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बोकारो के गोमिया में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था एशिया के पहले बारूद फैक्ट्री का उद्घाटन

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बेरमो अनुमंडल के गोमिया में 5 नवंबर 1958 को एशिया महादेश के पहले बारुद कारखाना का उदघाटन किया था. वे स्पेशल सैलून से बेरमो के गोमिया आये थे. रेलवे धनबाद ऑफिस में हवलदार के पद पर कार्यरत गोमिया के रामधन राम उनके साथ ड्यूटी पर आये थे.

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बेरमो अनुमंडल के गोमिया में 5 नवंबर 1958 को एशिया महादेश के पहले बारुद कारखाना का उदघाटन किया था. वे स्पेशल सैलून से बेरमो के गोमिया आये थे. रेलवे धनबाद ऑफिस में हवलदार के पद पर कार्यरत गोमिया के रामधन राम उनके साथ डयूटी में स्पेशल सैलून से धनबाद से गोमिया तक साथ आये थे.

खुली जीप से पहुंचे थे फैक्ट्री

यहां से वे खुली जीप से आइसीआइ कंपनी गये तथा बारुद कारखाना का उदघाटन व निरीक्षण करने के बाद मजदूरों को संबोधित किया था.इसके बाद लौटने के क्रम में सड़क के दोनों ओर खड़े ग्रामीणों से मिले तथा उनकी समस्याएं सुनी थी. कहा था इस कि प्लांट को चलाने में आप सहयोग करें. यह देश आपका है. देश में उद्योग धंधों का विस्तार होगा तो लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

लक्ष्मण मांझी को एमएलसी बनाने की अनुशंसा की थी

डॉ राजेंद्र प्रसाद गोमिया आने के बाद यहां के पुराने स्वतंत्रता सेनानी होपन मांझी व उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी से मिले थे.उन्हें बताया गया कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान रामगढ़ अधिवेशन में भाग लेने के लिए जाने के क्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी होपन मांझी के घर रुके थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बिहार के तात्कलीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लक्ष्मण मांझी को एमएलसी बनाने की अनुशंसा की थी. बाद में उन्हें एमएलसी बनाया भी गया था. गोमिया बारुद कारखाना प्लांट का उदघाटन करने के बाद शाम को करीब पांच बजे डॉ राजेंद्र प्रसाद उसी स्पेशल सैलून से वापस धनबाद लौट गये थे.

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बाद में गोमिया बारुद कारखाना का नाम पडा आइइएल ओरिका

गोमिया में बारुद कारखाना खोलने के पीछे सरकार ने कई दृष्टिकोण से गोमिया को उपयुक्त माना था.बगल में कोनार नदी का पानी मिल गया. निर्मित सामान को बाहर भेजने के लिए मुश्किल से एक किमी की दूरी पर गोमिया रेलवे स्टेशन से रेलवे मार्ग था. यहां प्रचुर मात्रा में बारुद खपाने के लिए कोयला खदानें भी मिल गई. आज भी कोल इंडिया की कई खदानों में गोमिया का ही बारुद कोयला खनन के क्रम में ब्लास्टिंग के लिए उपयोग किया जाता है. यूनाईड किंगडम (लंदन) की कंपनी आइसीआइ (इम्पेरियल कैमिकल इंडस्ट्रीज) से गोमिया में बारुद कारखाना खोलने के लिए तात्कालीन केंद्र सरकार ने आग्रह किया था. 90 के दशक में आस्ट्रेलिया की कंपनी ओरिका ने इसे अपने अधीन ले लिया तथा इसका नाम आइइएल ओरिका पड़ गया.

अरब कंट्री से चीन भूटान तक जाता था प्रोडक्ट

इस बारुद कारखाना में बारुद के अलावा नाइट्रिक एसिड,अमोनिया,नाइट्रो फ्लोराइड का भी उत्पादन किया जाने लगा.वर्तमान में कमर्शियल एक्सप्लोसव्सि में इनस्येटिंग एक्स प्लोसिव ,पैकेज एक्सप्लोसिव ,बल्क एक्सप्लोसिव आदि कई प्रकार के उत्पाद तैयार हो रहा है. यहां निर्मित सामानों की खपत पूरे देश के अलावा अरब कंट्री, चीन,भूटान, इंडोनेशिया, वर्मा आदि आदि देशों में भी सप्लाई किया जाता था. अभी भी यहां का बारुद देश-विदेश में जाता है. अपने देश में टाटा स्टील, वेदांता खासकर कोयला उद्योग में इसकी काफी डिमांड है. लगभग एक सौ के करीब कई देशों मे सप्लाई की जाती है. वर्तमान में देश में एक्सप्लोसव्सि उत्पाद में काफी कंपिटिशन का दौर चल रहा है. छोटी मोटी कंपनियों के द्वारा एक्सप्लोसिव तैयार किया जा रहा है.

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कंपनी गुणवक्ता के साथ सुरक्षा का रखती है पूरा ख्याल

ओरिक कंपनी में सुरक्षा के साथ गुणवता पर विशेष ध्यान दिया जाता है. ओरिका का उत्पाद गुणवता को देखते हुये कभी भी मूल्यों पर समझौता नहीं कर उत्पाद को देश व विदेशों में निर्यात किया जाता है. जिसका परिणाम है कि ओरिका का उत्पाद एक्सप्लोसिव विश्व के बाजार में काफी मांगे व विख्यात रहा है. आइसीआइ कंपनी ने गोमिया में बारुद कारखाना के अलावा उस वक्त कानपुर में खाद कारखाना (चांद छाप यूरिया) तथा मद्रास में आइसीआइ पैंट का कारखाना खोला था. जिस वक्त गोमिया में बारुद कारखाना खोला गया था, उस वक्त करीब 12 सौ एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. कंपनी के जीएम राकेश कुमार कहते हैं कि प्रतष्ठिान में जो भी एक्सप्लोसिव तैयार किये जाते हैं उसपर विशेष रूप से सुरक्षा और गुणवता पर ध्यान दिया जाता है.

द एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामिनर

राजेंद्र प्रसाद पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे, उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था. उनकी एग्जाम शीट को देखकर एक एग्जामिनर ने कहा था कि द एक्जामिनी इज बेटर देन एक्जामिनर. राजेन्द्र बाबू ने अपनी आत्मकथा के अलावा कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ”बापू के कदमों में बाबू”, ”इंडिया डिवाइडेड”, ”सत्याग्रह ऐट चम्पारण”, ”गांधीजी की देन” और ”भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र” शामिल हैं. अपने जीवन के आखिरी वक्त में वह पटना के निकट सदाकत आश्रम में रहने लगे थे. यहां पर 28 फरवरी 1963 में उनका निधन हो गया.

रिपोर्ट : राकेश वर्मा, बेरमो

Prabhat Khabar Digital Desk
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