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Navratri 2025: भारत में इन जगहों पर है दुर्गा मां के नौ रूपों का मंदिर, नवरात्रि में बढ़ जाता है महत्व

Navratri 2025: नवरात्रि का पर्व देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित होता है. हर दिन मां के अलग-अलग रूप की पूजा की जाती है. देशभर में मां दुर्गा के कई प्राचीन और अद्भुत मंदिर स्थित हैं. जहां भक्त बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ दर्शन करने जाते हैं. नवरात्रि में इन नौ देवियों के अद्भुत मंदिरों का दर्शन विशेष फलदायी माना जाता है.

Navratri 2025: नवरात्रि के पावन अवसर पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है और हर रूप की अलग महिमा बताई गई है. भारत में मां के इन स्वरूपों से जुड़े कई प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें अद्भुत और चमत्कारी माना जाता है. भक्त नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. माना जाता है कि नवरात्रि में नौ देवियों के मंदिरों का दर्शन करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

मां शैलपुत्री मंदिर, कैमूर (बिहार)

बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी मां मंदिर एक बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल है. यह मंदिर मां शैलपुत्री को समर्पित है, जिनकी विशेष पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है. मंदिर में देवी मुंडेश्वरी की आठ भुजाओं वाली भव्य प्रतिमा स्थापित है, जो भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है. पौराणिक दृष्टि से इसका निर्माण लगभग 108 ईस्वी में हुआ था, इसे विश्व के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण मंदिरों में गिना जाता है. नवरात्रि में यहां दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और माता के आशीर्वाद का अनुभव करते हैं.

यहां यज्ञ करने से पूरी होती है मनोकामनाएं

मंदिर में मां शैलपुत्री के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. पूजा के दौरान साधक मां शैलपुत्री को लाल फूल और चुनरी चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने लिए प्रार्थना करते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार नवरात्र के दौरान इस मंदिर में दर्शन और यज्ञ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

ब्रह्मचारिणी माता मंदिर,  देवास (मध्यप्रदेश)

मध्यप्रदेश के देवास जिले के घने जंगलों में बसा बगोई माता का मंदिर मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित एक पवित्र स्थल है. यह धाम देवास के बेहरी गांव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अपनी धार्मिक महिमा के लिए जाना जाता है. स्थानीय लोग बगोई माता के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं और मानते हैं कि यहां दर्शन करने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता. कहा जाता है कि माता अपनी कृपा से सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं, इसलिए नवरात्रि या अन्य पवित्र अवसरों पर यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं.

मां चंद्रघंटा मंदिर, चौक (प्रयागराज)

मां चंद्रघंटा का मंदिर प्रयागराज में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. यह मंदिर चौक इलाके में स्थित है और अपनी प्राचीनता और आध्यात्मिक महिमा के लिए जाना जाता है. नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त यहां विशेष रूप से पूजा और दर्शन करने आते हैं. मंदिर में मां चंद्रघंटा का रूप बेहद सुंदर और शक्ति से परिपूर्ण है, और कहा जाता है कि यहां आने वाला हर भक्त माता के आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि पाता है.

मां कुष्मांडा मंदिर, घाटमपुर, (कानपुर)

मां कुष्मांडा देवी का ये मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर में स्थित है. सागर-कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित है. मां कुष्मांडा देवी मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित है. एक कथा के अनुसार माना जाता है कि जब भगवान शंकर मां सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे, तो विष्णु जी ने अपने चक्र से मां सती के शरीर को कई अंगों में काट दिया था. जहां-जहां पर ये अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ बन गए हैं. माना जाता है कि मां सती का एक अंग इस जगह पर भी गिरा था.

