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जूट मिल के बंद पड़े रहने से लुप्त हो रही है पाट की खेती, घटते दामों के कारण किसानों में उदासी

अररिया में पहले जहां किसानों के खेत में हरे-भरे लहलहाते पाट की फसल देखने को मिल रहा था. वहीं किसानों को भी पाट उपज के बलबूते पर ही बच्चों की शादी-विवाह से लेकर पढ़ाई-लिखाई तक की सभी जिम्मेदारी का निर्वान करने का दारोमदार पाट की खेती पर निर्भर रहता था. वहीं किसानों को बदलते समय के अनुसार खेतों से उपजे हुए पाट की उचित कीमत में बढ़ोतरी होने के बजाय घटते दामों के मिलने से किसानों में उदासी है.

अररिया में पहले जहां किसानों के खेत में हरे-भरे लहलहाते पाट की फसल देखने को मिल रहा था. वहीं किसानों को भी पाट उपज के बलबूते पर ही बच्चों की शादी-विवाह से लेकर पढ़ाई-लिखाई तक की सभी जिम्मेदारी का निर्वान करने का दारोमदार पाट की खेती पर निर्भर रहता था. किसान इसे नकदी फसल कहा करते थे. किसानों के खेतों में लहलहाते पाट फसल की निराई-गुड़ाई में दूर-दराज गांव से सकड़ों मजदूर खेतों में कार्यकरने के दौरान झुम-झुम कर किसानी गीत गाकर नीले गगन के नीचे मगन रहते थे. वहीं किसानों को बदलते समय के अनुसार खेतों से उपजे हुए पाट की उचित कीमत में बढ़ोतरी होने के बजाय घटते दामों के मिलने से किसानों में उदासी है.

पहले जहां पांच से छह सौ गाड़ी जूट की होती थी खरीद, वह घट कर पहूंच गयी है 200 गाड़ी पर :

जूट गोदाम के मालिक योगेश प्रसाद ने बताया अररिया जिले में पाट खरीदने के पांच गोदाम हैं. वर्तमान में पाट अधिकतर सुपौल जिला से पहुंचता है. अररिया में दो फिसदी ही किसान अपने खेतों में पाट का फसल लगाते हैं. इसलिए बिहार में समस्तीपुर जिला के मुक्तापुर रमेशरा जुट मील के बंद होने से किसानों को पाट की उपज की उचित कीमत नहीं मिल रही है. उन्होंने यह भी बताया जहां पूर्व में प्रत्येक गोदाम मालिक हर वर्ष पांच से छह सौ गाड़ी जूट खरीद करते थे. वहीं वर्तमान में 200 सौ गाड़ी पाट खरीद करने के दौरान ही सिमटना पड़ता है. किसानों के लिए जेसीआइ की सुविधा नहीं मिल रही है. किसानों को जूट बेचने के लिए किशनगंज व गलगलिया जाना पड़ता है. उन्होंने बताया लॉकडाउन से पहले पाट प्रति क्विंटल पांच हजार रुपये की दर से किसानों को दाम मिल रहा था. वहीं लॉकडाउन से आमलोग निकले भी नहीं पाट की कीमत में भारी गिरावट के साथ प्रति क्विंटल तीन हजार रुपये बतायी जा रही है. वहीं पाट गोदाम मालिक शंकर लाल प्रसाद ने बताया जहां समस्तीपुर के मुक्तापुर रमेशरा जूट मील के खुले रहने के दौरान किसानों को अपने पाट के उपज का उचित कीमत मिल रहा था. सरकार के माध्यम से जूट मील के बंद होने से कार्य कर रहे हजारों मजदूर बेरोजगार हो गये हैं. अपने परिवार का पालन करने के लिए दूसरे शहर पलायनकरने को विवश हैं. किसानों को पाट की उपज की उचित कीमत नहीं मिलने से समय के अनुसार खेती करने का धारा ही बदल दिया. हालांकि अररिया स्थिति भी सहारा जूट मील खोला गया था. वह भी कई सालों से बंद पड़ा है. सरकार के माध्यम से किसानों के लिए जूट मील, जेसीआइ, बिस्कोमान आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं है. किसानों को अपने फसल का उचित कीमत नहीं मिल रहा है. जबकि किसानों को देश का रीढ़ कहा जाता है. इसके बावजदभी किसानों को उनके फसलों का उचितकीमत भी उन्हें नहीं मिल रहा है. वहीं डीएओ संतलाल साह ने बताया जिले भर में कुल 26 हजार हेक्टर भूमि में पाट की फसल लगी हुयी है. किसानों में जविक खेती करने में अधिक रुचि की बात कही.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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