Papankusha Ekadashi 2023: अश्विन मास की एकादशी तिथि 25 अक्टूबर दिन बुधवार को है. इस एकादशी तिथि को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है. पापांकुशा एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. पापांकुशा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है. जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करता है, उसे हरि कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कब है पापांकुशा एकादशी
धार्मिक मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को 100 सूर्य यज्ञ और 1 हजार अश्वमेध यज्ञ करने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. पापों से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य जीवनभर जतन करता है, लेकिन इस एकमात्र एकादशी का व्रत करने से उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, इसका महत्व स्वंय श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था.
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 24 अक्टूबर दिन मंगलवार को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट से प्रारंभ होगी. इस तिथि की समाप्ति 25 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 32 मिनट पर होगी. वहीं उदयातिथि के आधार पर इस साल पापांकुशा एकादशी व्रत 25 अक्टूबर को रखा जाना उत्तम है.
पापांकुशा एकादशी पर बन रहे तीन शुभ योग
पापांकुशा एकादशी का व्रत पर तीन शुभ योग बन रहे है. पापांकुशा एकादशी के दिन रवि योग, वृद्धि योग और ध्रुव योग बन रहे हैं. इस दिन रवि योग सुबह 06 बजकर 28 मिनट से प्रारंभ हो रहा है. इस दोपहर 01 बजकर 30 मिनट तक मान्य रहेगा. वहीं वृद्धि योग प्रात:काल से प्रारंभ होगा और वह दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. उसके बाद से ध्रुव योग शुरू होगा और रात तक है.
पापांकुशा एकादशी व्रत पूजा मुहूर्त
पापांकुशा एकादशी व्रत की पूजा बुधवार की सुबह सूर्योदय के बाद से कर सकते हैं, क्योंकि उस समय से रवि योग और वृद्धि योग रहेगा. पूजा करने के लिए ये दोनों ही शुभ योग हैं. वृद्धि योग में आप जो भी कार्य करते हैं, उसके फल में वृद्धि होती है. रवि योग सूर्य के प्रभाव वाला होता है. एकादशी व्रत की पूजा राहुकाल में नहीं करनी चाहिए. इस दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 29 मिनट तक है. राहुकाल में एकादशी की पूजा नहीं करनी चाहिए.
पापांकुशा एकादशी व्रत का महत्व
पापांकुशा एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. इस दिन आप अपनी क्षमता के अनुसार दान करके पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं. पापांकुशा एकादशी पर अन्न, जल, तिल, गाय, भूमि, सोना आदि का दान करना चाहिए.
पापांकुश एकादशी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय विध्यांचल पर्वत पर क्रोधना नाम का एक बहुत ही क्रूर शिकारी रहता था. अपनी पूरी जिंदगी गलत कामों में जैसे कि हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी. कई गलत कर्म और बेजुबान जीवों को मारकर वह पाप का भागी बन चुका था, जब उसका अंतिम समय आया तो मृत्यु के डर से वह सहमा हुआ अंगिरा ऋषि के पास पहुंचा. क्रोधना ने महर्षि से बोला कि उसने जीवन में अनेक पाप किए हैं, जिससे मृत्यु के बाद उसे निश्चित ही नर्क मिलेगा.
एकादशी व्रत से गंभीर पाप धुल गए
अंगिरा ऋषि को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे पापांकुशा एकादशी के महत्व के बारे में बताया और इस व्रत को रखने की बात कही. ऋषि के कहे अनुसार उसने व्रत रखकर विधि विधान से श्रीहरि की आराधना की. व्रत के प्रभाव से उसे समस्त पाप कर्म से छुटकारा मिल गया और उसे बैकुंठ लोक में स्थान मिला. एकादशी के दिन प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन होता है, उसे 100 राजसूय यज्ञ करने के समान फल मिलता है.