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भागवत धर्म से ही व्यक्ति हो सकता है संतुष्ट

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31-प्रतिनिधि, अररिया

आनंद माार्ग प्रचारक संघ की ओर से दो दिवसीय आनंद मार्ग धर्म महासम्मेलन का आऱ़़ंभ शनिवार को प्रभात संगीत, कीर्तन व सामूहिक साधना के साथ वंदना विजय मैरेज हॉल अररिया में हुआ. आनंद मार्ग के पुरोधा प्रमुख आचार्य किंषुक रंजन सरकार श्री श्री आनंदमूर्ति दर्शन पर बोलते हुए कहा कि मोटे तौर पर धर्म दो प्रकार के हैं, पहला स्वाभाविक धर्म व दूसरा भागवत धर्म, स्वाभाविक धर्म का अर्थ है जिसके करने से दैहिक संरचना की पुष्टि होती है, अर्थात् आहार, निद्रा, भय व मैथुन. वहीं भागवत धर्म वह है जो मनुष्य को दूसरे जीवों से पृथक करता है. स्वाभाविक धर्म व भागवत धर्म दोनों का उद्देय एक हीं है सुख प्राप्त करना, लेकिन स्वाभाविक धर्म में सुख की गहनता अत्यंत सीमित होती है, जबकि भागवत धर्म में सुख की गहनता, सुख की मात्रा अनंत होती है, जैसा कि मनुष्य सोचता है नाल्पे सुखमस्ति भूमैव सुखम्. भागवत धर्म से हीं कोई संतुष्ट हो सकता है, भागवत धर्म के चार स्तर हैं, परमात्मा, विस्तार, रस व सेवा प्रथम स्तर जीवों की पहुंच के बाहर हैं. वहीं द्वितीय विस्तार है जिसका अर्थ है सभी आपेक्षिक तत्वों की सीमा रेखा से बाहर लगातार प्रसार व विस्तार, यह जगत विस्तार प्रसारित रुप है, अर्थात कार्ये भावना इस जगत में जीव सभी जगह विष्णु को हीं देखता है. इसे हीं कहा जाता है आत्मवत् सर्वभूतेषु- सभी अभिव्यक्त वस्तुओं में अपनी आत्मा को हीं देखना चाहिए. इस धर्म महासम्मेलन में बिहार के विभिन्न जिलों, पश्चिम बंगाल व भारत के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में भाग ले रहे हैं. आनंद मार्ग प्रचारक संघ की सांस्कृतिक शाखा रेनासा आर्ट्रिस्टस एंड राइटर्स एसोसिएशन की ओर से प्रभात संगीत पर आधारित नृत्य नाटिका का मंचन शांंति निकेतन के कलाकारों के द्वारा होगा.

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मां महागौरी की पूजा-अर्चना

सिमराहा. सिमराहा थाना क्षेत्र में चैती नवरात्र की धूम चरम पर है. शनिवार को महाष्टमी के दिन तिरसकुंड पंचायत स्थित समौल हाट स्थित दुर्गा मंदिर में मां महागौरी की पूजा-अर्चना की गयी. देवी दुर्गा के पूजा व दर्शन के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ पूजा स्थल पर लगी रही. महाष्टमी के दिन होने के कारण मैया के दरबार में मन्नतें मांगने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. खासकर महिलाओं की संख्या अधिक देखी गयी. समौल हाट स्थित दुर्गा मंदिर में चैती नवरात्र का इतिहास पुराना है. कई वर्षों से यह वासंतिक नवरात्र में देवी भगवती की प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान के साथ पूजा अर्चना होती आ रही है. वहीं पूजा स्थल पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया.

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