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गाय ने बदल दी नीलकोठी के लालदेव की तकदीर

बनारस के संपूर्णानंद विवि से आचार्य की डिग्री लेने के बाद नहीं मिली नौकरी गौ पालन कर हर महीने कमाते हैं 60 से 70 हजार रुपये 30 गायों की देखरेख के लिए छह युवकों को रखा अंबा : हसपुरा प्रखंड के नीलकोठी गांव निवासी लालदेव प्रसाद सिंह गौ पालन कर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने […]

बनारस के संपूर्णानंद विवि से आचार्य की डिग्री लेने के बाद नहीं मिली नौकरी

गौ पालन कर हर महीने कमाते हैं 60 से 70 हजार रुपये
30 गायों की देखरेख के लिए छह युवकों को रखा
अंबा : हसपुरा प्रखंड के नीलकोठी गांव निवासी लालदेव प्रसाद सिंह गौ पालन कर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं. गांव में ही प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर उन्होंने वाराणसी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की है. संस्कृत में उन्हें खासा लगाव था. 1989 में आचार्य की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी नहीं मिली, तो उन्होंने गांव में ही देवनंदन संस्कृत प्राथमिक सह मिडिल स्कूल की शुरुआत की. आर्थिक तंगी से परेशान होकर उन्होंने गौ पालन करने की ठान ली.
जिला पशुपालन विभाग से सुझाव मांगा और प्रधानमंत्री रोजगार योजना से ऋण लिया. उन्हें जिला पशुपालन पदाधिकारी डाॅ नर्मदेश्वर सिंह व डाॅ ब्रजेश सिंह से सहयोग मिला. पशुपालन से आमदनी होने लगी. इनका खटाल (गाय रखने की जगह) औरंगाबाद के महराजगंज रोड में है. यहां उन्होंने लीज पर जमीन ली है. आज इनके पास 30 से अधिक दुधारू गायें हैं. सभी गायें तकरीबन 14 से 15 किलो दूध देती हैं. इससे उन्हें महीने में 60 से 70 हजार रुपये की बचत होती है.
खटाल की देख-रेख के लिए लगे हैं छह लोग
खटाल की देखरेख के लिए लालदेव ने छह लोगों को मासिक वेतन पर रखा है. काम कर रहे युवक बताते हैं कि दिल्ली-मुंबई व अन्य बड़े शहरों में इससे अधिक आमदनी नहीं होती है. घर के समीप काम मिलने से हमलोगों काफी सहूलियत होती है.
बांझ गायें भी देती हैं दूध
लालदेव ने खटाल में ऐसी गाय भी रखी है, जो बांझ होने के बाद भी दूध देती है. कुटुंबा के पशुपालन चिकित्सा पदाधिकारी डाॅ आशुतोष मिश्रा के सहयोग से अब तक 10 से अधिक गायों पर वे इसका शोध कर चुके हैं. यह पशुपालकों के लिए खुशखबरी है. लालदेव बताते हैं कि वर्ष 2009 जनवरी में रोहतास के प्रेमनगर में पशुमेला लगा था.
वहां उन्होंने एक लाख 65 हजार में एक गाय खरीदी थी. वह गाय प्रतिदिन 45 से 50 लीटर दूध देती थी. कुछ ही महीनों बाद गाय ने दूध देना बंद कर दिया. गर्भवती भी नहीं होती थी. चिकित्सकों ने राष्ट्रीय गव्य विकास अनुसंधान केंद्र करनाल में संपर्क करने को कहा. जिले से पशुपालकों की प्रतिनिधित्व के लिए विभाग से इन्हें भेजा गया. वहां उन्हें ऐसी स्थिति में हारमोनल प्रयोग करने को कहा गया. इससे गर्भ तो नहीं ठहरा, पर नौ महीने बाद गाय ने दूध देना शुरू कर दिया. अब तक 10 से अधिक गायों पर इसका प्रयोग करके देखा गया है. सभी में सफलता मिली है. एक गाय के उपचार में ढ़ाई से तीन हजार रुपये का खर्च आता है.

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