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लॉकडाउन में जीवन सहज बनाने की राह

तमाम छात्र, जो अपने घरों में बैठे हैं और उन्हें यह नहीं पता कि स्कूल या कॉलेज के लिए लॉकडाउन कब खुलेगा, निश्चित ही उनके लिए यह कठिन समय है. इसे खोलने में जोखिम है और नहीं खोलने पर कई अन्य चिंताएं हैं.

डॉ सामदु छेत्री, पूर्व कार्यकारी निदेशक, सकल राष्ट्रीय खुशहाली केंद्र, भूटान

जगदीश रत्नानी, वरिष्ठ पत्रकार एवं फैकल्टी सदस्य, एसपीजेआइएमएआर

editor@thebillionpress.org

तमाम छात्र, जो अपने घरों में बैठे हैं और उन्हें यह नहीं पता कि स्कूल या कॉलेज के लिए लॉकडाउन कब खुलेगा, निश्चित ही उनके लिए यह कठिन समय है. इसे खोलने में जोखिम है और नहीं खोलने पर कई अन्य चिंताएं हैं. कुछ लोगों ने कोविड-19 की वजह से अपने प्रियजनों को खो दिया है. कई अन्य को क्वारंटीन की वजह से पाबंदियों का सामना करना पड़ा है. बीमारी की चपेट में आये परिवार के सदस्यों की वजह से उन्हें भी जूझना पड़ा या आगे क्या होगा, इस बात की भी हर वक्त फिक्र बनी रही है.

घरों में कैद उन लोगों के बीच से कई खौफनाक कहानियां बाहर आयीं, जो इन समस्याओं से जूझ रहे हैं. आप परिवार के बीच में या अब भी अकेले हो सकते हैं. इस दौरान बहुत ही छोटे मामलों को लेकर भी समस्याएं आयीं. लंबे अरसे से एक साथ रहने से तनाव बढ़ रहा है. युवा इन परिस्थितियों से बाहर निकलना चाहता है. लाॅकडाउन ने उन्हें दोस्तों से दूर कर दिया है. कितना दुखद है कि उन पर अपने कॉलेज के दोस्तों से दूर रहने का बड़ा दबाव है. छात्र अभी हॉस्टल लाइफ से महरूम हैं और दोस्त इंतजार कर रहे हैं, इसकी भरपाई फोन पर बात करके तो नहीं हो सकती.

देर रात भोजन करना, हाथ मिलाना और गर्मजोशी से गले मिलना, कितना कुछ अभी संभव नहीं है? बेंगलुरु की ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य प्लेटफार्म ‘योरदोस्त’ ने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि कॉलेज छात्र महामारी और लॉकडाउन के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. छात्रों में 41 प्रतिशत की भावनात्मक वृद्धि यानी घबराहट, भय, चिंता बढ़ी है. क्रोध, चिड़चिड़ापन, हताशा में 54 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, 27 प्रतिशत निराशा का भाव बढ़ा है, जबकि 17 प्रतिशत उदासी और 38 प्रतिशत की वृद्धि अकेलापन,बोरियत महसूस करने में हुई है. निश्चित ही यह चिंताजनक स्थिति है.

ऐसे मुश्किल हालात में, हम चाहते हैं कि युवावर्ग धैर्य बरते और चुनौतियों का सामना सरल तथा शक्तिशाली तरीकों से करे. आप चाहें, तो इसे एक रणनीति कह सकते हैं, लेकिन वास्तव में यह उससे कहीं अधिक है, क्योंकि यह न केवल तात्कालिक तौर पर मददगार है, बल्कि इन परिस्थितियों से हम कैसे निकलते और उभरते हैं, उस पर यह दूरगामी असरकारक है.

हमें जो कहानी स्वयं को बतानी है, वह छह महीने या एक साल की है, जोकि हमारी लंबी और खुशहाल जिंदगी का खास बड़ा हिस्सा नहीं है. युवा मस्तिष्क द्वारा इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है, क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग इन विचारों के साथ बड़े हुए हैं कि एक साल, खास कर अकादमिक वर्ष गंवाना बहुत बड़ा नुकसान है. विश्व स्तर पर, कई छात्र अपने विश्वविद्यालय से दूर अन्यत्र प्रोजेक्ट के लिए यात्रा करते हैं. सीखने के लिए यह बेहतर स्रोत है, जोकि अकादमिक उपलब्धियों से बिल्कुल अलग होता है. इस अवसर का फायदा उठाते हुए आप अपनी तरक्की के लिए अपने दिमाग और दिल का इस्तेमाल करते हैं.

