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कांग्रेस विधायक सदानंद सिंह ने की सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा

कहलगांव : कहलगांव के कांग्रेस विधायक सदानंद सिंह अगला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्हाेंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र शुभानंद मुकेश को देने की घोषणा कर दी है. आगामी विधानसभा चुनाव में शुभानंद किस दल के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे अभी यह पत्ता विधायक सदानंद सिंह ने नहीं खोला है. प्रभात खबर से विशेष भेंट […]

कहलगांव : कहलगांव के कांग्रेस विधायक सदानंद सिंह अगला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्हाेंने अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्र शुभानंद मुकेश को देने की घोषणा कर दी है. आगामी विधानसभा चुनाव में शुभानंद किस दल के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे अभी यह पत्ता विधायक सदानंद सिंह ने नहीं खोला है.
प्रभात खबर से विशेष भेंट में उन्होंने स्पष्ट कहा कि मैं सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहा हूं. हालांकि संगठन का काम करता रहूंगा. उन्होंने कहा कि शुभानंद को भी मेरी तरह ही कांग्रेस से लगाव है. राजनीति की प्रथम पारी की शुरुआत के लिए उसे मैं स्वंतत्र छोड़ दूंगा. जिस राजनीतिक पार्टी से उसे शुरुआत करनी है वह करे. उसे हर दल टिकट देने को तैयार है. समय आने पर यह स्वतः स्पष्ट हो जायेगा.
रिकाॅर्ड नौ बार विधायक रहे सदानंद सिंह : 1969 में पहली बार सदानंद सिंह कहलगांव विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. दो चुनाव में राजद के महेश मंडल ने 1990 से 2000 तक व 2005 में हुए उपचुनाव में जदयू के अजय मंडल ने इन्हें शिकस्त दिया था. पुनः 2010 में सदानंद सिंह मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब हुए.
आठ माह के लिए कांग्रेस पार्टी से बाहर रहे सदानंद
1985 में मुख्यमंत्री स्व चंद्रशेखर सिंह ने सदानंद सिंह सहित 22 कांग्रेस विधायकों का टिकट काट दिया था. सदानंद सिंह कहते हैं- यह काट-काट का खेल उक्त समय के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह बनाम पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के बीच हुई अहम की लड़ाई में हम सीटिंग विधायकों को बलि का बकरा बनाया गया था. आठ माह के बाद ही कांग्रेस की केंद्रीय नेतृत्व को एहसास हुआ कि सीटिंग एमएलए का टिकट काटना गलत फैसला था.
सदानंद ने बताया कि उक्त समय पार्टी से हुए बाहर विधायकों ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर विजय प्राप्त किया था. बाद में सभी निर्दलीय विधायकों ने मिलकर बिहार कांग्रेस की स्थापना की थी. मुझे ही पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था. तब के कृषि मंत्री भजनलाल ने अंततः मुझे व तब के निर्दलीय विधायक महेंद्र झा को दिल्ली बुलाकर कांग्रेस में वापस लाया. मालूम हो कि कांग्रेस पार्टी से बाहर करने व पार्टी का टिकट नहीं मिलने के बाद भी सदानंद ने निर्दलीय उम्मीदवार (शेर छाप) के रूप में अपने एक नजदीकी रिश्तेदार कृष्ण मोहन सिंह (कांग्रेस) उम्मीदवार को हराया था.
पिता की राजनीतिक विरासत संभालने को तैयार : शुभानंद
शुभानंद मुकेश ने मैकेनिकल विषय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. एमबीए करने के बाद कैंम्ब्रिज विवि से पर्यावरण विषय पर भी अध्ययन किया. टाटा स्टील जमशेदपुर में फिलहाल इन्वायरनमेंट हेड के पद पर कार्यरत हैं. शुभानंद मुकेश ने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद यानी 2001 से ही मेरी अभिरुचि राजनीति से है.
पिता की राजनीतिक विरासत संभालने को लेकर शुभानंद ने कहा कि पिता जी के करीब 50 वर्षों से भी अधिक राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए मैं तैयार हूं. समाजसेवा में अभिरुचि मेरी बचपन से रही है. पूर्णकालिक राजनीति में आने के बाद इंजीनियरिंग सहित पर्यावरण के कार्यों व अनुभव को सामाजिक स्तर पर धरातल में लाना मेरा मुख्य उद्देश्य रहेगा.

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