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इस जहां में और खेल भी हैं

टाटा जैसे कई कॉरपारेट फुटबॉल को बढावा देने आगे आये हैं, लेकिन अन्य घरानों के भी आगे आने की जरूरत है. बेहतर माहौल बने, तो हम हर खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.

आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

फुटबॉल के महानतम खिलाड़ियों में से एक अर्जेंटीना के मशहूर फुटबॉलर डिएगो माराडोना का पिछले दिनों दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 60 साल के थे और पिछले कुछ समय से बीमार थे. माराडोना के निधन के बाद अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स की सड़कों पर भावुक फैंस का हुजूम उमड़ पड़ा था. अर्जेंटीना में तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया. माराडोना की ताबूत को अर्जेंटीना के झंडे और फुटबॉल जर्सी में लपेटा गया था, जिस पर 10 नंबर लिखा था. माराडोना जब तक फुटबॉल खेले, उन्होंने 10 नंबर की जर्सी ही पहनी.

उनके पार्थिव शरीर को आखिरी दर्शन के लिए वहां के राष्ट्रपति भवन में रखा गया था. माराडोना को लेकर भारत में भी दीवानगी रही है और उनके निधन के बाद भारत में भी श्रद्धांजलि का तांता लग गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अपने बेहतरीन करियर में उन्होंने हमें फुटबॉल के मैदान पर कुछ बेहतरीन खेल के क्षण दिये. उनके असामयिक निधन ने हम सब दुखी हैं.

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने ट्वीट किया- मेरा हीरो नहीं रहा.. मेरा मैड जीनियस भगवान के पास चला गया. मैंने तुम्हारे लिए फुटबाॅल देखी. भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री ने ट्वीट किया- वह इंसान हमें छोड़ गया, लेकिन उनके जादू, पागलपन और लेजेंड कभी नहीं जा सकेंगे. सचिन तेंदुलकर ने लिखा है- फुटबॉल और खेल की दुनिया का एक महानतम खिलाड़ी चला गया. आप हमेशा याद आयेंगे. शाहरुख खान ने ट्वीट किया- माराडोना, आपने फुटबॉल को और खूबसूरत बना दिया.

आपकी कमी बहुत खलेगी. महान फुटबॉल खिलाड़ी पेले ने ट्वीट किया- मैंने उम्मीद है कि एक दिन हम आसमान में कहीं एक साथ फुटबॉल खेलेंगे. पेले और माराडोना एक दूसरे के खेल के प्रशंसक थे. हालांकि दोनों की उम्र में दो दशक का फासला था. फुटबॉल में इन दोनों के योगदान को सारी दुनिया याद करती है. माराडोना को 1986 विश्व कप में अपने दो गोल के लिए आज भी याद किया जाता है, जो उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में किये थे. मेक्सिको में क्वार्टर फाइनल का यह मैच बेहद तनावपूर्ण माहौल में खेला गया था, क्योंकि इंग्लैंड और अर्जेंटीना के बीच चार साल पहले फॉकलैंड् युद्ध हुआ था. इस मैच में माराडोना ने दो गोल करके अर्जैटीना को जीत दिलायी थी.

इसमें एक गोल को हैंड ऑफ गॉड की संज्ञा दी गयी, तो दूसरे को गोल ऑफ द सेंचुरी माना गया था. माराडोना का जन्म अर्जेंटीना के झुग्गी-झोपड़ियों वाले एक इलाके में हुआ था. विलक्षण प्रतिभा के धनी माराडोना युवावस्था में ही फुटबॉल के सुपरस्टार बन गये थे. माराडोना छोटे कद के और मोटे थे. उनकी लंबाई पांच फीट पांच इंच थी, लेकिन उनके पास तेजी, चौकन्नपन, फुटबॉल को काबू में रखने की अद्भुत क्षमता थी. उन्होंने महज 16 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल जगत में कदम रख दिया था. मारोडोना 1982 में स्पेन में खेले गये विश्व कप फुटबॉल से चर्चा में आ गये थे. उस समय वह मात्र 21 साल के थे.

