28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

Hindu College के सिंपोजियम वार्षिकोत्सव में बोलीं ममता कालिया- साहित्य में अतीत नहीं वर्तमान को लिखने पर हो जोर

Hindu College के साहिित्य सिंपोजियम में साहित्यकार ममता कालिया ने स्त्री लेखन पर विस्तार से बात की.

Hindu College : अतीत में जाकर लिखना आसान होता है किंतु लेखक को अतीत नहीं बल्कि वर्तमान को लिखने पर जोर देना चाहिए. लेखन स्त्री के प्रश्नों का हो या जीवन के दूसरे सवाल,अच्छे लेखक को हमेशा अतिवादिता से बचना चाहिए. सुप्रसिद्ध लेखिका ममता कालिया ने उक्त विचार हिंदू महाविद्यालय में एक आयोजन में व्यक्त किए. वे महाविद्यालय की संस्था सिंपोजियम के वार्षिकोत्सव में ‘साहित्य में स्त्री और स्त्री का साहित्य’ विषय पर व्याख्यान दे रही थीं. ममता कालिया ने कहा कि साहित्य में स्त्री हमेशा रही हैं. हालांकि आधुनिक काल में स्त्री की दशा और दिशा को दिखाने का शुरुआती प्रयास बांग्ला लेखकों ने किया जिनमें शरत चंद्र,रवींद्रनाथ ठाकुर का नाम सबसे महत्वपूर्ण है. भारत में नवजागरण और लेखन साथ-साथ आया. नवजागरण के साथ ही शिक्षा आयी और स्त्रियों में कलम चलाने की हिम्मत पैदा हुई. दुलाईवाली कहानी की लेखिका राजेंद्र बाला घोष के संस्मरणों को सुनकर प्रेमघन जी ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया और इस प्रकार एक स्त्री के जीवन के किस्से ही लेखनी का स्पर्श पाकर साहित्य का हिस्सा बन गए.


ममता कालिया ने बताया कि राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से उन्हें गांव की बहुत सी स्त्रियों से बात करने का मौका मिला जिसमें उन्हें पता चला कि स्त्रियों को समस्या होने पर भी वे आवाज नहीं उठाती. ऐसी स्त्रियों को उनके हक के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि वे थोपी हुई नैतिकता और आदर्शवादिता की बेड़ियां तोड़ सकें. साहित्य में स्त्री लेखन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि नए लेखन की मुखर शुरुआत मन्नू भंडारी की कहानियों से होती है जिनकी कहानियां समाज और पुरुषवादी मानसिकता को चुनौती देने वाली थीं. स्वाधीनता आंदोलन से जुड़कर उन्होंने समाज को जागरूक करने का भी कार्य किया. राजेंद्र यादव ने भी हंस पत्रिका के माध्यम से लेखिकाओं को प्रोत्साहित किया. मोहन राकेश,कमलेश्वर ने भी सफल-असफल संबंधों पर खूब लिखा.


ममता कालिया ने कहा कि स्त्री लेखन को स्त्री देह तक सीमित नहीं रहना चाहिए. स्त्रियों को समाज के अन्य पहलुओं को भी लेखन का दायरा बनाना चाहिए. उन्होंने इस विषय पर समकालीन लेखिकाओं के उदाहरण भी प्रस्तुत किए. जिनमें उषा प्रियंवदा, मधु कांकरिया, नीलाक्षी सिंह,अलका सरावगी, गीतांजलि श्री की कृतियों का उदाहरण देकर स्त्री लेखन के वृहद आयामों को उद्घाटित किया. गीतांजलि श्री के उपन्यास रेत समाधि का विस्तृत उल्लेख कर उन्होंने कहा कि यह उपन्यास विभाजन की समस्या पर केंद्रित है जिसमें एक बूढ़ी औरत अपने घर को देखने के लिए लाहौर जाना चाहती है. कालिया ने देवेश की रचना मेट्रोनामा और वंदना राग के उपन्यास बिसात पर जुगनू को विषय की विविधता की दृष्टि से उत्कृष्ट बताया.

व्याख्यान के अंत में कालिया ने कहा कि स्त्री के हक में लेखन ठीक है लेकिन जिस प्रकार पुरुषवाद गलत है उसी प्रकार स्त्रीवाद भी. किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती. लेखन में टकराव के माध्यम से अपनी खोई हुई अस्मिता को पाना एक लक्ष्य हो सकता है किंतु किसी की अस्मिता को दबा कर गैर बराबरी मिटाई नहीं जा सकती. कार्यक्रम में सिंपोजियम के परामर्शदाता डॉ सुमित नंदन, राजनीति विज्ञान के डॉ अनिरुद्ध प्रसाद, डॉ कस्तूरी एवं डॉ रितिका मौजूद रहे. सोसायटी की अध्यक्ष चार्वी ने प्रारंभ में ममता कालिया का स्वागत किया. आयोजन में अंग्रेजी, हिंदी, राजनीति विज्ञान समेत अन्य विभागों के विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे. उक्त जानकारी हिंदू कॉलेज के साहित्य सभा के अध्यक्ष आकाश मिश्रा ने दी.

Also Read : Hindu College में हुआ गोवा के शैक्षणिक समूह का स्वागत, प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा- हिंदू कॉलेज का चरित्र और स्वभाव सार्वभौमिक

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें