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बिहार के लोग पढ़ते बहुत हैं, खूब लिखने की भी है जरूरत

समारोह में कथाकार डॉ उषा किरण खान को शरतचंद सम्मान, समालोचक डॉ राधाकृष्ण सहाय को बनफूल सम्मान एवं वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुंडरिक को दिनकर सम्मान भागलपुर : बिहार के लोग बहुत पढ़ते हैं. किताबें भी बहुत खरीदते हैं. इसके विपरीत कलम नहीं उठाते. कोई तगड़ा समीक्षक क्यों नहीं पैदा होते. युवाओं को जर्नल, अखबार समेत […]

समारोह में कथाकार डॉ उषा किरण खान को शरतचंद सम्मान, समालोचक डॉ राधाकृष्ण सहाय को बनफूल सम्मान एवं वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुंडरिक को दिनकर सम्मान

भागलपुर : बिहार के लोग बहुत पढ़ते हैं. किताबें भी बहुत खरीदते हैं. इसके विपरीत कलम नहीं उठाते. कोई तगड़ा समीक्षक क्यों नहीं पैदा होते. युवाओं को जर्नल, अखबार समेत अन्य साहित्य को पढ़ कर समीक्षा करनी चाहिए. अपने मन में लेखक का ध्यान तभी जाता है, जब उनकी समीक्षा बेहतर तरीके से होती है. उक्त बातें पद्मश्री से सम्मानित कथाकार डॉ उषा किरण खान ने गुरुवार को कही. मौका था कचहरी परिसर स्थित एक होटल सभागार में श्री रास बिहारी साहित्य सम्मान समारोह सह मैं पृथा ही क्यों न रही पुस्तक लोकार्पण का. समारोह में कथाकार डॉ उषा किरण खान को शरतचंद सम्मान, समालोचक डॉ राधाकृष्ण सहाय को बनफूल सम्मान एवं वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुंडरिक को दिनकर सम्मान मिला.
इससे पहले सम्मान समारोह का उद्घाटन प्रसिद्ध गांधीवादी सह पूर्व सांसद डॉ रामजी सिंह, डॉ उषा किरण खान, नरेंद्र पुंडरिक, मंगला रानी, डॉ रीता सिंह एवं डॉ सुजाता चौधरी ने संयुक्त रूप से किया. अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ सुजाता चौधरी ने कहा कि हम जो भी सुख उठा रहे हैं, उसमें साहित्य व संस्कृति का बड़ा योगदान रहा है.
इनके ऋण उतारने का कोई तरीका नहीं होता है. फिर उन्होंने कुंती के चरित्र महत्व पर आधारित स्वरचित पुस्तक मैं पृथा ही क्यों न रही से अवगत कराया. वयोवृद्ध समालोचक डॉ राधाकृष्ण सहाय ने कहा कि लेखिका सुजाता गांधीवादी हैं. गांधीजी से बड़ा प्रेम के प्रतीक कोई नहीं हैं. वरिष्ठ कवि नरेंद्र पुंडरिक ने कहा कि भारत के इतिहास स्त्री के दो चरित्र आये हैं. कौशल्या व कुंती का चरित्र. कुंती का चरित्र आसान नहीं है. लेखक ने नये परिप्रेक्ष्य में स्त्री पात्रों को रखा है.
श्री रासबिहारी साहित्य सम्मान समारोह
समारोह में स्थानीय साहित्यकारों व उनसे जुड़े लोगों डॉ आभा पूर्वे, डॉ प्रभा कुमारी, माधवी चौधरी, मीरा झा, डॉ रामचंद्र घोष, पीएन जायसवाल, रामकिशोर, दिनेश तपन, डॉ प्रेम प्रभाकर, शरतचंद के भतीजा उज्जवल गांगुली एवं शांतनु गांगुली, डॉ अरविंद कुमार, रंजन, दयानंद जायसवाल, आमोद कुमार मिश्र, उमाकांत भारती, एसके प्रोग्रामर आदि को सम्मानित किया गया. मंच का संचालन विनोद चौधरी ने किया. कार्यक्रम का समापन रायपुर की डॉ अनुराधा दुबे ने कथक की प्रस्तुति से किया. इस मौके पर डॉ आरडी शर्मा, धर्मेंद्र कुसुम, गिरधर प्रसाद, डॉ प्रीति शेखर, सुनील जैन, कुमार कृष्णन, मनोज पांडेय, प्रकाशचंद्र गुप्ता आदि उपस्थित थे.
हिंदी साहित्य में रोजी-रोटी नहीं, अभाव में भी साहित्य साधना अब पुरानी बात
गुरुवार को भागलपुर में साहित्य जगत के कई नामचीन विद्वानों का जुटान हुआ था. उन्हें श्री रास बिहारी मिशन द्वारा सम्मानित किया गया. इनमें वरिष्ठ कथाकार पद्मश्री डॉ उषा किरण खान और वरिष्ठ कवि व प्रसिद्ध आलोचक नरेंद्र पुंडरीक थे. उनसे प्रभात खबर संवाददाता दीपक राव ने खास बातचीत की. पेश से उनसे की गयी बातचीत के अंश.
शासन व सरकार से सपोर्ट नहीं मिलता : डॉ उषा किरण
हसीना मंजिल की लेखिका पद्मश्री से सम्मानित डॉ उषा किरण खान ने कहा कि युवा साहित्य की चाह रखते हैं. लेकिन हिंदी साहित्य में रोजी-रोटी नहीं है. जो चाह रखते हैं, उनका भी कुछ दिन में ही साथ छूट जाता है. अभाव के बाद भी लोगों का साहित्य से जुड़ाव अब पुरानी बात हो गयी. जो साहित्य पर ही जीना चाहे, खासकर हिंदी साहित्य में, ऐसा संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि शासन व सरकार से साहित्यकारों को कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा है. जिस समय देश आजाद हुआ था, विधान परिषद व राज्य सभा में साहित्यकारों के लिए सीट आरक्षित थी. कुछ दिनों तक निष्पक्ष तरीके से साहित्यकार चुने भी गये. अब साहित्य क्षेत्र से चुने भी जाते हैं, तो पार्टी का ही कार्ड होल्डर होता है. शुद्ध साहित्यकार के लिए कोई जगह नहीं है.
जहां लेखक व पत्रकार की हत्या हो, वहां सम्मान मायने नहीं रखता : नरेंद्र पुंडरीक
देश के ख्याति प्राप्त कवि सह आलोचक नरेंद्र पुंडरीक ने कहा कि लेखक को यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो, लेखक की हत्या हो रही हो, वहां लेखक होने का क्या मतलब व सार्थकता रह जाती है. साहित्य व कला-संस्कृति से जुड़े लोगों की ओर से लौटाया सम्मान उचित है. सम्मान कोई मायने नहीं रखता. कलबुर्गी, पनसारे व गौरी लंकेश की हत्या का उन्होंने उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि अभी के लेखक व पत्रकार में संवेदनाओं की कमी दिखती है. संवेदनाओं के महत्व को समझना होगा. उन्होंने कहा कि भागलपुर से शरतचंद, रामधारी सिंह दिनकर, गोपाल सिंह नेपाली, बनफूल, राजाराम मोहन राय का सीधा जुड़ाव रहा है. यहां के लोग सामाजिक सौहार्द से भरे हैं.

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