इसके बाद 1986 में जब अर्जेंटीना ने वर्ल्डकप जीता तब माराडोना उस टीम के कप्तान थे. उन्होंने चार विश्व कप में अर्जेंटीना का प्रतिनिधित्व किया. कुछ लोग तो उन्हें ब्राजील के महान फुटबॉलर पेले से भी शानदार खिलाड़ी मानते हैं. एक सर्वेक्षण में तो उन्होंने पेले को पीछे छोड़ 20वीं सदी के सबसे महान फुटबॉलर करार दे दिया गया था. हालांकि इसके बाद फीफा ने वोटिंग के नियम बदल दिये थे. भारत में ज्यादातर लोग विश्व फुटबॉल को अर्जेंटीना और ब्राजील से ही जोड़ते हैं. मारोडाना के बहाने यह अवसर है कि हम भारत में फुटबॉल के बारे में समीक्षा करें.

वैसे तो कई खेल में भारत ने उपलब्धियां दर्ज की हैं, लेकिन हम भारतीयों की दिक्कत यह है कि हम खेलों में क्रिकेट के आगे कभी सोचना ही नहीं चाहते हैं. स्पष्ट कर दूं कि मैं क्रिकेट के कतई खिलाफ नहीं हूं, लेकिन हम अन्य खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं ठहरते हैं. किसी अन्य खेल में कितनी भी शानदार उपलब्धि हो, हम उसका जश्न तक नहीं मनाते हैं. आपको ऐसे लोग बड़ी संख्या में मिल जायेंगे, जो मैच का आंखों देखा हाल सुना देंगे और हार जीत का विश्लेषण भी कर देंगे, पर विश्वव्यापी फुटबॉल के बारे में जानकार बेहद सीमित मिलेंगे.

यही वजह है कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाला देश फुटबॉल के विश्व कप के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाता, जबकि भारत के किसी भी राज्य से छोटे स्विटजरलैंड और स्वीडेन जैसे देश फुटबॉल विश्व कप तक पहुंच जाते हैं. कुछ अरसा पहले भारतीय फुटबॉलरसुनील छेत्री ने लोगों से फुटबॉल मैच देखने की भावुक अपील की थी. यह दिखाता है कि हम क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के प्रति कितने उदासीन हैं. कुछ समय पहले भारत ने अंडर-17 फीफा विश्व कप का आयोजन कर एक अच्छी पहल की थी, पर भारत में खिलाड़ियों से ज्यादा खेल संघों के सिर फुटव्वल की खबरें सुर्खियां बनती हैं.

हालांकि टाटा जैसे कई कॉरपारेट फुटबॉल को बढावा देने के लिए आगे आये हैं. इससे उम्मीद बंधी है, पर अन्य कॉरपारेट घरानों के भी आगे आने की जरूरत है. 2014 में फुटबॉल की इंडियन सुपर लीग का आगाज हुआ था, तो उम्मीद जगी थी कि भारतीय फुटबॉल के स्तर में सुधार आयेगा, पर जितनी उम्मीद थी, वैसा नहीं हुआ. भारतीय टीम ने फीफा रैंकिंग में जगह जरूर बनायी है. 2019 में भारतीय टीम एएफसी एशियन कप में एशिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक मानी गयी थी. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमने फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप की मेजबानी की है और हम 2022 में एएफसी वुमन एशिया कप की मेजबानी करेंगे.

हमारे प्रसार के तीनों राज्यों झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में फुटबॉल खूब खेली जाती है. पिछले साल झारखंड के 15 युवा खिलाड़ियों का चयन ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन की प्रतिभा खोज के तहत नेशनल कैंप के लिए हुआ था. इसमें खूंटी, गुमला, और जामताड़ा जैसी छोटी जगहों के नवयुवक शामिल थे. फुटबॉल फेडरेशन की योजना फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप, एशियाई खेल और ओलिंपिक के लिए टीम तैयार करना है. इसमें कोई शक नहीं है कि यदि युवा खिलाड़ियों को मौका और मार्गदर्शन मिलेगा, तो देश का नाम रोशन करेंगे.

हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे खेल संघों पर नेताओं ने कब्जा कर रखा है. अधिकांश खेल संघ राजनीति का अखाड़ा बन गये. खेल संघों में फैले भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थों ने खेलों और खिलाड़ियों का भारी नुकसान पहुंचाया है. लिहाजा हम आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं ठहरते हैं. हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है. यदि बेहतर माहौल तैयार हो और युवा खिलाड़ियों को उचित मार्गदर्शन मिले, तो हम हर खेल में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.

Posted by: Pritish Sahay

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