Grahan 2026: नया साल 2026 आने वाला है और नए साल के साथ ग्रहों की चाल में भी कई बदलाव देखने को मिलेंगे. हर साल की तरह इस साल भी सूर्य और चंद्र ग्रहण लगेंगे. कभी साल में 4 ग्रहण होते हैं तो कभी 5 या उससे ज्यादा. ये एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है, लेकिन हिंदू धर्म और ज्योतिष में ग्रहण का खास महत्व माना जाता है.
कब लगता है ग्रहण
ग्रहण तब लगता है जब राहु और केतु (छाया ग्रह) सूर्य और चंद्रमा के साथ एक सीधी रेखा में आ जाते हैं. ऐसे में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण बनता है. मान्यता है कि इस समय सूर्य और चंद्रमा की ऊर्जा प्रभावित होती है, इसलिए ग्रहण के दौरान कोई शुभ या मांगलिक काम नहीं किया जाता. कई लोग मानते हैं कि ग्रहण का असर दुनिया और लोगों के जीवन पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है.
2026 का पहला ग्रहण कब लगेगा
द्रिक पंचांग के अनुसार, 2026 का पहला ग्रहण 17 फरवरी 2026, मंगलवार को लगेगा. यह एक वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, जिसे “रिंग ऑफ फायर” भी कहा जाता है. यह ग्रहण फाल्गुन मास की कृष्ण अमावस्या को पड़ेगा. इस दिन आसमान में सूर्य एक चमकीली रिंग की तरह दिखाई देगा, जो देखने में बेहद सुंदर और अद्भुत होगा.
यह विषय अक्सर ग्रहण के समय सबसे ज्यादा पूछा जाता है—क्या बच्चों और बुजुर्गों पर सूतक लागू होता है या नहीं? परंपरागत मान्यताओं और ज्योतिषीय नियमों के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ एन के बेरा ने इसके बारे में बताया है, आइए जानें विस्तार से.
क्या बच्चों पर सूतक मानना जरूरी है?
शास्त्रों के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर सूतक लागू नहीं होता. इसे अबोध अवस्था कहा गया है, यानी बच्चे सही–गलत का निर्णय नहीं कर पाते. इसलिए उन पर ग्रहण के नियम या कठोर पाबंदियाँ नहीं लगाई जातीं. हालाँकि, कई परिवार बच्चों को ग्रहण के दौरान बाहर न निकलने या तेज रोशनी से दूर रखने की सलाह देते हैं, जो अधिकतर सावधानी के तौर पर होती है, धार्मिक वजहों से नहीं.
क्या बुजुर्गों पर सूतक लागू होता है?
परंपरागत रूप से माना गया है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों को सूतक का पालन अनिवार्य नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस उम्र में कठोर व्रत, उपवास या सूतक संबंधी नियमों को निभाना सेहत के लिए सुरक्षित नहीं माना जाता. बुजुर्गों को सामान्य दिनचर्या जारी रखने की छूट दी जाती है, बस वे पूजा-पाठ या धार्मिक कार्य ग्रहण समाप्त होने के बाद करें.
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क्यों बनाया गया यह नियम?
सूतक का उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध रखना था. प्राचीन काल में ग्रहण को अशुभ माना जाता था, इसलिए कुछ पाबंदियाँ बनाई गईं. लेकिन बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों ने उन्हें कठोर नियमों से मुक्त रखा.

