे राष्ट्रीय अभियानों से लेकर जी-20 के माध्यम से वैश्विक कूटनीति में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका तक, भारत की विकास गाथा में योगदान पर चर्चा हुई.

‘द लॉस्ट लव’ सत्र में बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं बज्जिका, मगही और अंगिका के संरक्षण और पुनर्जीवन पर गंभीर विमर्श हुआ. सत्र का संचालन प्रो. एम. जे. वारसी ने किया.उमेश प्रसाद उमेश और जय राम सिंह ने भी विचार व्यक्त किया. प्रख्यात फिल्मकार अदूर गोपालकृष्णन और महोत्सव के निदेशक गंगा कुमार के बीच आयोजित इंटरएक्टिव सत्र में भाषा, साहित्य और सिनेमा के गहरे अंतर्संबंधों पर सारगर्भित चर्चा हुई.

‘शब्द से स्क्रीन’ सत्र का संचालन पंकज दुबे ने किया. इसमें भारतीय सिनेमा में भाषा, बोली और साहित्य के स्क्रीन रूपांतरण पर फोकस रहा. अभिनेता संजय मिश्रा ने कहा कि एक अभिनेता के लिए भाषा केवल संवाद बोलने का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं को व्यक्त करने का हथियार होती है. वहीं ‘अंग्रेजी में भारत को लिखना’ विषयक सत्र में संचालक डॉ पंकज केपी श्रेयस्कर, आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा सहित अन्य वक्ताओं ने भारतीय साहित्य की बहुसांस्कृतिक चेतना और अंग्रेजी भाषा की भूमिका पर गहन चर्चा की. महोत्सव का दूसरा दिन विचारों की विविधता और संवाद की गहराई के साथ स्मरणीय बन गया.

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