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Sawan Putrada Ekadashi 2022: पुत्रदा एकादशी व्रत 8 अगस्त को, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत नियम जानें

Sawan Putrada Ekadashi 2022: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और संतान की समस्याओं के निवारण के लिए किया जाता है. सावन की पुत्रदा एकादशी विशेष फलदायी मानी जाती है. श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, नियम जानें.

Sawan Putrada Ekadashi 2022: सावन की पुत्रदा एकादशी 8 अगस्त को है. जिन लोगों को किसी भी प्रकार की संतान संबंधी समस्या हो उन्हें यह व्रत अवश्य रखना चाहिए. साल में दो बार पुत्रदा एकादशी आती है, दूसरी पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह में पड़ता है. पुत्रदा एकादशी व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है, जिन लोगों की संतान नहीं है उन लोगों के लिए यह व्रत बहुत शुभफलदायी होता है, भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. अगर संतान को किसी प्रकार का कष्ट है तो भी यह व्रत रखने से सारे कष्ट दूर होते हैं, जो लोग पूरी श्रद्धा के साथ पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व और कथा को पढ़ता या श्रवण करता है. उसे कई गायों के दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है. समस्त पापों का नाश हो जाता है.

पुत्रदा एकादशी पूजा करने का शुभ मुहूर्त

श्रावण पुत्रदा एकादशी सोमवार, 8 अगस्त, 2022 को

9 अगस्त को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 05:47 सुबह से 08:27 बजे सुबह तक

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 05:45 शाम

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 07, 2022 को 11:50 बजे शाम

एकादशी तिथि समाप्त – अगस्त 08, 2022 को 09:00 बजे शाम

पुत्रदा एकादशी पूजा विधि

  • सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

  • पूजाघर में श्री हरि विष्णु को प्रणाम करके उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें.

  • इसके बाद व्रत का संकल्प करें.

  • धूप-दीप दिखाएं और विधिवत विष्णु जी की पूजा करें.

  • फलों, नैवेद्य से भोग लगाएं और अंत में आरती उतारें.

  • विष्णु जी को तुलसी अति प्रिय है, इसलिए उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें.

  • शाम के समय कथा पढ़ें या सुनें.

  • अगले दिन शुभ मुहूर्त में पारण करें.

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पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम

  • पुत्रदा एकादशी व्रत रखने से संतान से जुड़ी हर समस्या का निवारण हो जाता है.

  • यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है-निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत.

  • निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए.

  • अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए.

  • अगर आपको एकादशी का व्रत रखना है, तो दशमी तिथि से ही सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए.

  • एकादशी के दिन सुबह स्नानादि करके भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प लें.

  • तत्पश्चात श्री हरि विष्णु की पूजा करें.

  • एकदशी तिथि को पूर्ण रात्रि जाग कर भजन-कीर्तन और प्रभु का ध्यान करने का विधान है.

  • द्वादशी तिथि को सूर्योदय के समय शुभ मुहूर्त में से विष्णु जी की पूजा करके किसी भूखे व्यक्ति या ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और दक्षिणा देनी चाहिए.

  • व्रत में ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन भी करना चाहिए.

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