Vijaya Ekadashi Vrat Katha: विजया एकादशी फाल्गुन मास (Phalguna Month) की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है. इस एकादशी व्रत को शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला माना गया है. मान्यता है कि विजया एकादशी व्रत को रखने से एकादशी का तीन गुना फल प्राप्त होता है. इसे रखने से सुख समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है. विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) के मुताबिक लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले स्वयं श्रीराम ने विजया एकादशी का व्रत रखा था. साथ ही द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने इस व्रत का महत्व युधिष्ठिर को बताया था, जिसके बाद युधिष्ठिर ने विजया एकादशी व्रत रखा था और इस व्रत के प्रभाव से पाण्डवों ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी.
विजया एकादशी व्रत 16 फरवरी को रखा जाएगा
इस बार विजया एकादशी का व्रत 16 फरवरी को रखा जाएगा. यदि आप भी इस व्रत को रखने जा रहे हैं, तो पूजा के दौरान विजया एकादशी की व्रत कथा जरूर पढ़ें. ताकि आपकी मनोकामना पूरी हो. व्रत का पारण 17 फरवरी को किया जायेगा.
व्रत कथा जानें
द्वापरयुग में एक बार धर्मराज युद्धिष्ठिर ने श्रीकृष्ण भगवान से फाल्गुन एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा कि विजया एकादशी व्रत के बारे में भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले नारद को बताया था, इसके बाद त्रेतायुग में श्रीराम ने इस व्रत को रखा. इसकी कथा भी प्रभु श्रीराम से ही जुड़ी हुई है. कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने माता सीता के हरण के बाद रावण से युद्ध करने के लिए सुग्रीव की सेना को साथ लेकर लंका की ओर प्रस्थान किया तब लंका से पहले विशाल समुद्र को पार करना काफी मुश्किल था. श्रीराम मनुष्य अवतार में थे, इसलिए कोई चमत्कार नहीं करना चाहते थे, बल्कि आम मनुष्यों की तरह ही इस समस्या को निपटाना चाहते थे.
इस बीच श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से समुद्र पार करने का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा कि हे प्रभु वैसे तो आप सर्वज्ञ हैं, लेकिन फिर भी आप मुझसे ही इस बारे में जानना चाहते हैं, तो यहां से आधा योजन की दूरी पर वकदालभ्य मुनिवर निवास करते हैं. अगर हम उनके पास जाएंगे तो कोई न कोई समाधान जरूर मिल जाएगा. फिर भगवान श्रीराम मुनिवर के पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम कर अपनी समस्या उनके सामने रखी. तब मुनि ने उन्हें बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है. अगर आप समस्त सेना समेत इस व्रत को रखेंगे तो न सिर्फ समुद्र को पार कर जाएंगे, बल्कि लंका पर भी विजय प्राप्त करेंगे. फिर जब विजया एकादशी का दिन आया तो श्रीराम और उनकी सेना ने मुनिवर के कहे अनुसार विधि विधान से ये व्रत रखा. इसके बाद उन सभी ने रामसेतु बनाकर समुद्र को पार किया और लंकापति रावण को परास्त कर युद्ध में विजय प्राप्त की.