Waqf Act controversy : वक्फ एक्ट के विरोध में कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. संभावना है कि इन याचिकाओं पर 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. वक्फ एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वालों में पहला नाम कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद का था. उनके अलावा आप विधायक अमानतुल्ला खान, डीएमके के ए राजा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, मुस्लिम धर्मगुरुओं की संस्था केरल जेम-इय्यातुल उलमा और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी वक्फ एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
वक्फ एक्ट अब देश का कानून है और वक्फ संशोधन विधेयक से वक्फ एक्ट तक का जो सफर है, वह पूरी तरह से भारतीय संविधान में वर्णित प्रावधानों के अनुसार ही है, ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर एक्ट के किन प्रावधानों पर मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों को आपत्ति है, आखिर क्यों वे वक्फ एक्ट को असंवैधानिक बता रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट उनकी किस तरह से सहायता कर सकता है?
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गईं हैं याचिकाएं
मुस्लिम संगठन और राजनीतिक दलों ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाएं दाखिल की हैं. संविधान का अनुच्छेद 32 अपने नागरिकों को यह अधिकार देता है कि अगर उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वे सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं, इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट जाना किसी लिहाज से गलत नहीं है. इस अनुच्छेद के तहत दायर याचिकाओं में यह कहा गया है कि मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का हनन है और उनकी धार्मिक परंपरा वक्फ पर आघात करने वाला है. भारतीय कानून के विशेषज्ञ और प्रसिद्ध शिक्षाविद् फैजान मुस्तफा ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताया कि कोई भी व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, लेकिन इस मामले में तत्काल राहत नहीं दी जाएगी.
असदुद्दीन ओवैसी की याचिका में क्या कहा गया है?
एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया है कि वक्फ एक्ट मनमाना है और धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ता है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार ओवैसी का यह भी आरोप है कि यह एक्ट शरीयत का उल्लंघन करता है और मुसलमानों को अपने धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन करने से रोकता है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में यह कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करने के लिए यह बिल लाया गया है.
संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में क्या है प्रावधान?

संविधान का अनुच्छेद 25 और 26 दोनों ही धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है. अनुच्छेद 25 में कहा गया है- ‘प्रत्येक व्यक्ति को अंतरात्मा की स्वतंत्रता तथा धर्म को ग्रहण करने, उस पर आस्था रखने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता होगी. वहीं अनुच्छेद 26 में कहा गया है – प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी भाग को निम्नलिखित अधिकार होंगे-
- (क) धार्मिक कार्यों का स्वेच्छया प्रबंध करने का अधिकार
- (ख) धर्मार्थ उद्देश्य के लिए संस्थाओं की स्थापना और उन्हें बनाए रखने का अधिकार
- (ग) ऐसी संस्थाओं की संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार
- (घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रबंध करने का अधिकार
कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा बताते हैं कि अनुच्छेद 26 से जुड़े कुछ मुद्दे हैं, क्योंकि धार्मिक संप्रदायों को अपनी संपत्ति का प्रबंधन करने का अधिकार है, लेकिन राज्य उन्हें व्यवस्थित करने के लिए कानून बना सकता है.लेकिन यहां विरोध कानून बनाने का नहीं, उसके कुछ प्रावधानों को लेकर है.
क्या वक्फ एक्ट को गलत तरीके से संसद से पास कराया गया है?
वक्फ बिल के संसद में पेश होने से लेकर इसके कानून बनने तक विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगाता रहा है कि यह बिल असंवैधानिक है और इसे पास करवाने में सरकार ने मनमानी की है. इस संबंध में हमने दो विशेषज्ञों से बात की. फैजान मुस्तफा यह कहते हैं कि वक्फ एक्ट बिलकुल कानूनी तरीके से पास हुआ है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है. वहीं अयोध्या नाथ मिश्रा कहते हैं कि वक्फ एक्ट बिलकुल विधायी प्रक्रियाओं के तहत पास हुआ है. बिल पहले पेश हुआ, फिर गहन विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास गया. उसके बाद सुझावों को बिल में शामिल किया गया,तब जाकर बिल दोबारा संसद में पेश हुआ. दोनों सदन में बहस हुई, सभी पार्टियों को बोलने का मौका मिला और मतदान के जरिए बिल पास हुआ, इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
वक्फ एक्ट में संशोधन का 1995 में हुआ था स्वागत, 2025 में विरोध क्यों?
वक्फ एक्ट 1954 में बना था, इसका उद्देश्य यह था कि देश में जो वक्फ संपत्तियां हैं उनका दुरुपयोग ना हो. वक्फ संपत्ति का प्रबंधन सही ढंग से हो और उसकी उचित जानकारी और इस्तेमाल हो. बावजूद इसके वक्फ संपत्ति को लेकर देश में विवाद होते रहे. 1995 में वक्फ एक्ट में संशोधन किया गया और कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए. इसके तहत एक सेंट्रल वक्फ कौंसिल की स्थापना की गई, जो राष्ट्रीय स्तर पर वक्फ पर निगरानी रखता है. वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड रखता है और विवादों का निपटारा भी करता है.बावजूद इसके वक्फ से जुड़े विवाद कम नहीं हुए और वक्फ बोर्ट पर भ्रष्टाचार और अनियमितता के गंभीर आरोप लगे, जिसके बाद सरकार नया संशोधन लेकर आई, जिसमें कई तरह के प्रावधान किए गए हैं-
पहले विवादित वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व का निर्णय वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता था, लेकिन अब यह अधिकार बोर्ड के पास नहीं बल्कि जिला कलेक्टर जैसे सरकारी अधिकारियों के पास होगा. इस प्रावधान से बोर्ड की ताकत कमजोर हुई है.
‘वक्फ बाय यूजर’ का प्रावधान हटाए जाने से नाराजगी
‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने से भी मुस्लिम समुदाय नाराज है. उनका कहना है कि पहले की व्यवस्था में यदि कोई संपत्ति लंबे समय से धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों के लिए इस्तेमाल की जा रही थी तो उसे वक्फ संपत्ति माना जाता था, भले ही उसका कोई दस्तावेज ना हो, लेकिन अब इस प्रावधान को हटा दिया गया है, अब दस्तावेज जरूरी हो गया है. कानून के विरोधियों का कहना है कि इस प्रावधान को हटाने से कई ऐतिहासिक मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर खतरा उत्पन्न हो गया है.
कानूनविद् फैजान मुस्तफा का कहना है कि 1995 का संशोधन वक्फ बोर्ड को मजबूत करता था, जबकि 2025 का संशोधन उसे कमजोर करता है, यही वजह है कि इसका विरोध हो रहा है. जो अपील सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है उनपर कोर्ट सुझाव तो नहीं दे सकता, लेकिन कुछ प्रावधानों को रद्द कर सकता है या उन्हें कमतर कर सकता है, लेकिन इसमें कई साल लगेंगे. निकट भविष्य में कुछ नहीं होने वाला है.
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