Hanuman Chalisa Path on Wednesday: बुधवार को पारंपरिक रूप से बुद्धि, वाणी और व्यापार का दिन माना गया है. ज्योतिष में यह दिन बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जो व्यक्ति के निर्णय, सौभाग्य और कार्यक्षेत्र को प्रभावित करता है. धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जी का आशीर्वाद बुध ग्रह के अशुभ प्रभावों को शांत करता है. इसलिए बुधवार को हनुमान चालीसा का पाठ विशेष फलदायी माना गया है. यह न केवल मानसिक शक्ति देता है, बल्कि जीवन में चल रहे अड़चनों के मार्ग भी खोलता है.
हनुमान चालीसा पाठ से खुलते हैं भाग्य के द्वार
हनुमान चालीसा के प्रत्येक दोहे में शक्ति, भक्ति, साहस और सकारात्मक ऊर्जा का अद्भुत समन्वय है. ऐसा माना जाता है कि बुधवार को इसका पाठ करने से मन में दृढ़ता आती है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं. जब व्यक्ति का मन और विचार मजबूत होते हैं, तो सौभाग्य के मार्ग स्वतः खुलने लगते हैं. हनुमान जी को संकटमोचक कहा गया है, और बुधवार का पाठ जीवन की बाधाओं, कर्ज़ के बोझ तथा कार्यक्षेत्र में आने वाली रुकावटों को दूर करने में सहायक माना जाता है.
बुध ग्रह के दोष शांत करने में चालीसा का महत्व
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में बुध ग्रह कमजोर होता है, उन्हें अक्सर निर्णय लेने में परेशानी, व्यापार में नुकसान या मन में अस्थिरता का अनुभव होता है. बुधवार को हनुमान चालीसा पढ़ने से बुध दोष शांत होता है, जिससे व्यक्ति की सोच स्पष्ट होती है और कामों में सफलता मिलने लगती है.
सही विधि से करें हनुमान चालीसा का पाठ
बुधवार की सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और हनुमान जी के सामने दीप जलाकर हनुमान चालीसा का पूरे ध्यान और श्रद्धा से पाठ करें. यदि संभव हो तो लाल चोला, सिंदूर और गुड़-चने का भोग लगाएं. नियमित बुधवार पाठ से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जीवन में सौभाग्य के नए अवसर आने लगते हैं.
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हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)
॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥

