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Trump Tariffs : भारत सरकार की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि अगर अमेरिका सोचता है कि वह इस तरह की धमकियां देकर हमारे देश को दबा सकता है, तो उसे अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. आज का भारत एक दशक पहले जैसा नहीं है. हम हथियार उत्पादन में एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने दुनिया को दिखा दिया है कि सामरिक दृष्टि से हम आत्मनिर्भर हैं.

Trump Tariffs : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद कुल टैरिफ अब 50 प्रतिशत हो गया है. ट्रंप का कहना है कि यह कदम भारत द्वारा रूसी तेल की निरंतर खरीद के जवाब में उठाया गया है. इसके साथ ही भारत अमेरिका के सबसे अधिक कर वाले व्यापारिक साझेदारों में से एक बन गया है. अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ 27 अगस्त से प्रभावी होगा. इस वृद्धि से अमेरिका को 40 अरब डॉलर से ज्यादा मूल्य के भारतीय निर्यात प्रभावित होंगे, जिनमें ऑटो पार्ट्स, कपड़ा और परिधान, इलेक्ट्रॉनिक्स, इस्पात और रसायन, आभूषण और समुद्री खाद्य आदि शामिल हैं.

कुछ क्षेत्रों को टैरिफ वृद्धि से छूट भी दी गयी है, जिनमें फार्मास्युटिकल्स, स्मार्टफोन और लैपटॉप, सेमीकंडक्टर जैसे तैयार इलेक्ट्रॉनिक्स, तेल, गैस और एलएनजी, तांबा इत्यादि ऊर्जा उत्पाद हैं. यदि अमेरिकी टैरिफ प्रभावी होंगे, तब भी अमेरिका को भारत का निर्यात अधिकतम 5.7 अरब डॉलर ही गिरेगा. आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि 2022 और 2024 के बीच भारत को रूस से तेल आयात करके 33 अरब डॉलर का फायदा हुआ. यानी यदि नफा-नुकसान देखें, तो भारत को रूस से तेल आयात से इतना फायदा है कि उसे अमेरिकी टैरिफ की परवाह करने की जरूरत नहीं.

वास्तविकता यह है कि भारत स्वाभाविक रूप से रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए रक्षा उपकरण खरीदने और जहां से भी कच्चा तेल मिले, उसे सबसे सस्ते दामों पर खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि घरेलू मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बना रहे.इस बीच भारत सरकार की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि अगर अमेरिका सोचता है कि वह इस तरह की धमकियां देकर हमारे देश को दबा सकता है, तो उसे अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. आज का भारत एक दशक पहले जैसा नहीं है. हम हथियार उत्पादन में एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहे हैं, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने दुनिया को दिखा दिया है कि सामरिक दृष्टि से हम आत्मनिर्भर हैं.

अमेरिका को समझना होगा कि विश्व अब एकध्रुवीय नहीं रह गया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अमेरिका ने ऐसे समय में एक रणनीतिक साझेदार के खिलाफ दंडात्मक कदम उठाने का फैसला किया है, जब अमेरिका समेत पूरी दुनिया को चीन द्वारा व्यापार और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के हथियारीकरण से उत्पन्न कहीं अधिक बड़ी चुनौती का सामूहिक रूप से जवाब देने की जरूरत है. भारत सरकार वास्तव में बधाई की पात्र है कि भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वार्ता के दौरान दबाव के बावजूद दृढ़ता से खड़ी है. पारस्परिक शुल्कों की धमकियों और नौ जुलाई और 31 जुलाई की समयसीमा चूक जाने के बावजूद भारतीय वार्ताकारों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) कृषि उत्पादों, डेयरी आयात और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों के लिए हमारे बाजारों को जबरन खोलने के प्रयासों का सही ढंग से विरोध किया है. यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका दुनिया भर के देशों पर (विश्व व्यापार संगठन के नियमों के विरुद्ध) दबाव बना रहा है कि वे अपने-अपने देशों में अमेरिका से आने वाले सामानो पर टैरिफ कम करें.

