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आठ वर्षीय लाचार बच्ची को नहीं मिल रही सरकारी मदद

दिन भर एक ही जगह पड़े रह कर सपना खुद से खेलती है और बातें करती है. उसकी कोई बात परिवार वालों के समझ से परे होता है. भूख लगने पर वह अजीबो-गरीब हरकत करने लगती है. जो थोड़ा बहुत दूध का इंतजाम हो पाता है. इससे ही उसका पेट भरने की कवायद तो की […]

दिन भर एक ही जगह पड़े रह कर सपना खुद से खेलती है और बातें करती है. उसकी कोई बात परिवार वालों के समझ से परे होता है. भूख लगने पर वह अजीबो-गरीब हरकत करने लगती है. जो थोड़ा बहुत दूध का इंतजाम हो पाता है. इससे ही उसका पेट भरने की कवायद तो की जाती है. लेकिन पेट खाली रह जाने के कारण उसकी यह हरकत खत्म नहीं होती. बच्चे को जीवित रखने के लिए जरूरी दूध का इंतजाम नहीं कर पाने की मजबूरी के कारण उसके परिवार के मन में चाहे तो अपनी जान दे देने या फिर बच्चे की जान ले लेने के विचार से दिल दहल जाता है.

सौ फीसदी अपंगता के बाद भी नहीं मिलता है विकलांगता पेंशन, पेंच में फंसा है आधार और एकाउंट खुलवाने का मामला
अररिया : बच्चों का जन्म हर परिवार में बेहद शुभ माना जाता है. परिवार में नये सदस्य के आगमन पर जश्न मनाने का चलन भी काफी पुराना है. आठ साल पहले रानीगंज के मिर्जापुर पंचायत अंतर्गत मोहनी गांव के वार्ड संख्या 1 में सपना के जन्म पर भी परिवार वालों ने जम कर खुशियां मनायी थी. बेहद निर्धन ऋषिदेव परिवार में दो बेटों के बाद पुत्री के रूप में सपना के जन्म पर उनके परिजन जश्न में डूबे थे. जन्म के कुछ दिन बाद ही परिवार वालों का यह जश्न धीरे-धीरे फीका पड़ने लगा. आम बच्चों की तरह सपना का विकास नहीं होता देख परिवार के लोगों में चिंताएं घर करने लगी थी. जन्म के एक साल बाद ही परिवार वालों को सपना के शत-प्रतिशत विकलांग होने का मामला समझ में आने लगा.
इलाज के लिए बेची जमीन, ऊंचे सूद पर लिया महाजन से कर्ज : अपनी तमाम परेशानियों और आर्थिक समस्याओं को दरकिनार करते हुए परिवार वाले उसके इलाज में जुट गये. थोड़ी बहुत जो पुस्तैनी जमीन थी. बच्चे के इलाज में चाहे तो बिक गयी. या फिर गिरवी रख दिये गये. इस पर भी इलाज के लिए जरूरी पैसों का जुटान नहीं होता देख महाजन से सूद की ऊंची दर पर बड़ी रकम कर्ज के तौर पर ले लिये गये. सारे जतन के बाद भी सपना की अपंगता दूर नहीं हो सकी. जैसे-जैसे सपना बड़ी होती गयी.
उसकी समस्या गहराती चली गयी. आठ साल बितने को हैं. इसके बाद भी सपना उठना, बैठना तो दूर अपने जगह से खुद हिल पाने में भी लाचार है. अपने आस-पास के अन्य बच्चों की तुलना में उसका खान-पान की आदतें पूरी तरह अलग है. आमतौर पर बच्चे इस उम्र में घर में बना खाना पसंद करने लगते हैं. इसके ठीक उलट सपना दूध के अलावा कुछ भी मूंह तक नहीं लेती. परिजन जैसे-तैसे उसके लिए डब्बाबंद बाजारू दूध का जुगाड़ करने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में सपना को जीवित रखने के लिए परिवार वालों को सरकारी तौर पर मिलने वाली मदद का आसरा ही बचा था. जो व्यवस्थागत कमियां व सरकारी पेंच में फंस कर दम तोड़ रहा है.
जान दे देने या जान ले लेने का ख्याल परिजन को करता है विचलित : विकलांगता की वजह से सपना का पूरा शरीर अकड़ चुका है. हाथ-पांव की ऊंगलियां तक सीधी नहीं रहती. इस कारण उसे गोद में उठाना भी बेहद मुश्किल होता है. अपने ननिहाल में पल रही सपना को बढ़ती उम्र के मुताबिक जरूरी पोशक भोजन उपलब्ध करा पाना परिजनों के लिए चुनौती बन चुका है. जरूरी पोषण नहीं मिल पाने के कारण उसका शरीर बेबस और बेजान हो चुका है. दिन भर एक ही जगह पड़े रह कर सपना खुद से खेलती है और बातें करती है. उसकी कोई बात परिवार वालों के समझ से परे होता है. भूख लगने पर वह अजीबो-गरीब हरकत करने लगती है.
जो थोड़ा बहुत दूध का इंतजाम हो पाता है. इससे ही उसका पेट भरने की कवायद तो की जाती है. लेकिन पेट खाली रह जाने के कारण उसकी यह हरकत खत्म नहीं होती. इसे देख परिवार वालों का कलेजा दहल उठता है. बच्चे को जीवित रखने के लिए जरूरी दूध का इंतजाम नहीं कर पाने की मजबूरी के कारण उनके मन में चाहे तो अपनी जान दे देने या फिर बच्चे की जान ले लेने के विचार से उनका मन विचलित हो उठता है.
आधार और एकाउंट खुलवाने में फंसा है पेंच
चिकित्सकीय रूप से शत प्रतिशत विकलांगता प्रमाणित होने के बाद भी विकलांगता पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है. सपना के नाना गोपाल ऋषिदेव कहते हैं कि काफी जतन के बाद भी सपना को पेंशन लाभ नहीं मिल पाया. पेंशन लाभ के लिए प्रखंड कार्यालय से संपर्क करने पर उन्हें सरकारी पेचिदगियों का हवाला खाली हाथ बैरन लौटा दिया जाता है. अधिकारी विकलांग बच्ची का आधार कार्ड व बैंक एकाउंट तलाशते हैं. प्रखंड के तमाम बैंक और आधार निर्माण सेंटर को खंगाल चुके सपना के नाना भावूकता भरे स्वर में कहते हैं. कोई बैंक वाला सपना का एकाउंट खोलने के लिए राजी नहीं हो रहा. गांव के सीएसपी संचालक के पांव पकड़ कर गिड़गिड़ाने की बात कहते हुए उनके आंखों से आंसू फूट-फूट कर निकल पड़ते हैं.
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