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विश्व रंगमंच दिवस : रंगमंच को पुनर्जीवित करने में जुटे घाटशिला के कलाकार

पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत घाटशिला के कलाकार वर्ष 1976 से रंगमंच से जुड़े हैं. यहां के कलाकारों ने बांग्ला और हिंदी नाटक का मंचन कर अपनी पहचान बनायी. ये रंगमंच कर्मी फिर से थिएटर के पुराने दिन लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), अजय पांडेय : पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत घाटशिला के लोगों में थिएटर को लेकर हमेशा से झुकाव रहा है. यहां बहुत सारे लोग थिएटर करते रहे, लेकिन वर्तमान में इसका क्रेज कम हो गया है. इसका कारण अब आम आदमी का रुझान थिएटर से हटकर टेलीविजन, सिनेमा और मोबाइल की ओर ज्यादा हो गया है. दरअसल, 1961 से हर साल 27 मार्च को वर्ल्ड थिएटर डे (विश्व रंगमंच दिवस) मनाया जाता है.

1976 से घाटशिला के कलाकार रंगमंच से जुड़े

घाटशिला में वर्ष 1976 में कलाकार काम कर रहे हैं. यहां के कलाकारों ने बांग्ला और हिंदी नाटक का मंचन कर अपनी पहचान बनायी. रंगमंच कर्मियों का कहना है कि हमारा उद्देश्य मन की भावना को व्यक्त करना, एक-दूसरे के विचारों को अभिव्यक्त करना है, क्योंकि एक नाटक में कई सारी चीजें महत्वपूर्ण होती हैं, जिससे लोगों को जागरूक किया जाता है. ये रंगमंच कर्मी फिर से थिएटर के पुराने दिन लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. जबतक रंगमंच जिंदा है, नाटक जिंदा रहेगा.

संयुक्त नाट्य कला केंद्र बनने के बाद एकजुट हुए रंगकर्मी

महासचिव सुशांत सीट ने बताया कि घाटशिला में संयुक्त नाट्य कला केंद्र बनने के बाद बांग्ला नाटक को पहचान दिलाने के प्रयास में तेजी आयी. उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेज के जमाने में नाटक करते थे. नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद रंगमंच की तरफ झुकाव बढ़ा.

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कभी खत्म नहीं होगी रंगमंच की सार्थकता : शेखर

शेखर मल्लिक ने कहा कि देश की आजादी के पूर्व भी रंगमंच था और आजादी के बाद भी है. बांग्ला नाटक (जात्रा) का क्रेज आज भी है. 1976 में ‘मादल ’संस्था बनी. मादल से रंग कर्मी जुड़ें. आज मादल नहीं है, मगर कलाकार हैं. ऐसे ही कलाकार आज बांग्ला नाटक को मुकाम तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं. युवा वर्ग को नाटक के माध्यम से समाज और देश में हो रही घटनाओं को जनता के समक्ष लाने की जरूरत है.

लेखकों की कर्मभूमि है घाटशिला बांग्ला नाटक फिर खड़ा होगा

बांग्ला और हिंदी नाटक में विद्युत सज्जा का काम करने वाले सेवानिवृत्त सरकारी कर्मी अमलान राय का कहना है कि घाटशिला लेखकों की कर्मभूमि रह चुकी है. बांग्ला नाटक को घाटशिला में फिर से जगह मिलेगी. उन्होंने कहा कि कुमार विश्वास के आने के बाद हिंदी कविता को नयी जगह मिली है. पूर्व में बांग्ला नाटक को जनता तरजीह देती थी. आने वाले दिनों में भी देगी.

2018 से बांग्ला नाटक के लिए दोबारा शुरू हुआ प्रयास

‘मादल’ के कलाकार रहे सुजन भट्टाचार्य का मानना है कि बांग्ला नाटक का घाटशिला में पहले भी क्रेज था और आज भी है. 2018 में चाक भांगा मधु, 2019 में लाश मिरा पाउक, 2021 में एकटी पुखुरेर श्रेणी चरित्रो, मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित हिंदी नाटक महंगा सौदा और 2022 में विभूति भूषण बंद्योपाध्याय लिखित आह्वान का नाटक का मंचन कर रंग कर्मियों ने घाटशिला को नाटक से जोड़ने का काम किया है.

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Prabhat Khabar News Desk
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