हाल के दिनों में जब राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा पारस्परिक टैरिफ लगाये जाने के बाद, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में तेजी आई थी, और रिपोर्टों में तेज गति से बातचीत के संकेत मिल रहे थे, तब ट्रंप का यह बयान, कि भारत के साथ अभी कोई समझौता नहीं हुआ है, इस बात का प्रमाण है कि भारत अमेरिका के दबाव का सफलतापूर्वक सामना कर रहा है. भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते पर 2017 से ही चर्चा चल रही है. लेकिन अभी तक यह समझौता सिरे नहीं चढ़ पाया है, यहां तक कि सीमित स्तर पर भी नहीं. कई बार यह समझौता लगभग तय लग रहा था, लेकिन अचानक कुछ रुकावटें आ गयीं और बातचीत ठंडे बस्ते में चली गयी. आखिरी बार ऐसा 2020 में हुआ था. मीडिया में खबरें आ रही थीं कि भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होने वाले हैं, लेकिन तब भी भारत ने दबाव का विरोध किया और संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) को अपना भारत दौरा रद्द करना पड़ा.


मौजूदा वार्ताओं में अमेरिका मांग कर रहा है कि भारत उसकी जीएम फसलों के लिए बाजार में पहुंच दे, चिकित्सा उपकरणों पर नियमों में ढील दी जाये और डाटा के मुक्त प्रवाह की अनुमति दी जाये. वास्तविकता यह है कि भारत अपने किसानों और कृषि सुरक्षा के मद्देनजर जीएम के आयात की अनुमति नहीं दे सकता, और न ही अपने चिकित्सा उपकरण उद्योग के विरुद्ध अमेरिका के नियमों में ढील को स्वीकार कर सकता है. संवेदनशील डाटा संप्रभु देश के नियंत्रण में ही रहना चाहिए, जो हमारे दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित के साथ जुड़ा हुआ है. भारत ने इस्पात, ऑटोमोबाइल और दवा शुल्कों से छूट की वैध मांग की है और डाटा स्थानीयकरण की अपनी नीति का बचाव किया है.

हमें समझना होगा कि व्यापार समझौता हो या न हो, अमेरिका को भारतीय निर्यात पारस्परिक आर्थिक लाभ के आधार पर जारी रहेगा ही. हमें ऐसी रियायतों से बचना चाहिए, जो हमारे किसानों, लघु उद्योगों या दीर्घकालिक आर्थिक आत्मनिर्भरता को कमजोर करती हैं. भारत अपने मूल हितों से समझौता किये बिना वैश्विक व्यापार पैटर्न में बदलाव का लाभ उठा सकता है, जिसमें अमेरिका-चीन तनाव के कारण उत्पन्न परिवर्तन भी शामिल हैं.


यह उल्लेखनीय है कि अब टैरिफ का निर्धारण विश्व व्यापार संगठन द्वारा अमेरिका के लिए निर्धारित दरों के आधार पर नहीं, बल्कि राष्ट्रपति ट्रंप की मनमर्जी, तथाकथित पारस्परिकता के विचार या अनैतिक रूप से गैर-व्यापारिक मुद्दों का हवाला देकर किया जा रहा है. आज भारत के लिए लैटिन अमेरिकी देशों सहित अन्य देशों के साथ अपने व्यापार में विविधता लाने का एक अवसर भी है. भारत को अपने दृढ़ रुख पर अडिग रहना चाहिए.

व्यापार पारस्परिक लाभ के लिए है और अमेरिका कोई एहसान नहीं कर रहा है. भारत के लिए अल्पकालिक नुकसान हो सकता है, लेकिन यह अमेरिका से आयात की जा रही कई वस्तुओं पर आत्मनिर्भरता का अवसर प्रदान करेगा. आज जरूरत इस बात की है कि हम विस्तारित ब्रिक्स देशों और वैश्विक दक्षिण में अपने व्यापार में विविधता को बड़ा कर नये बाजारों की तलाश भी जारी रखें. इसके साथ ही हमारे पास अमेरिका से रक्षा उपकरण, हवाई जहाज और कई उच्च मूल्य की वस्तुओं को न खरीदने और अमेरिकी कंपनियों पर शिकंजा कसने संबंधी कदम उठाने जैसे विकल्प भी खुले हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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