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कोर्ट के फैसले के बावजूद जमीन पर कब्जा बनाये रखना संज्ञेय अपराध

पटना: भूमि सुधार के लिए सीलिंग एक्ट यानी भू-हदबंदी कानून के कई प्रावधानों को बदलने की तैयारी चल रही है. ये ऐसे प्रावधान हैं, जिन्हें भूमि सुधार की राह में बाधा माना गया है. इसी तरह जमीन की छह श्रेणियों का पुनर्निर्धारण करने और निजी जमीन पर किसी कोर्ट के फैसले के बावजूद उस पर […]

पटना: भूमि सुधार के लिए सीलिंग एक्ट यानी भू-हदबंदी कानून के कई प्रावधानों को बदलने की तैयारी चल रही है. ये ऐसे प्रावधान हैं, जिन्हें भूमि सुधार की राह में बाधा माना गया है. इसी तरह जमीन की छह श्रेणियों का पुनर्निर्धारण करने और निजी जमीन पर किसी कोर्ट के फैसले के बावजूद उस पर कब्जा बनाये रखने को संज्ञेय अपराध के दायरे में लाया जायेगा. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में इन प्रावधानों को बदलने पर मंथन चल रहा है.

अलग-अलग श्रेणी की करीब 20 लाख एकड़ जमीन को खेती के अयोग्य घोषित किया गया है. ऐसी भूमि का भौतिक सत्यापन महीने भर में कराने का निर्देश भूमि सुधार विभाग ने दिया है. सत्यापन से पता चल सकेगा कि जमीन को भूमिहीनों में बांटा जा सकता है या नहीं? सूत्रों के अनुसार जिस प्रकार सरकारी जमीन पर गैर कानूनी कब्जे को संज्ञेय अपराध बनाया गया है, उसी तर्ज पर निजी जमीन पर किसी कोर्ट से फैसला आने व तय समय सीमा के अंदर उससे कब्जा नहीं छोड़ने को संज्ञेय अपराध के दायरे में लाने की तैयारी चल रही है. राज्य में विभिन्न अदालतों में कुल 1151 मामले चल रहे हैं. इन मुकदमों में 93 हजार 846 एकड़ जमीन फंसी हुई है. इसके लिए कानून में बदलाव करना पड़ेगा. सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 में संशोधन किया जा चुका है.

सीलिंग कानून की एक धारा 45 बी को भी बदलने के बारे में सोचा जा रहा है. इस धारा में कुछ ऐसी कमी पाई गई है, जिसका लाभ उठाकर भू-धारी जमीन अपने पास रखने में कामयाब हो जाते हैं. लिहाजा, उच्च स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि बदले दौर में कानून के इस प्रावधान की कोई जरूरत नहीं रह गयी है. जानकारी के अनुसार सीलिंग में आयी जमीन को बचाने के लिए भू-धारी इस प्रावधान का इस्तेमाल कर लेता है.

इसके जरिये वह विभागीय मंत्री के पास आवेदन दे देता है और लंबे समय तक मामला पेंडिंग में रहता है. इसी तरह जमीन की श्रेणियों में भी बदलाव को जरूरी माना जा रहा है. फिलहाल छह श्रेणियों के तहत भू-धारी 15 से 45 एकड़ जमीन रख सकता है. माना जा रहा है कि जमीन का वर्गीकरण होने से सीलिंग से फालतू जमीन निकल सकती है. जैसे मान लिया कि एक दशक पहले कोई जमीन असिंचित थी और उसके तहत भू-धारी के पास 25 एकड़ जमीन थी. मगर अब उस जमीन पर सिंचाई की सुविधा मिल रही है. ऐसे में उस जमीन की श्रेणी बदल जायेगी. मंदिर, मठ और मस्जिद के नाम पर भी छुपी हुई है और उसे निकालने की जरूरत है.

