आरा. जिले भर में श्रद्धा व भक्ति के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत मनाया गया. व्रत की तैयारी में श्रद्धालु कई दिनों से लगे हुए थे. श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों में पूजा-अर्चना कर प्रतीक के रूप में दायें हाथ में धागे बांध ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान किया. सुबह होते ही लोग स्नान कर पूजा में लग गये. भगवान से सुख, शांति व समृद्धि की प्रार्थना की गई. अनंत ,जिसका अंत नहीं ,की पूजा को ले लोगों में उत्साह देखा गया. श्री अनंत चतुदर्शी पूजा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ की गई. अनंत भगवान श्री हरि विष्णु को कहा जाता है और इनकी पूजा की जाती है. श्रद्धालुओं ने अनंत भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने की प्रार्थना की. पूजा के बाद चौदह गांठों वाले सूत्र को अनंत भगवान का स्वरूप मानकर पुरुष दाएं व महिलाओं ने बाएं बाजू पर धारण किया. मान्यता है कि अनंत के चौदह गांठों में प्रत्येक गांठ एक-एक लोक का प्रतीक है. इसकी रचना भगवान विष्णु ने की है. गांवों में एक जगह एकत्रित होकर श्रद्धालुओं ने अनंत भगवान की पूजा धूमधाम से की. मंदिरों में लगी रही श्रद्धालुओं की भीड़ : अनंत चतुर्दशी व्रत को लेकर सुबह से ही भगवान की पूजा करने के लिए मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही. सड़कों पर पुरुषों के साथ श्रद्धालु महिलाएं मंदिरों की तरफ जाते हुए देखी जा रही थी. इससे पूरा माहौल अध्यात्म में सराबोर नजर आ रहा था. मंदिरों में पहुंचकर सभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. ताकि भगवान की पूजा किया जा सके. सभी ने अपने लिए भगवान से वरदान मांगा. बनाये गये सभी घरों में पूआ पकवान : भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाए जानेवाले अनंत चतुर्दशी व्रत को लेकर सभी घरों में पुआ पकवान बनाये गये. महिलाएं पवित्र ढंग से तैयार किये गये आटे से पूड़ी व पुआ बनायी तथा इसे भगवान पर चढ़ाया गया. इसके बाद लोगों ने प्रसाद रूप में पुआ पकवान को ग्रहण किया. भगवान कृष्ण ने बताया था अनंत सूत्र का महत्व 14 गांठ वाले धागे को बाजू में बांधने से भगवान विष्णु जो आदि और अनंत से परे हैं, उनकी कृपा प्राप्त होती है. अनंत चतुर्दशी का संबंध महाभारत काल से भी है. कौरवों से जुए में हारने के बाद पांडव जब वन-वन भटक रहे थे, तब एक दिन श्रीकृष्ण पाण्डवों के पास आए और युधिष्ठिर से कहा कि हे धर्मराज जुआ खेलने के कारण देवी लक्ष्मी आपसे नाराज हो गईं हैं. इन्हें प्रसन्न करने लिए आपको अपने भाइयों के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत रखना चाहिए. तब पांडवों ने यह व्रत रखा था. श्रीकृष्ण कहते हैं कि भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन कच्चे धागे में 14 गांठ लगाकर कच्चे दूध में डूबोकर ओम अनंताय नमः मंत्र से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इससे सभी समस्याएं दूर होती हैं. अनंत पूजा व्रत की कथा प्राचीन काल में सुमंतु नामक ऋषि अपनी पत्नी दीक्षा के साथ वन में निवास करते थे. ऋषि को एक पुत्री हुई. इसका नाम सुशीला रखा गया. सुशीला के जन्म के कुछ समय बाद इनकी माता दीक्षा का देहांत हो गया और सुमंतु ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया. लेकिन दूसरी मां सुशीला को पसंद नहीं करती थी. कुछ समय बाद जब सुशीला बड़ी हुई तो उसका विवाह कौण्डिल्य नामक ऋषि के साथ कर दिया गया. ससुराल में भी सुशीला को सुख नहीं था. कुछ लोगों को अनंददेव की पूजा करते देख सुशीला ने भी यह व्रत रखना शुरू कर दिया. उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता चला गया. सुशीला के पति कौण्डिल्य को लगा कि सब कुछ उनकी मेहनत से हो रहा है. कौण्डिल्य ऋषि ने कहा कि यह सब मेरी मेहनत से हुआ है और तुम इसका पूरा श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती हो. ऐसा कहकर उसने सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया. भगवान इससे नाराज हो गए और कौण्डिल्य फिर से गरीब हो गये. ऋषि को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से इनकी स्थिति फिर से अच्छी होती चली गयी.
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