Religious Tourism : पिछले कुछ वर्षों से हम भारतीय धर्म-कर्म और उत्सवों पर पहले की तुलना में ज्यादा खर्च करने लगे हैं. देश में समृद्धि आयी है, जिसका असर पड़ा है. धर्म के प्रति आस्था बढ़ी है और लोग इसके लिए खर्च करने को तैयार भी हो रहे हैं. इसका ताजा उदाहरण प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ था, जिसमें 66 करोड़ श्रद्धालु आये. उन्होंने बड़ा खर्च किया और छोटे विक्रेताओं से लेकर खाने-पीने का सामान बेचने वालों तथा रेलवे, हवाई कंपनियों और ट्रांसपोर्टरों की चांदी कर दी. सरकार ने महाकुंभ की तैयारियों पर 7,500 करोड़ रुपये खर्च किये और उसे राजस्व के रूप में तीन लाख करोड़ रुपये प्राप्त हुए.
सरकारी खर्च से प्रयागराज के इंफ्रास्ट्रक्चर में बहुत सुधार हुआ. महाकुंभ के कारण केवल वहीं नहीं, डेढ़ सौ किलोमीटर के दायरे में स्थित शहरों और कस्बों के भी व्यापार में जबर्दस्त वृद्धि देखी गयी. अयोध्या, वाराणसी और अन्य धार्मिक स्थलों पर भी श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई. करोड़ों लोगों ने वहां बड़े पैमाने पर खर्च किया, जिसका असर वहां की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रूप से पड़ा. यात्री सिर्फ प्रयागराज में नहीं रुके, वे वाराणसी और अयोध्या गये और आसपास के धार्मिक स्थलों जैसे चित्रकूट, विंध्याचल वगैरह में भी जा पहुंचे. वहां की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ा. बड़ी तादाद में पहुंचे तीर्थयात्रियों ने वहां भी खर्च किया. ऐसा नहीं है कि देश में तीर्थयात्रियों द्वारा खर्च का यह पहला बड़ा मौका है. देश में अन्य कई तीर्थ स्थल और मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु जाते हैं. इनमें तिरुपति, काशी विश्वनाथ, पद्मनाभस्वामी, सिद्धिविनायक, माता वैष्णो देवी, शिरडी साईं बाबा मंदिर, हरिद्वार-ऋषिकेश वगैरह हैं, जहां यात्री दर्शन के लिए दूर-दराज से जाते हैं और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं.
यहां ध्यान देने वाली एक और बात है कि राज्य सरकारों ने उन क्षेत्रों के विकास पर अब ध्यान देना शुरू किया है. इससे वहां पहुंचना आसान हो गया और यातायात के बहुत से साधन उपलब्ध हो गये हैं. रेलवे ने कई अच्छी रेलगाड़ियां चलाई है, जिससे उसे भी आय हो रही है. ढांचागत विकास का फायदा सभी वर्गों को मिल रहा है. कारोबारी ज्यादा पैसे कमा पा रहे हैं तथा रोजगार भी दे रहे हैं. पहले हमारे तीर्थस्थल उतने विकसित नहीं होते थे और वहां विकास का नामोनिशान नहीं दिखता था. इस कारण श्रद्धालुओं का वहां पहुंचना तुलनात्मक रूप से कम होता था और वहां जाने पर भी वे ज्यादा खर्च नहीं करते थे. पर अब स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन आया है और अधिक से अधिक यात्री और पर्यटक उन क्षेत्रों में जाने लगे हैं. इसका असर वहां की अर्थव्यवस्था पर दिखायी देता है. सच यह है कि देश में धार्मिक पर्यटन पर इस समय काफी जोर है और वे लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं.
भारत उत्सवों का देश है और यहां इतने पर्व-त्योहार मनाये जाते हैं कि एक के खत्म होते ही दूसरे की प्रतीक्षा शुरू हो जाती है. उत्तर और पूर्वी भारत में जहां दिवाली, होली और दशहरा जैसे त्योहार धूमधाम से मनाये जाते हैं, वहीं दक्षिण और पश्चिम भारत में ओणम, पोंगल, गणेश चतुर्थी जैसे पर्वों की धूमधाम देखते ही बनती है. इन त्योहारों में श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं और काफी खर्च करते हैं. पिछले कुछ वर्षों से दिवाली में बिक्री काफी बढ़ी है. वर्ष 2024 में 4.25 लाख करोड़ रुपये के कारोबार का दावा कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने किया है. इससे औद्योगिक विकास और रोजगार को गति मिली है.
हमारे पर्व-त्योहारों में इतना कुछ खरीदा जाता है कि हाथ से बनने वाली चीजों से लेकर कारखानों में उत्पादित होने वाले सामान की बिक्री बढ़ जाती है. छोटे और मंझोले उद्योगों को ये बहुत सहारा देते हैं. अक्षय तृतीया तो खरीदारी का त्योहार है, जिसमें गहनों के अलावा वाहन वगैरह भी खरीदे जाते हैं. कपड़े तो अमूमन हर बड़े पर्व-त्योहार में खरीदे जाते हैं. वस्त्र तैयार करने में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर ऐसे ही नहीं है. इसका एक कारण हमारे पर्व-त्योहार और धार्मिक अवसर या अनुष्ठान भी हैं. हमारे यहां शादियों का भी इसमें बहुत बड़ा योगदान रहता है, जो अब काफी बड़े पैमाने पर होने लगी हैं और इनमें बहुत खर्च होने लगा है. पैसेवाले लोग तो कई-कई आयोजन करते हैं, जिनमें करोड़ों-अरबों रुपये खर्च होते हैं. इनसे भी अर्थव्यवस्था में तेजी आती है और कारीगरों को काम मिलता है. कई दिनों तक चलने वाले कार्यक्रमों में बड़े पैमाने पर हलवाई, सजावट का काम करने वाले, फूल बेचने वाले, दर्जी तथा उपहार सामग्री वगैरह का काम करने वालों की चांदी हो जाती है, जिनसे कई बार तो साल भर की कमाई हो जाती है.
उत्सवों में दान देने की बड़ी परंपरा रही है और लोग अब दान भी काफी देते हैं. इससे उन बेसहारा लोगों को भी काफी कुछ मिल जाता है, जो लाचार हैं. कुल मिलाकर हमारा धार्मिक पर्यटन और उत्सव देश की अर्थव्यवस्था को गति दे रहे हैं. अकेले प्रयागराज के महाकुंभ से ही भारत की जीडीपी में एक फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है. बड़ी बात यह है कि ये उत्सव और त्योहार हमें जीने की प्रेरणा देते हैं और निराशा को दूर भगाते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)