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देवघर : 1783 में ऐसा था बाबा मंदिर का प्रांगण, ऐसे करें भगवान शिव की पूजा-अर्चना

देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर की यह दुर्लभ पेंटिंग 1783 की है. इस ऑयल पेंटिंग को ब्रिटिश चित्रकार विलियम होज्स ने बनाया था. तब उन्होंने इस क्षेत्र में 49 दिन प्रवास किया था. एक बिल्वपत्र से शिवार्चन तीन जन्मों के पापों का नाशक श्रावण माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के […]

देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर की यह दुर्लभ पेंटिंग 1783 की है. इस ऑयल पेंटिंग को ब्रिटिश चित्रकार विलियम होज्स ने बनाया था. तब उन्होंने इस क्षेत्र में 49 दिन प्रवास किया था.
एक बिल्वपत्र से शिवार्चन तीन जन्मों के पापों का नाशक
श्रावण माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है. एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है. शिव पूजा में शिवलिंग पर रुद्राक्ष अर्पित करने का भी विशेष फल एवं महत्व है, क्योंकि रुद्राक्ष शिव नयन जल से प्रगट हुआ है. इसी कारण शिव को यह अति प्रिय है.
शिव को प्रिय
भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए महादेव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय है.
भोलेनाथ की कृपा चाहिए, तो जल बचाएं
शिव और जल के अंतर्संबंधों के रहस्य को समझे बिना शिवलिंग के जलाभिषेक का माहात्म्य नहीं जाना जा सकता. यह ऐसा तत्व है, जो शिवभक्ति में जल के महत्व को बताता है और यह ज्ञान देता है कि शिव की कृपा पाने के लिए जल का सम्मान और उसके सदुपयोग के प्रति सचेतनता आवश्यक है. इसे तीन शिव-तत्वों से समझा जा सकता है- जल, गंगा और रुद्राक्ष.
शिवपुराण में वर्णित है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं :
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्‌।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥
अर्थात जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है, वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है. इस लिहाज से शिव की पूजा का अर्थ है जल की पूजा. इसलिए शिवलिंग का जलाभिषेक तो करें, किंतु दैनिक जीवन में जल को व्यर्थ बहाने से बचना चाहिए और उसके महत्व को समझ कर उसकी पूजा करनी चाहिए. शिव की कृपा पानी है, तो जल को व्यर्थ में नहीं बहाना चाहिए.
सावन में भगवान शिव की पूजा में जल का ही विशिष्ट महत्व है. सावन में समुद्र मंथन से प्राप्त विष के पान से उत्पन्न जलन को शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव पर नदियों के जल की धारा बहायी थी. उसी प्रथा के अनुसार शिवलिंग पर जलार्पण किया जाता है. वहीं, गंगा शिव जी की जटा में वास करती हैं.
रुद्राक्ष भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. वस्तुत: रुद्राक्ष भगवान रुद्र की आंखों से गिरे आंसू से उत्पन्न हुआ है. यह अश्रुजल का पावन प्रतीक है. अत: जल के प्रति उपेक्षा और अनादर का व्यवहार एक शिवभक्त के लिए उचित नहीं है. भालेनाथ की कृपा चाहिए, तो जल बचाएं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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