मां स्कंदमाता मंदिर, विदिशा (मध्यप्रदेश)

मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में मां स्कंदमाता का एक विशाल मंदिर है, जहां संतान प्राप्ति के लिए विशेष पूजा होती है. मध्य प्रदेश के विदिशा शहर में स्थित मां स्कंदमाता का मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यह मंदिर अपनी विशालता और भव्यता के लिए जाना जाता है. खासकर संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले भक्त यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. नवरात्रि के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, और माना जाता है कि मां स्कंदमाता की कृपा से माता-पिता की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

मां कात्यायनी मंदिर, वृंदावन (उत्तरप्रदेश)

यह मंदिर देवी पार्वती के कात्यायनी रूप को समर्पित है. किंवदंतियों के अनुसार, कहा जाता है जब भगवान विष्णु ने सति के मृत शरीर को काटा था, तब उनके केश यहीं गिरे थे. इस मंदिर को उमा शक्ति पीठ या उमा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कात्यायनी शक्ति पीठ मंदिर हिंदू धर्म के 51 प्रतिष्ठित शक्तिपीठों में से एक है. यह वृंदावन में राधाबाग के पास बना है. कात्यायनी शक्ति पीठ वृंदावन में, देवी की तलवार, जिसे उचावल चंद्रहास कहा जाता है, की भी पूजा की जाती है. हर साल, खासकर नवरात्रि के दौरान, मंदिर में श्रद्धालुओं की खूब भीड़ लगती है.

मां कालरात्रि मंदिर, पटना (बिहार)

बिहार के पटना में बसा ये मंदिर लगभग 160 साल पुराना है और अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है. जिसे दरभंगा हाउस भी कहा जाता है. शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन यहां मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की विशेष पूजा की जाती है. मंदिर में मां काली की आराधना तांत्रिक विधि से की जाती है, और भक्त मानते हैं कि यहां आने से माता की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

ऐसे हुआ था मंदिर का निर्माण

18वीं शताब्दी में, दरभंगा रियासत के राजा कामेश्वर सिंह ने गंगा घाट पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. कहा जाता है कि राजा को मां काली का स्वप्न आया था, जिसमें उन्होंने उन्हें इस स्थान पर मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया था. इस मंदिर की खास बात है कि यहां सदियों से बलि देने की परंपरा चली आ रही है. नवरात्र के दिनों में आज भी नवमी के दिन यहां पशुओं की बली दी जाती है. वर्तमान समय में, यह मंदिर पटना विश्वविद्यालय का एक हिस्सा बन गया है. दरभंगा हाउस हमेशा से पर्यटकों के लिए पसंदीदा जगह रहा है.

महागौरी मंदिर, गया (बिहार)

गया में स्थित मंगला गौरी मंदिर 15वीं शताब्दी का प्राचीन धार्मिक स्थल है. यह मंदिर दया और मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली देवी महागौरी को समर्पित है. नवरात्रि और सावन मास में हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. यह शक्तिपीठ 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है और भक्त इसे अत्यंत पवित्र स्थान मानते हैं.

यहां गिरा था देवी सती का यह अंग

मांगला गौरी मंदिर को खास इसलिए भी महत्व प्राप्त है क्योंकि पुराणों के अनुसार यही वह स्थान है जहां देवी सती का स्तन गिरा था. यही कारण है कि इसे शक्तिपीठों में शामिल किया गया है और यहां आने वाले भक्तों को माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस मंदिर में अधिक संख्या में श्रद्धालु माता रानी के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि जो महिला इस मंदिर में अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ पहुंचती है, तो उन्हें मां शैलपुत्री का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पति को लंबी उम्र का वरदान प्राप्त होता है.

मां सिद्धदात्री मंदिर, कोलार (भोपाल)

भोपाल के कोलार इलाके की पहाड़ियों में स्थित सिद्धदात्री पहाड़ावाली मंदिर एक प्राचीन और प्रसिद्ध देवी स्थल है. इसे जीजीबाई मंदिर या पहाड़ी वाली माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां देवी सिद्धिदात्री को भक्त अपनी बेटी की तरह पूजते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग माता को नई चप्पल, सैंडल, चश्मा और घड़ी जैसे उपहार चढ़ाते हैं. यह परंपरा लगभग 25 साल पुरानी है, जब मंदिर के संस्थापक पंडित ओम प्रकाश महाराज ने देवी को अपनी बेटी मानकर पूजा शुरू की थी.

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JayshreeAnand
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कहानियों को पढ़ने और लिखने की रुचि ने मुझे पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया. सीखने और समझने की इस यात्रा में मैं लगातार नए अनुभवों को अपनाते हुए खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं. वर्तमान मे मैं धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नजदीक से समझने और लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं.

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