पटना: पुलिस के एक आला अधिकारी ने ही देश की पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाये हैं. भारतीय पुलिस सेवा के आंध्र प्रदेश कैडर के अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी विनय कुमार सिंह ने अपनी पुस्तक ‘इज इट पुलिस?’ में लिखा है कि देश की मौजूदा पुलिस व्यवस्था केवल सत्ताधारियों और पैसेवालों के लिए ही है. हमारे पास आतंकवाद और नक्सली हिंसा से निबटने के लिए कोई कारगर कानून नहीं है.
अगर किसी पुलिस अधिकारी ने अच्छा काम किया है और वह अपनी ईमानदारी और कमर्ठता के लिए याद किया जाता है, तो इसके पीछे देश के मौजूदा कानून का हाथ नहीं, बल्कि उस व्यक्ति विशेष की अपने सेवा के प्रति अपनी ‘ग्लोरी’ के लिए है. श्री सिंह ने यहां तक कहा, अगर देश में पुलिस सिस्टम नहीं होता, तो देश की जनता ज्यादा सुखी होती.
गरीब ही रहते हैं जेल में : श्री सिंह ने कहा कि मैंने आंध्र प्रदेश के साथ-साथ बिहार में भी अपनी सेवाएं दी हैं. लेकिन हमने पाया है कि पुलिस अक्सर उसी का साथ देती है, जिसे या तो सत्ता का संरक्षण का प्राप्त है या फिर उनके पास पैसे की ताकत उपलब्ध है. उन्होंने कहा कि मैंने अपनी किताब में लिखा है कि जेलों में केवल उन्हीं लोगों को लंबे समय तक बंद रखा जाता है, जो गरीब तबके से संबंध रखते हैं. धन और सत्ता का संरक्षण प्राप्त लोगों को सजा मिलने के बाद भी जेल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती. श्री सिंह की इस किताब का विमोचन प्रख्यात गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने विगत 19 फरवरी को किया था. इस किताब ने देश में पुलिसिंग की पूरी व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे ने भी इस किताब का विमोचन करते हुए कहा था कि यह पुस्तक उस पुलिस अधिकारी की अंतरात्मा की आवाज है.
आतंकवाद व उग्रवाद से लड़नेवाले कानूनों में भी राजनीति : उन्होंने लिखा है कि आतंकवाद और नक्सलवाद के लड़ने वाली ‘पोटा’ और ‘टाडा’ जैसे कई कानूनों का राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है. सत्ता बदलने पर इन कानूनों का स्वरूप भी बदल दिया जाता है. इस किताब को लिखने के पीछे अपनी मानसिकता का खुलासा करते हुए श्री सिंह ने कहा कि जब वे स्कूल में पढ़ते थे, तब उनके शिक्षक पिता को हत्या के एक झूठे मामले में फंसा दिया गया था. पिता जी को जेल भी जाना पड़ा. बाद में सामाजिक आंदोलन के आगे पुलिस व्यवस्था को झुकना पड़ा और उनके पिता को न्याय मिला. भोजपुर के संदेश थाना क्षेत्र के अखगांव के रहनेवाले विनय कुमार सिंह 1987 बैच के आइपीएस हैं और उन पुलिस अधिकारियों में शामिल हैं, जिन्हें बिहार में एसटीएफ के गठन का श्रेय जाता है. तब वे बिहार में प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे थे.