भूमि सुधार के बाधक प्रावधानों को हटाया जाना जरूरी: व्यासजी
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी मिश्र ने प्रभात खबर से कहा कि हदबंदी घोषित भूमि या भूदान की हजारों एकड़ जमीन के बारे में बताया गया कि वह बांटने योग्य नहीं है. अयोग्य भूमि का मतलब है कि जिस जमीन पर कृषि कार्य नहीं हो सकता है. हम जानना चाहते हैं कि आखिर वह जमीन किस हालत में है. ऐसी जमीन का हम फिजिकल वेरीफिकेशन कराने जा रहे हैं. ऐसी जमीन का रकबा करीब 20 लाख एकड़ है. एक महीने के अंदर ऐसी जमीन का भौतिक सत्यापन कर लेने का टास्क दिया गया है. उन्होंने कहा कि भूमि कानून के कई प्रावधानों को बदलते समय के मुताबिक बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसे सीलिंग एक्ट के कई प्रावधानों को बदलने का मामला विचार के स्तर पर चल रहा है. उन्होंने कहा कि विभिन्न अदालतों में चल रहे मुकदमों के जल्द निबटारे के लिए पहल की जा रही है.

दो स्तरों पर सुधार की जरूरत: डॉ दिवाकर
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ डीएम दिवाकर ने कहा कि राज्य में भूमि सुधार को लेकर शॉर्ट और लांग टर्म नजरिये की जरूरत है. मेरा मानना है कि भूमि सुधार की जरूरत कायम है और इस दिशा में काम करने वाले अलग-अलग सामाजिक समूहों को हमने एक जगह लाने की कोशिश की है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि राजस्व व भूमि सुधार विभाग और सिविल सोसायटी के लोग बैठकर भूमि सुधार के बारे में विमर्श कर रहे हैं. मौजूदा कानून के तहत जिस हद तक सुधार की गुंजाइश है, उसे तत्काल अमल में लाने की जरूरत है. हदबंदी या भूदान के तहत मिली जमीन पर दखल और बेदखली का सवाल बना हुआ है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि शॉर्ट टर्म प्लान के तहत कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए भूमिहीनों का दखल-कब्जा हो. अब भी 1727 एकड़ जमीन से भूमिहीन बेदखल हैं. उन्होंने कहा कि उदारीकरण के बाद भूमि सुधार का मामला पीछे छूट गया और कॉरपोरेट को जमीन देने के वास्ते अनेक नीतियां बनायी गयीं. पर अगर राज्य के लाखों लोगों की गरीबी दूर नहीं होगी, तो सोसायटी के चैन से रहने की संभावना भी कम बचेगी. उन्होंने कहा कि लांग टर्म प्लान के तहत भूमि सुधार को लेकर व्यापक कार्ययोजना को जमीन पर उतारना है. लैंड रिफॉर्म रोड मैप में जनसंगठनों की सक्रिय भागीदारी के बगैर यह संभव नहीं है.

लैंड रिफॉर्म रोड मैप बनाने की तैयारी
बिहार में कृषि रोड मैप की तर्ज पर लैंड रिफॉर्म रोड मैप बनेगा. राज्य में गरीबी और विषमता दूर करने में भूमि सुधार की केंद्रीय भूमिका मानी जा रही है. 25 जनवरी को राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, देशकाल सोसायटी और दलित अधिकार मंच की साझा बैठक हुई. इसमें जमीन की अलग-अलग प्रकृति के मुताबिक अलग-अलग वर्किग ग्रुप बनाये जाने का फैसला किया गया. ये ग्रुप भूमि से जुड़े अलग-अलग मुद्दों मसलन, बेदखली, दाखिल-खारिज, अपील, भूमि का बेनामी ट्रांसफर, अधिशेष भूमि की पहचान आदि पर अपनी राय सुझायेंगे. अध्ययन के बाद वर्किग ग्रुप की ओर से लैंड रिफॉर्म रोड मैप सरकार के पास भेजा जायेगा.

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