भारत एक ऐसा देश है जहां खेलों के प्रति दीवानगी का इतिहास काफी पुराना रहा है. रामायण-महाभारत काल में भी खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन का इतिहास रहा है. आज देश में भले ही क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी नजर आती हो, लेकिन कभी हमारे देश में मल्ल युद्ध, मलखंब, निशानेबाजी, तलवारबाजी एवं शतरंज जैसे खेलों के प्रति भी लोगों की दीवानगी दिखती थी. कई ऐसे खेल हैं जो भारत की मिट्टी में पनपे, ऐसा ही एक खेल है शतरंज. भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है शतरंज. जिसे फारसियों ने चेस (Chess) नाम दिया लेकिन प्राचीन काल में इस खेल को ‘अष्टपद’ के नाम से जाना जाता था. तो आइए जानते हैं शतरंज के रोचक इतिहास के बारे में.
शतरंज का इतिहास कम से कम 1500 साल पुराना है. शतरंज के खेल का आविष्कार भारत में हुआ था और इसे मूल रूप से अष्टपद (चौंसठ वर्ग) कहा जाता था. ‘अष्टपद’ संस्कृत में मकड़ी के लिए कहा जाता है. इसे ‘आठ पैरों के साथ एक पौराणिक’ 8×8 चेकर बोर्ड पर पासा के साथ खेला गया था. आज की Chess शतरंज की बिसात में 1,000 साल तक हम जैसे सफेद और काले वर्ग नहीं थे. अन्य भारतीय बोर्डों में 10 × 10 दासपद और 9 × 9 शनिवारांकम शामिल थे. राजा-महाराजा इस खेल में अपने दासों को हाथी, घोड़ा, आदि बना कर खेला करते थे. 600 ईस्वी में इस खेल को फारसियों द्वारा सीखा गया था जिन्होंने इसे शत्रुंज (Chess शतरंज ) नाम दिया था. यहां तक कि ‘चेकमेट’ शब्द भी फारसी शब्द शाह मेट से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘राजा मर चुका है!’
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शतरंज के खेल में काले और सफेद खानों से मिलकर एक बोर्ड बना होता है, जिसमें कुल 64 खाने होते हैं. जिसमें 32 खाने सफेद रंग के और 32 खाने काले रंग के होते हैं. शतरंज के खेल में 2 खिलाड़ी ही खेल सकते हैं. दोनों खिलाड़ियों के पास राजा, वजीर, दो हाथी, दो घोड़े, दो ऊंट और आठ सैनिक भी होते हैं. नियम के अनुसार, सफेद हमेशा पहले चलता है. इस बाद खिलाड़ी बारी-बारी से एक बार में केवल एक चाल चलते हैं. चाल चलकर या तो एक खाली वर्ग में जाते हैं या एक विरोधी के मोहरे वाले स्थान पर कब्जा करते हैं और उसे खेल से हटा देते हैं. खिलाड़ी कोई भी ऐसी चाल नहीं चल सकते जिससे उनका राजा हमले में आ जाये.
प्यादा या सैनिक: वजीर या राजा के आगे रखे गया पैदल या सैनिक को दो चौरस आगे चलता है. प्यादा (सैनिक) तुरंत अपने सामने के खाली वर्ग पर आगे चल सकता है या अपना पहला कदम यह दो वर्ग चल सकता है यदि दोनों वर्ग खाली हैं.
राजा: राजा किसी भी दिशा में एक खाने में जा सकता है, राजा एक विशेष चाल भी चल सकता है. अगर राजा को चलने बाध्य किया और किसी भी तरफ चल नहीं सकता तो मान लीजिये कि खेल समाप्त हो गया.
वजीर या रानी: वजीर (रानी) हाथी और ऊंट की शक्ति को जोड़ता है और ऊपर-नीचे, दायें-बाएँ तथा टेढ़ा कितने भी वर्ग जा सकता है, लेकिन यह अन्य टुकड़े पर छलांग नहीं लगा सकता है. सैनिक के हिसाब से इसका नौ अंक है.
ऊंट: केवल अपने रंग वाले चौरस में चल सकता है. यानी काला ऊंट काले चौरस में ओर सफेद ऊंट सफेद चौरस में. ऊंट किसी भी दिशा में टेढ़ा कितने भी वर्ग चल सकता है. सैनिक के हिसाब से इसका तीन अंक है.
घोड़ा: घोड़ा “L” प्रकार की चाल या डाई घर चलता है जिसका आकार दो वर्ग लंबा है और एक वर्ग चौड़ा होता है. घोड़ा ही एक टुकड़ा है जो दूसरे टुकड़ो पर छलांग लगा सकता है. सैनिक के हिसाब से इसका तीन अंक है.
हाथी: हाथी किसी भी पंक्ति में दायें बाएं या ऊपर नीचे कितने भी वर्ग सीधा चल सकता है, लेकिन अन्य टुकड़े पर छलांग नहीं लगा सकता. राजा के साथ, हाथी भी राजा के “केस्लिंग” ; के दौरान शामिल है. इसका सैनिक के हिसाब से पांच अंक है.
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वर्तमान में 1951 में स्थापित इंडिया चेस फाउंडेशन के द्वारा शतरंज के खेल का नियंत्रण व प्रतियोगिताओं को आयोजित किया जाता है. वैश्विक स्तर पर शतरंज के खेल का नियंत्रण इंटरनेशनल चेस फाउंडेशन के द्वारा किया जाता है. इस खेल को खेलने में जो व्यक्ति मास्टर होता है उसे ग्रैंड मास्टर की उपाधि दी जाती है. इस समय भारत में शतरंज के महानायक के रूप में विश्वनाथन आनंद को देखा जाता है. उनके अलावा दिव्येंदु बरुआ, बी. रवि कुमार जैसे कई खिलाड़ियों ने भी वैश्विक स्तर पर अपने देश का नाम रोशन किया है.