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विकास योजनाओं में जल निकासी की अनदेखी

जिले में बीते दिनों आयी बाढ़ व बाढ़ के कारण होने वाली तबाही को लेकर जहां जिलावासी अब भी दहशत में हैं. वहीं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में क्रियान्वित विकास योजनाओं को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. अररिया : जिले में साल दर साल आने वाली बाढ़ पर मुद्दत से नजर रखने वालों का भी […]

जिले में बीते दिनों आयी बाढ़ व बाढ़ के कारण होने वाली तबाही को लेकर जहां जिलावासी अब भी दहशत में हैं. वहीं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में क्रियान्वित विकास योजनाओं को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.
अररिया : जिले में साल दर साल आने वाली बाढ़ पर मुद्दत से नजर रखने वालों का भी मानना है कि बाढ़ तो जिले में आती ही रहती है. पर ऐसा जल प्रलय जिस में जिले के तीनों शहर डूब जाये इससे पहले कभी नहीं देखा. ऐसा भी पहली बार हुआ कि जिले की तोनों प्रमुख नदियां, परमान, बकरा व कनकई एक साथ एक तरह से उफना गयीं. वहीं बाढ़ के अध्यन करने वालों का कहना है कि नदियां हैं, तो बाढ़ आती रहेंगी. बाढ़ को रोका नहीं जा सकता. पर विभिषिका को कम करने के लिए जल प्रबंधन जरूरी है
सीता धार व कोसी धार सहित जल निकासी के सभी प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो चुके हैं. लोगों ने सस्ते दर पर जमीनें खरीद कर घर बन लिये. वहीं रही सही कसर राष्ट्रीय उच्च पथ, ग्रामीण सड़क सहित अन्य निर्माण योजनाओं ने पूरी कर दी. किसी भी निर्माण योजना में जल निकासी के मार्ग पर ध्यान ही नहीं दिया गया है. नदियों में गाद की मोटी परत जमा हो चुकी है. ऐसी परिस्थिति में नदियों का पानी अब आस पास के क्षेत्रों तक सीमित रहने के बजाये शहरों तक प्रवेश कर तबाही मचा रहा है.
बाढ़ की समस्या व निदान पर अपनी राय रखते हुए समाज सेवी व देसी पॉवर के एमडी शैलेंद्र शरण उर्फ बुल्लू जी कहते हैं कि बाढ़ पहले भी आती थी.
आगे भी आती रहेगी. बाढ़ को रोका नहीं जा सकता. दस बीस साल पहले पहले भी जिले में एक ही साल चार-चार बार बाढ़ आती थी. किसान इसके लिए तैयार रहते थे. अलग अलग खेतों में धान के बिचड़े तैयार किये जाते थे. ताकि एक बार क्षति होने पर फोरन दूसरी, तीसरी बार रोपनी की जासके. पर तब और अब आने वाली बाढ़ में फर्क ये दिख रहा है कि पहले बाढ़ का पानी दो तीन दिनों में खेतों से निकल जाता था. पानी का फैलाव भी नदियों के आस पास के क्षेत्रों तक ही रहता था. जान माल का इतना नुकसान नहीं होता था.
श्री शरण कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में बाढ़ की प्रवृति बदल गयी है. अरिया शहर रहिका माना जाता था. अधिकांश लोग अररिया शहर में केवल इस लिये आकर बसे थे कि ये ऊंचा है. बाढ़ से महफूज रहेगा. पर वर्ष 1987 के बाद एक बार फिर बाढ़ का पानी शहर में प्रवेश कर गया. लेकिन इस बार की बाढ़ से 1987 की रिकार्ड भी तोड़ दिया. इसी क्रम में बाढ़ के दिनों सांसद तसलीमुद्दीन से हुई बात चीत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सांसद भी इस बात को लेकर हैरान हैं कि जिलो की तीनों प्रमुख नदियां एक साथ कैसे उफना गयीं.
श्री शरण कहते हैं कि विकास के अव्यवस्थित तौर तरीकों से भी बाढ़ की तबाही बढ़ी है. शहर से लेकर गांव तक ऊंची ऊंची सड़कों का निर्माण हुआ.
पर निर्माण योजना बनाने वालों ने जल प्रबंधन व बाढ़ की पानी के प्राकृतिक बहाव के मार्ग को संरक्षित करने पर ध्यान नहीं दिया. श्री शरण कहते हैं कि शहर में नालों का निर्माण भी ऐसा हुआ कि इस बार की बाढ़ में नदियों का पानी उन नालों के जरिया भी शहर में दाखिल हो गया. होना ये चाहिए था कि उन नालों के द्वारा बाढ़ का पानी बाहर निकलता. पर बहाव उलटा देखा गया.
नदियों में जमी गाद को बाढ़ के कारण पर आनी राय देते हुए श्री शरण कहते हैं कि गाद जमा होने का एक कारण पानी के प्राकृतिक बहाव के मार्ग का अवरूद्ध होना भी है. श्री शरण के अनुसार नदियों गाद की सफाई भी जरूरी है. पर होना ये चाहिए कि नदियों से निकाले जाने वाले सिल्ट से नदियों के दोनों पाटों को भर कर उन पर पौधरोपण कर दिया जाये

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