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Parshuram Jayanti 2020: विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं भगवान परशुराम, जानिए क्यों काट दिया था गणेशजी का दांत

परशुरामजी के भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. भगवान परशुराम की जयंती बैसाख मास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. तृतीया तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल की सुबह 11 बजकर 51 मिनट से होने जा रही है.

परशुरामजी के भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. भगवान परशुराम की जयंती बैसाख मास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. तृतीया तिथि की शुरुआत 25 अप्रैल की सुबह 11 बजकर 51 मिनट से होने जा रही है. हर साल परशुराम जयंति पर जगह-जगह कार्यक्रम का अयोजन किया जाता था, लेकिन इस बार देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण सोशल मीडिया पर लोगों से भगवान परशुराम की जयंती दीपोत्‍सव के रूप में मनाने के लिये अपील की जा रही है.

हिंदू धर्म में मान्यता है कि ये चिरंजीवी हैं और आज भी धरती पर मौजूद हैं. भगवान परशुराम काफी क्रोधी स्वभाव के माने जाते थे. भगवान पशुराम के क्रोध का सामना एक बार भगवान गणेश को भी करना पड़ा था. गणेश जी ने एक बार परशुराम जी को कैलाश जाने से रोक दिया था. जिससे क्रोधित होकर परशुराम जी ने गणेशजी का एक दांत काट दिये थे. भगवान राम और परशुराम की मुलाकात तब हुई जब राम जी ने सीता स्वयंवर के समय भगवान शिव के धनुष को तोड़ दिया था, जिससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम श्रीराम का वध करने की सोच ली थी, लेकिन जब भगवान विष्णु के शारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो परशुरामजी ने भगवान राम की वास्तविकता को जान लिया और आशीर्वाद देकर चले गए.

भगवान परशुराम के जन्‍म की कहानी बहुत ही विचित्र है. यह ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे. ब्राह्मण होते हुए भी इनमें क्षत्रियों के गुण आ गए थे. इसकी एक रोचक कथा है. प्राचीन काल में कन्‍नौज के राजा थे गाधि. उनकी पुत्री का नाम सत्‍यवती था. सत्‍यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र से हुआ था. संतान की कामना से सत्यवती अपने ससुर भृगु ऋषि से आशीर्वाद लेने गईं. सत्यवती की मां को भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने ऋषि भृगु से माता के लिए संतान का आशीर्वाद मांगा. ऋषि से हुआ था. भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो फल दिए और बताया कि स्नान करने के बाद सत्यवती और उनकी माता को पुत्र की इच्छा लेकर पीपल और गूलर के पेड़ का आलिंगन करना है. फिर इन फलों का सेवन करना है.

सत्‍यवती की मां के मन में लालच आ गया और उन्‍होंने दोनों फलों की अदला-बदली कर दी. सत्‍यवती का फल उन्‍होंने खुद खा लिया और बेटी को अपना वाला फल दे दिया. जब भृगु ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि अब तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय गुणों वाला होगा. इससे परेशान होकर सत्यवती ने कहा कि ऐसा ना हो. भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो जाए. कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ. युवा होने पर महर्षि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ. इस तरह परशुराम का जन्म हुआ, जो जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी कर्म से क्षत्रिय गुणों वाले थे.

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