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विभाजन की पीड़ा को जीने वाले फिल्मकार थे ऋत्विक घटक

Ritwik Ghatak Birth Centenary : भारतीय फिल्म निर्देशकों के बीच घटक का स्थान सत्यजीत रे और मृणाल सेन के समान है. ऋत्विक घटक का जन्म चार नवंबर, 1925 को ढाका में हुआ था. पर विभाजन के बाद वह कोलकाता आ गये.

Ritwik Ghatak Birth Centenary : भारतीय फिल्मों की संघर्षशील अभिव्यक्ति के नायक निर्माता-निर्देशक ऋत्विक घटक की आज जन्मशती है. उन्हें याद करना भारतीय सिनेमा के इतिहास में उन स्मृतियों को स्मरण करना है, जिनमें भारतीय सिनेमा का यथार्थ दिखाई देता है. ऋत्विक घटक को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने समानांतर सिनेमा की नींव डाली और भारतीय सिनेमा को एक नयी सोच दी. उन्होंने समाज के अंतिम व्यक्ति के दुख-दर्द को जिस तरह परदे पर उकेरा, वह आम जनमानस को छूता है. उनके सिनेमा में भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जमीन का दुख-सुख बराबर दिखता है. यही उनकी खूबी है. वे एक अद्भुत फिल्म निर्माता तथा पटकथा लेखक भी थे.


भारतीय फिल्म निर्देशकों के बीच घटक का स्थान सत्यजीत रे और मृणाल सेन के समान है. ऋत्विक घटक का जन्म चार नवंबर, 1925 को ढाका में हुआ था. पर विभाजन के बाद वह कोलकाता आ गये. छह फरवरी, 1976 को मात्र 50 वर्ष की आयु में ही वह इस दुनिया से विदा हो गये. वर्ष 1947 में विभाजन के बाद जिस तरह लाखों शरणार्थी पाकिस्तान से अपनी जान बचाकर कोलकाता आये, उसे ऋत्विक घटक कभी भूला नहीं सके. सिनेमा की दुनिया में उनका यह अनुभव बखूबी नजर आता है, जिसने सांस्कृतिक विच्छेदन और निर्वासन के लिए एक अधिभावी रूपक का काम किया और उनके बाद के रचनात्मक कार्यों को एक सूत्र में पिरोया. वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम ने भी उनके कार्यों को समान रूप से प्रभावित किया. उन्होंने विभाजन की पीड़ा को जिस तरह अपनी फिल्मों में उकेरा है, वह गहरे प्रभावित करती है.


ऋत्विक घटक के रचनात्मक जीवन की बात करें, तो 1948 में, उन्होंने अपना पहला नाटक ‘कालो सायर’ (द डार्क लेक) लिखा और ऐतिहासिक नाटक ‘नबान्न’ के पुनर्लेखन में हिस्सा लिया. उन्होंने नाटकों का लेखन, निर्देशन करने के साथ ही उसमें अभिनय भी किया. ‘बर्टोल्ट ब्रेख्त’ और ‘गोगोल’ को बंगला में अनुवादित किया. वर्ष 1957 में, उन्होंने अपना अंतिम नाटक ‘ज्वाला’ (द बर्निंग) लिखा और निर्देशित किया. उन्होंने फिल्म जगत में निमाई घोष के ‘छिन्नमूल’ (1950) के साथ अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में प्रवेश किया. वर्ष 1952 में घटक ने ‘नागोरिक’ का निर्देशन किया, पर यह फिल्म उनके मरने के बाद 1977 में ही रिलीज हो पायी. घटक की ये दोनों ही फिल्में भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुईं. उन्होंने अपने शुरुआती कार्यों में नाटकीय और साहित्यिक पहचान पर जोर दिया और एक वृत्तचित्रीय यथार्थवाद, जो लोक रंगमंचों से ली गयी शैली के प्रदर्शन से युक्त होता था, को ब्रेख्तियन फिल्म निर्माण के उपकरणों के साथ संयोजित किया. ‘अजांत्रिक’ (1958) उनकी पहली व्यावसायिक रिलीज थी. निर्जीव वस्तु को दर्शाने वाली यह भारत की कुछ प्रारंभिक फिल्मों में से एक है.

हिंदी फिल्म ‘मधुमती’ (1958), पटकथा लेखक के रूप में घटक की बड़ी व्यावसायिक सफलता थी, यह पुनर्जन्म के विषय पर बनी सबसे पहली फिल्मों में से एक है. इस फिल्म के लिए घटक ने सर्वश्रेष्ठ कहानी का फिल्मफेयर पुरस्कार का अपना पहला नामांकन अर्जित किया था.


बतौर निर्देशक और पटकथा लेखक ऋत्विक घटक ने ‘नागोरिक’ (नागरिक) (1952), ‘अजांत्रिक’ (अयान्त्रिक, दयनीय भ्रान्ति) (1958), ‘बाड़ी थेके पालिए’ (भगोड़ा) (1958), ‘मेघे ढाका तारा’ (बादलों से छाया हुआ सितारा)(1960), ‘कोमोल गंधार’ (ई-फ्लैट) (1961), ‘सुवर्णरेखा’ (1962), ‘तिताश एकटि नदीर नाम’ (तिताश एक नदी का नाम है) (1973), ‘जुक्ति, तोक्को आर गोप्पो’ (कारण, बहस और एक कहानी) (1974) बनायी. वहीं ‘मुसाफिर’ (1957) ‘मधुमती’, (1958), ‘स्वरलिपि’ (1960), ‘कुमारी मन’ (1962), ‘दीपेर नाम टिया रोंग’ (1963), ‘राजकन्या’ (1965) के वे पटकथा लेखक रहे. उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध फिल्में रहीं- ‘मेघे ढाका तारा’, ‘कोमल गंधार’ और ‘सुवर्णरेखा’. ये तीनों फिल्में कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) पर आधारित एक त्रयी हैं, जिसमें शरणार्थी जीवन की स्थितियों का चित्रण किया गया है. वर्ष 1966 में घटक पुणे चले गये, जहां उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ) में शिक्षण का कार्य किया. हालांकि एफटीआइआइ में उनके फिल्म शिक्षण का कार्यकाल संक्षिप्त था, फिर भी एफटीआइआइ में बिताये गये वर्षों के दौरान उन्होंने दो छात्र फिल्मों- ‘फियर’ और ‘रौन्डेवू’ के निर्माण में योगदान किया.


उनकी अंतिम फिल्म आत्म कथात्मक थी, जिसका नाम था ‘जुक्ति, तोक्को आर गोप्पो’. इसमें उन्होंने मुख्य चरित्र नीलकंठो (नीलकंठ) की भूमिका निभायी थी. बीमारी और असमय निधन के कारण उनकी कई फिल्में अधूरी ही रह गयीं. ऋत्विक घटक भारतीय सिनेमा के युगपुरुष थे और हमेशा रहेंगे. वे भारतीय सिनेमा की एक ऐसी धरोहर हैं, जो सदैव हमारी स्मृतियों में बसे रहेंगे.

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