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मुस्लिम समाज देता है महिलाओं को संपत्ति पर हक, लेकिन बेटों के मुकाबले मिलता है आधा

Property Rights of Muslim women : "और जो कुछ अल्लाह ने तुममें से किसी को दूसरों की तुलना में अधिक दिया है, उसकी इच्छा न करो. पुरुषों के लिए उनके कर्मों के अनुसार भाग है और महिलाओं के लिए उनके कर्मों के अनुसार भाग है. और अल्लाह से उसका अनुग्रह मांगो. निस्संदेह, अल्लाह प्रत्येक चीज का ज्ञान रखता है." (Surah An-Nisa 4:32) कुरान के इस आयत में एक तरह से मुस्लिम समाज में महिलाओं के अधिकार पर बात की गई है. कुरान ने मुस्लिस महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार दिए हैं और वह एक मां, पत्नी और बेटी के रूप में उस अधिकार का प्रयोग करती है.

Property Rights of Muslim women :  भारतीय मुस्लिम समाज पर गौर करें, तो हमें वहां महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नजर नहीं आती है, इसलिए जब संपत्ति पर अधिकार की बात आती है, तो यह मसला और भी गंभीर हो जाता है कि क्या मुस्लिम समाज ने अपनी बेटियों को संपत्ति पर अधिकार दिया है? इतिहास पर गौर करें, तो पाएंगे कि गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश ने अपनी बेटी रजिया सुल्तान को अपना वारिस चुना जबकि उनके उत्तराधिकारी बेटे मौजूद थे. भोपाल की पहली महिला नवाब कुदसिया बेगम का जिक्र भी आता है, जिससे यह बात साफ होती है कि मुस्लिम समाज महिलाओं को अपना वारिस मानता है. चल–अचल दोनों तरह की संपत्ति में बेटियों को हक दिया जाता है, लेकिन उनका हक बेटों के बराबर नहीं बल्कि उनका आधा है. आइए जानते हैं मुस्लिम समाज ने महिलाओं को संपत्ति पर किस तरह के अधिकार दिए हैं.

मुस्लिम समाज में महिलाओं को संपत्ति पर वाजिब हक: मौलाना तहजीब

मौलाना तहजीब बताते हैं कि इस्लाम में बेटियों को संपत्ति पर वाजिब हक दिया गया है और उसे लेकर कोई विवाद नहीं है. इस्लाम में बेटियों को एक चौथाई का हिस्सा मिलता है और इस्लाम को मानने वाला हर इंसान अपनी बेटियों को यह हक देता है. मुस्लिम लाॅ यह कहता है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी बेटी के हक को मारता है और उसके हक की जमीन पर नमाज भी करवाता है, तो वह नमाज सही नहीं मानी जाएगी. कहने का आशय यह है कि बेटियों को हर हाल में उनका हक देना है. अगर किसी का हक मारा जाता है तो वह कोर्ट जा सकती है और अपने हक के लिए मांग कर सकती है.

मुस्लिम समाज भरण–पोषण नहीं, महिलाओं को संपत्ति पर देता है हक : ए आलम 


Property Rights Of Muslim Women
मुस्लिम परिवार में औरतों का हक

झारखंड हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट ए आलम बताते हैं कि मुस्लिम समाज में औरतों को संपत्ति पर पूरा हक दिया गया है. उनका हक महज भरण–पोषण का नहीं है, लेकिन बेटियों को बेटों के बराबर नहीं बल्कि उनका आधा हक दिया गया है. यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि ऐसा क्यों किया गया है. मुस्लिम समाज में बेटियों को किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं दी गई है, जबकि बेटों के ऊपर पूरी जिम्मेदारी है. पिता की मौत के बाद अगर उसपर कोई कर्ज है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी बेटे की होती है, मां अगर जीवित है तो उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी ताउम्र बेटे की ही होती है, बेटियों पर यह फर्ज नहीं. यही वजह है कि संपत्ति में अधिकार भी बेटों को बेटियों का दोगुना दिया गया है. अगर किसी व्यक्ति की सिर्फ बेटियां हैं और बेटे नहीं हैं तो उन्हें संपत्ति का2/3  मिलेगा और अगर सिर्फ एक बेटी है तो उसे कुल संपत्ति का आधा मिलेगा. यह तो बात हुई एक बेटी की संपत्ति में हिस्सेदारी की. अगर कोई महिला विधवा हो जाए, तो उसे पति की संपत्ति का 1/8 मिलेगा अगर उस महिला की कोई संतान ना हो  और पति की मृत्यु हो जाए, तो पत्नी को संपत्ति का 1/4 हिस्सा मिलेगा. अगर कोई औरत मां की हैसियत में है, तो उसे पुत्र की संपत्ति का 1/6 मिलेगा. यह कुरान के अनुसार औरतों को संपत्ति पर अधिकार दिए गए हैं. मुस्लिम पर्सनल लाॅ में भी यही बातें लागू हैं और अगर किसी औरत का हक मारा जाता है, तो कोर्ट की शरण में जा सकती है.

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इस्लाम बेटियों को देता है खुद की संपत्ति कमाने और उसका मालिकाना हक

कुरान के अनुसार महिलाओं को अपनी मेहनत के अनुसार संपत्ति कमाने और उसे  रखने  का अधिकार है. वह खुद कमाई संपत्ति की मालकिन होती है. वह उस संपत्ति को खर्च कर सकती और अपने मनमाफिक उसका इस्तेमाल भी कर सकती है. अगर किसी महिला को उसकी संपत्ति से जबरन वंचित किया जाए तो यह इस्लाम में हराम है.

बराबरी की बात कर रही हैं बेटियां

संत थाॅमस स्कूल की शिक्षिका रजिया कहती हैं कि आज समाज काफी बदल चुका है. अब बेटियां भी मां–बाप का उसी तरह ख्याल रखती हैं, जैसे की बेटे. इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक मिले. लेकिन बेटियों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि जब वे संपत्ति में बेटों के बराबर हक मांग रही हैं, तो उन्हें जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी. बेटों को इसलिए हक ज्यादा है कि उनके ऊपर जिम्मेदारी ज्यादा है, लेकिन जब बेटियां भी बराबर फर्ज निभाएंगी, तो बेशक उन्हें भी संपत्ति में उतना ही अधिकार मिलना चाहिए. 

माॅस कम्यूनिकेशन की छात्रा (गोस्सनर काॅलेज) कशफ आरा कहती हैं कि हमारे परिवार में बेटे और बेटियों के बीच कोई फर्क नहीं किया जाता है. हमारे पापा ने कभी हमारे बीच भेदभाव नहीं किया, इसलिए मन में यह ख्याल कभी आया ही नहीं है कि पापा कुछ भाई को ज्यादा देंगे और मुझे कम. मुझे यह लगता है कि पापा अपनी प्राॅपर्टी में से बच्चों को जो भी देंगे उसमें मुझे भी बराबर का हक मिलेगा.

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