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History of Wearing Sindoor : भारतीय समाज में सिंदूर लगाने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है. हिंदू मान्यता के अनुसार यह अखंड सौभाग्य का प्रतीक है. यह एक विवाहित स्त्री की पहचान और उसके समर्पण और शक्ति का भी प्रतीक माना जाता है. चूंकि सिंदूर हमारी परंपरा का हिस्सा है और परंपरा कहने का अर्थ ही है कि वह हमारी संस्कृति का वह पक्ष जिसकी शुरुआत के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध ना हो. बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि सिंदूर लगाने की परंपरा का इतिहास हजारों साल पुराना है और धार्मिक मान्यताओं में भी यह मौजूद है.
कब हुई थी सिंदूर लगाने की शुरुआत?
भारतीय सभ्यता में सिंदूर लगाने की परंपरा काफी पुरानी है. शिव पुराण में ऐसा बताया गया है कि माता पार्वती ने वर्षों की तपस्या के बाद जब भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया, तो उन्होंने सिंदूर को अपना सुहाग चिह्न बनाया और यह भी कहा कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी उसके पति के आयु लंबी होगी. स्कंद पुराण में भी सिंदूर का जिक्र मिलता है. त्रेता युग में माता सीता को विवाह के वक्त सिंदूर लगाया गया था, वहीं द्वापर में द्रौपदी भी सुहाग चिह्न के रूप में सिंदूर लगाती हैं. भारतीय परंपरा के अनुसार सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक है, वह एक विवाहित स्त्री की पहचान भी है. भारतीय परंपरा में देवी दुर्गा शक्ति का प्रतीक हैं. देवी दुर्गा को माता पार्वती का ही स्वरूप माना जाता है. देवी दुर्गा लाल सिंदूर लगाती हैं और उसे उनकी शक्ति का प्रतीक माना जाता है.
सिंधु घाटी सभ्यता में भी मौजूद है सिंदूर लगाने की परंपरा

सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक माना जाता है. इस काल की जो मूर्तियां सामने आई हैं, उसमें स्पष्ट तौर पर महिलाओं को सिंदूर लगाए हुए दिखाया गया है. देवियों की मूर्तियों में सिर के बीच में सीधी रेखा बनी हुई है, जिसपर लाल रंग भरा है, जिसके बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह सिंदूर ही है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जुड़े पुरातत्वविद् डॉ एनजी मजूमदार और जॉन मार्शल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ स्त्री मूर्तियों के सिर के बीच में लाल रंग की रेखा खिंची हुई है, जो आज के सिंदूर लगाने की परंपरा से मेल खाती प्रतीत होती है.
वैदिक काल में सिंदूर लगाने की परंपरा
भारतीय इतिहास के वैदिक काल में भी सिंदूर लगाने की परंपरा का स्पष्ट उल्लेख है. ऋग्वेद और अथर्ववेद में यह बताया गया है कि विवाहित स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए सिंदूर लगाती थीं. वैदिक युग में सिंदूर को कुंकुम कहा जाता था. सिंदूर को देवी लक्ष्मी और पार्वती से जोड़ा जाता है, क्योंकि यह उनके सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.
आधुनिक युग में सिंदूर की परंपरा

भारतीय परंपरा में आधुनिक युग में भी सिंदूर लगाने की परंपरा मौजूद है. विवाह के वक्त सिंदूरदान की परंपरा होती है, उसके बाद ही विवाह संपूर्ण माना जाता है. सिंदूर एक विवाहित स्त्री के सम्मान से जुड़ा मसला आज भी माना जाता है. बदलते दौर में कई स्त्रियां पूरी मांग में सिंदूर भले ही ना लगाती हों, लेकिन सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक आज भी माना जाता है. पर्व-त्योहार और विशेष अवसरों पर सिंदूर लगाने की परंपरा आज भी स्वीकार्य है. इस तरह की मान्यता है कि सिंदूर नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है. आयुर्वेद यह कहता है कि सिंदूर में हल्दी, पारा और चूना रहता है, जो मानसिक संतुलन को बनाए रखता है.
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