नयी दिल्ली : महेंद्र सिंह धौनी ने कप्तानी के अपने कार्यकाल के दौरान अपनी आत्मा की आवाज पर सही समय पर सही निर्णय करने की क्षमता का अद्भुत उदाहरण पेश किया और एक बार फिर से उन्होंने अपने भारत के सीमित ओवरों के कप्तान पद से हटने का फैसला करके अपने इस कौशल को दिखाकर हर किसी को ‘स्टंप’ आउट करने में कोई कसर नहीं छोडी. किसी को पता नहीं कि धौनी ने अंग्रेजी की कविता ‘इनविक्टस’ पढ़ी थी या नहीं या उन्होंने हालीवुड अभिनेता मोर्गन फ्रीमैन की आवाज में यह सुना कि नहीं कि ‘‘मैं अपने भाग्य का मालिक हूं, मैं अपनी आत्मा का कप्तान हूं. ‘ कविता का भाव भिन्न हो सकता है लेकिन उसकी भावना कहीं न कहीं जुड़ी हुई है. धौनी ने कल रात जब अपना फैसला सार्वजनिक किया तो उनके मन में कहीं न कहीं ऐसे भाव बने होंगे. सुनील गावस्कर के बाद किसी भी भारतीय क्रिकेटर ने इस तरह की शिष्टता और दूरदर्शिता का परिचय नहीं दिया जैसा कि झारखंड के इस क्रिकेटर ने कल बीसीसीआई के जरिये सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ने की घोषणा करके दिया. जब गावस्कर ने कप्तानी से हटने का फैसला किया तो उन्होंने 1985 में बेंसन एंड हेजेस विश्व चैंपियनशिप जीती थी. इसके बाद जब उन्होंने संन्यास लिया तो चिन्नास्वामी स्टेडियम में 1987 में 96 रन की जानदार पारी खेली थी. ये ऐसे दौर थे जबकि लोग उनसे और खेलने की उम्मीद कर रहे थे.
रिकॉर्ड के लिए नहीं खेलते धौनी
खिलाडियों को हम अमूमन यह कहते हुए सुनते हैं कि ‘हम रिकार्ड के लिए नहीं खेलते’ लेकिन कितने इस पर अमल करते हैं. धौनी के मामले में हालांकि यह साबित होता है कि वह रिकार्ड के लिये नहीं खेलते. धौनी ने जब टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया तो वह देश की तरफ से 100 टेस्ट मैच खेलने से केवल दस टेस्ट दूर थे लेकिन उन्होंने अपनी दिल की आवाज सुनी और उस पर विश्वास किया. वह जानते थे कि विराट कोहली पद संभालने के लिए तैयार हैं. इसी तरह से इंग्लैंड के खिलाफ 15 जनवरी को पुणे में होने वाला पहला वनडे मैच धौनी का कप्तान के रुप में 200वां मैच होता लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं. 90 और 199 दो ऐसे नंबर हैं जो सारी कहानी कहते हैं और दिखाते हैं कि धौनी रिकार्ड की परवाह नहीं करते. अपने फैसले से उन्होंने कोहली को अगले विश्व कप के लिए टीम तैयार करने का 30 महीने का समय दे दिया है. इससे पता चलता है कि धोनी ने हमेशा भारतीय क्रिकेट के हित में फैसले किये. धौनी की अगुवाई में भारत ने दो विश्व कप ( एक 50 ओवर और दूसरा टी20 ) जीते. धौनी भारत के सर्वकालिक महान कप्तान हैं तथा सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह, कपिल देव और कोहली के साथ देश के चोटी के पांच वनडे खिलाडियों में शामिल हैं.
इन फैसलों के लिए याद किये जायेंगे धौनी
जिस तरह से किसी फिल्म में अभिनेता को कुछ विशिष्ट भूमिकाओं के लिए जाना जाता है उसी तरह से धौनी को दो फैसलों के लिए खास तौर पर याद किया जाएगा जिससे वह ‘कैप्टेन कूल’ बने. इनमें से पहला फैसला शुरुआती टी20 विश्व कप के फाइनल मैच में जोगिंदर शर्मा को आखिरी ओवर सौंपना और दूसरा मुंबई में विश्व कप 2011 के फाइनल में खुद युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी के लिए उतरना. धौनी ने कुछ बडे फैसले करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखायी. उन्हें पता था कि सौरव गांगुली और राहुल द्रविड जैसे खिलाडी आस्ट्रेलिया के बडे मैदानों पर वनडे में टीम पर कुछ हद तक बोझ बन सकते हैं और इसलिए उन्होंने 2008 की सीबी सीरीज ( वनडे श्रृंखला ) से पहले चयन समिति को अपनी भावनाओं से अवगत कराने में देर नहीं लगायी. इस श्रृंखला के दौरान गौतम गंभीर और रोहित शर्मा ने शानदार प्रदर्शन किया और इस तरह से धौनी का फैसला सही साबित हुआ.
मजाकिया हैं धौनी
धौनी भले ही आक्रामक खिलाडी थे लेकिन हाव भाव में नहीं. उनका मानना है कि खेलों में ‘बदला’ जैसा शब्द बहुत कड़ा है. इसके अलावा हास्य विनोद में भी उनका कोई जवाब नहीं है. एक बार डेविड वार्नर और रविंद्र जडेजा के बीच नोंकझोंक हो गयी. मैच समाप्ति पर इस बारे में धौनी से पूछा गया तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘जब स्कूली बच्चे स्नातक बनने के लिए कालेज जाते हैं तो ऐसा होता है. ‘ यही नहीं जब एक आस्ट्रेलियाई पत्रकार ने विश्व टी20 सेमीफाइनल में हार के बाद उनसे संन्यास के बारे में सवाल किया तो उन्होंने उस पत्रकार को अपने साथ मंच पर बुला दिया. किसी को यह मजाकिया तो किसी को अशिष्टता लगी लेकिन धौनी तो धौनी है. धौनी का यूट्यूब पर एक पुराना वीडियो है जिसमें उन्हें फिल्म ‘कभी कभी’ का मुकेश का गीत ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ गाते हुए दिखाया गया है. धौनी ‘दो पल का शायर’ से भी अधिक हैं. वह बेहतरीन मनोरंजनकर्ता है. वह अब अपने शानदार करियर के अंतिम पडाव पर हैं. हमें आखिर तक उनके साथ का लुत्फ उठाना चाहिए.