निरंजन कुमार, बांका : पक्की सड़क पर चलते-चलते अचानक बीच में कच्ची सड़क आ जाये तो ठहर जाइयें. चूंकि यह जमीन वन विभाग की है. कुछ दूरी तय करने पर पक्की सड़क पुन: मिल सकती है.
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करोड़ों खर्च के बावजूद दर्जनों सड़क पर नहीं मिली सुविधा
निरंजन कुमार, बांका : पक्की सड़क पर चलते-चलते अचानक बीच में कच्ची सड़क आ जाये तो ठहर जाइयें. चूंकि यह जमीन वन विभाग की है. कुछ दूरी तय करने पर पक्की सड़क पुन: मिल सकती है. जी हां, जिले के दर्जनों पक्की सड़क की कहानी इसी तरह है. एकाएक पक्की सड़क पर चलते-चलते बीच में […]
जी हां, जिले के दर्जनों पक्की सड़क की कहानी इसी तरह है. एकाएक पक्की सड़क पर चलते-चलते बीच में कच्ची सड़क आ जाती है. उसके बाद जब वन विभाग की जमीन समाप्त होती है तो पुन: पक्की सड़क मिल जाती है. परंतु बीच-बीच में कच्ची सड़क मिलने की वजह से यातायात या कहें वाहन परिचालन में भारी कठिनाई होती है.
पक्कीकरण से वंचित वन विभाग की जमीन पर बारिश गिरते ही इस पर चलना कठिन होता है. यही नहीं कई ऐसे सड़क भी हैं, जहां वन विभाग की जमीन आने से सड़क का निर्माण में अधूरे में ही फंस जाता है. लिहाजा, करोड़ों खर्च के बावजूद यातायात की वह सुविधा आम-जन के लिए मयस्सर नहीं हो पाती है, जिसका सपना ग्रामीण देखते हैं और उस सपने को पूरा करने का वादा सरकार व उनका विभाग करती है.
दरअसल, सड़क निर्माण विभाग व वन विभाग की पेंच में कई वर्षों से दर्जनों सड़क का निर्माण कार्य छूट गया है. सड़क निर्माण विभाग की सुस्ती की वजह से वन विभाग संबंधित जमीन पर एनओसी देने में हाथ खींच लेती है. नतीजतन, विभागीय उदासीनता की वजह से पूर्ण सड़क भी अपूर्ण रह जाते हैं. जानकारी के मुताबिक इस स्थिति में ग्रामीण कार्य विभाग, एनएच, एसएच सहित अन्य सड़क है. जिस पर जल्द से जल्द एक्शन लेना अनिवार्य है. अधूरे सड़क को लेकर ग्रामीणों में भी काफी रोष है. लिहाजा, समय-समय पर उनका यह रोष शब्द के माध्यम से फूट भी पड़ता है.
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