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Buddha Purnima 2021: सिद्धार्थ ने गया के इस गुफा में छह वर्षों तक की थी कठोर तपस्या, सुजाता ने जब खिलाई खीर तो जानिए बुद्ध को क्या मिला था ज्ञान

भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती आज बुधवार की सुबह 8:00 बजे से आयोजित की गयी. इसके लिए पहले ही तैयारी पूरी कर ली गयी थी. बीटीएमसी के बौद्ध भिक्षु आज हाथों में चीवर, खीर, फूल इत्यादि लेकर शोभायात्रा के साथ महाबोधि मंदिर पहुंचते हैं और सर्वप्रथम मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध का चीवर बदलने के बाद उन्हें खीर अर्पित करते हैं. बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के पश्चिमी हिस्से में स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे वज्रासन के समीप पुष्प अर्पित कर सुत्तपाठ किया जाता है.

भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती आज बुधवार की सुबह 8:00 बजे से आयोजित की गयी. इसके लिए पहले ही तैयारी पूरी कर ली गयी थी. बीटीएमसी के बौद्ध भिक्षु आज हाथों में चीवर, खीर, फूल इत्यादि लेकर शोभायात्रा के साथ महाबोधि मंदिर पहुंचते हैं और सर्वप्रथम मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध का चीवर बदलने के बाद उन्हें खीर अर्पित करते हैं. बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के पश्चिमी हिस्से में स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे वज्रासन के समीप पुष्प अर्पित कर सुत्तपाठ किया जाता है.

सिद्धार्थ ने प्रागबोधि गुफा में छह वर्षों तक की थी तपस्या

मगध यूनिवर्सिटी के बौद्ध अध्ययन विभाग से सेवानिवृत्त प्राध्यापक सह बीटीएमसी में छह वर्षाों तक सदस्य रहे डॉ राम स्वरूप सिंह ने बताया कि बोधगया से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ढूंगेश्वरी पहाड़ी में प्रागबोधि गुफा है. यहां राजकुमार सिद्धार्थ ने ज्ञान की खोज में छह वर्षों तक तपस्या हिंदू साधना की पराकाष्ठा हठयोग के तहत की थी. बताया जाता है कि अपने कुछ शिष्यों के साथ उन्होंने यहां छह वर्षों तक घोर साधना की और तब उन्होंने खाना-पीना भी छोड़ दिया था. भोजन न मिलने के कारण उनका शरीर कंकाल का रूप धारण कर लिया था और आज भी यहां कंकाल बुद्धा के रूप में बुद्ध की मूर्ति स्थापित है. बौद्ध श्रद्धालु यहां आकर कंकाल बुद्धा का दर्शन करना नहीं भूलते. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी प्रागबोधि गुफा का वर्णन किया है.

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Buddha purnima 2021: सिद्धार्थ ने गया के इस गुफा में छह वर्षों तक की थी कठोर तपस्या, सुजाता ने जब खिलाई खीर तो जानिए बुद्ध को क्या मिला था ज्ञान 3
सुजाता गढ़ में बुद्ध ने खायी थी खीर

कहा जाता है कि ढूंगेश्वरी पहाड़ी से साधना के बाद संतुष्ट नहीं होने पर सिद्धार्थ ने पहाड़ की तलहटी से होते हुए मुहाने नदी पार की और तब नदी के कछार पर स्थित सेनानी ग्राम में एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम किया. उनके साथ उनके शिष्य भी थे. इसी दरम्यान सेनानी ग्राम की युवती सुजाता ने उन्हें खीर खिलायी. कहा जाता है कि इसके बाद ही उन्हें मध्यम मार्ग का ज्ञान हुआ और उन्होंने कहा कि शरीर भी जरूरी है.

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कहा जाता है कि तब उनके विचार में एक भाव आया, जिसमें कहा गया कि वीणा के तार को इतना मत ढीला छोड़ो कि संगीत ही न निकले और इतना भी न कसो कि वह टूट जाये. इस कारण मध्यम मार्ग अपनाना ही उचित होगा. बाद में यहां एक विशाल स्तूप का निर्माण किया गया, जिसे दो-तीन दशक पहले खुदाई के बाद जीर्णोद्धार कर वर्तमान स्थिति में संरक्षित किया गया है. बौद्ध श्रद्धालु इस विशाल बौद्ध स्तूप को देखना नहीं भूलते.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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