जब हम 50, 60 और 70 की उम्र में होंगे, तो पीछे मुड़कर इन दिनों के बारे में सोच सकते हैं और बच्चों तथा पोतों को अच्छी कहानियों के बारे में बतायेंगे कि मार्च, 2020 में एक दिन दुनिया कैसे बदल गयी, जब एक अदृश्य, अनसुने प्रकार की अनजान प्रजाति मानवजाति पर तबाही लेकर आयी, जिससे नाटकीय ढंग से, शायद निर्णायक रूप से लोगों के जीने का तौर-तरीका बदल गया. लॉकडाउन की यह कहानी मस्तिष्क में कैद हो गयी है.

शुरुआत का अच्छा तरीका नया दोस्त बनाना हो सकता है, एक बिल्कुल अलग दोस्त, एक करीबी इंसान, जो साथ रहता है, लेकिन जिसे पूर्ण और पर्याप्त रूप से नहीं जानते. यह आप स्वयं हैं, आंतरिक रूप से, एक सागर, जो आप में सन्निहित है. अपने बारे में सोचें- क्या आप खुद को जानते हैं, क्या वास्तव में खुद को समझते हैं, या वास्तव में खुद से ‘मुलाकात’ की है? इस खोज की नयी शुरुआत करें.

पहली समस्या- हम कक्षाओं, परीक्षाओं, नौकरियों, प्लेसमेंट और अन्य चीजों के बारे में नहीं जानते. कुछ भी पूर्वानुमानित नहीं है, लेकिन फिर से देखिए और सोचिए. क्या वास्तव में यह नया है? अनिश्चितता हमेशा से रही है- आपके जन्म से ही. यही अनिश्चितता आज अपने आप प्रकट होती है, जोकि अपेक्षाकृत कम अनिश्चित है. बड़ी समस्या अनिश्चितता है, जिसे हम नहीं देखते और न ही जानते हैं.

इस अनिश्चितता के बीच में क्या है, जो हमें खुशी और चंचल होने के मौके दे सकता है? किताबों और प्रमाणपत्रों से दूर, अच्छा है कि गतिविधियों का हिस्सा बनें, जो खुशहाली का स्रोत है, एक नयी खोज, एक नया मनोरंजन या कुछ ऐसा, जिसे आमतौर पर पहले हमने नहीं किया है. खुशी के लिए यह क्लासिकल संगीत या पेंटिंग, सिंगिंग या डांस हो सकता है? गंभीर रेडियो ब्रॉडकास्ट को सुनना या पुराना कुछ पढ़ना हो सकता है? खोजिए. इसी काम में दिल लगाना है.

हरवक्त प्रियजनों के साथ अर्थपूर्ण बातचीत और जुड़ाव बरकरार रखना आसान नहीं है, लेकिन हम सब जानते हैं कि कई सफल लोगों को इसका अफसोस रहता है कि उन्हें प्रियजनों के साथ समय बिताने, बात करने या सुनने का मौका नहीं मिलता. वर्षों से क्या आपने परिजनों के साथ बैठकर उन्हें सुना है? इसे एक निरंतर चर्चा बनाएं. एक डायरी के तौर पर लिखें. यह आपके लिए खजाने की तरह और बुरे वक्त में आपके लिए मददगार होगा. जुड़िए. इस काम में भी दिल लगाने जैसा है. कई युवाओं को पता है कि काम करने के दौरान या स्कूल में खाना स्वस्थ तरीके से नहीं खा पाते. उसी तरह उनके सोने की आदत भी सही नहीं है. यह मौका है कि इन दोनों को बेहतर किया जाए.

कुछ खाना पकाना सीखिए, यह आपके साथ हमेशा रहेगी. पारंपरिक भारतीय भोजन को वरीयता दें. पाश्ता या पिज्जा के बजाय रोटी-दाल या इडली-डोसा आपके लिए बेहतर है, क्योंकि इसके लिए हम बुनियादी साम्रगी का इस्तेमाल करना सीखते हैं. परिवार के वरिष्ठ लोगों से मार्गदर्शन लीजिए. तहकीकात, जुड़ाव, खोज और भोजन. इससे पूरे दिन की एक निरंतरता बन जायेगी, जिससे आप अच्छी तरह से सो सकेंगे. लोगों से बातचीत करें और अपने विचारों को साझा करें. इससे अपना अनुभव तैयार करें और यह लॉकडाउन आपके लिए काफी मददगार हो सकता है. जब दुनिया वापस अपने रंग में लौटेगी, तब आप पहले से कहीं अधिक बेहतर महसूस करेंगे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Posted by : Pritish Sahay

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