आरा.
परमानपुर चातुर्मास व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि संस्कार ही राष्ट्र की प्रमुख संपत्ति है. संस्कार ही राष्ट्र की जननी है. संस्कार के बिना मनुष्य के जीवन में सब कुछ होने के बाद भी कुछ नहीं रह जाता है. क्योंकि संस्कार एक ऐसा माध्यम है, जिससे व्यक्ति का व्यक्तित्व तय होता है. बच्चों को जो संस्कार माता-पिता के द्वारा बचपन में दिया जाता है, वह संस्कार उसके जीवन में अंत तक रहता है. इसीलिए सभी माता-पिता को अपने बच्चों को बचपन से ही संस्कार देना चाहिए. जब बच्चा गर्भ में होता है, उसी समय से उसके आचरण, संस्कार की शुरुआत हो जाती है. माता-पिता के जो आचरण गर्भ के समय होता है, वही आचरण आगे चलकर बच्चों के संस्कार में भी देखा जाता है. जब बच्चा गर्भ में होता है, उस समय माता भगवान का ध्यान, चिंतन, मनन, स्मरण, भक्ति करती है, तो वही संस्कार बच्चों में भी भविष्य में दिखाई पड़ता है. इसका उदाहरण शास्त्रों में भी उल्लेख किया गया है.प्रहलाद जी जब गर्भ में थे, उस समय उनकी माता कयाधु भगवान की भक्ति आराधना करती थी. जिसके कारण प्रहलाद जी जन्म के बाद से ही भगवान के भक्ति करने लगे थे. इसीलिए सभी माता-पिता को अपने बच्चे, बच्चियों को सही संस्कार गर्भ में तथा बच्चा जन्म लेता है, उस समय से देना चाहिए. बच्चा एक महीना का हो, 2 महीना का हो, 6 महीना का हो या 1 साल, 2 साल का हो बचपन में जो संस्कार माता-पिता के द्वारा दिया जाता है, वह संस्कार पूरे जीवन में दिखाई पड़ता है. कई माता-पिता अपने बच्चों को बड़े होने का इंतजार करते हैं. बच्चा जब थोड़ा बड़ा हो जाएगा, तब उसको हम संस्कार देंगे. बचपन में माता-पिता बच्चों को लाड़ प्यार देते हैं. लेकिन संस्कार के लिए इंतजार करते हैं. इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि संस्कार ही बच्चों के लिए सर्वोत्तम शिक्षा, विद्या, ज्ञान, शक्ति, साधना का संसाधन है.
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