Retail inflation : विगत जुलाई में खुदरा महंगाई दर का लुढ़क कर 1.55 फीसदी पर पहुंच जाना, जो जून, 2017 के बाद सबसे निचला स्तर है, वैश्विक उथल-पुथल के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत भरी खबर है. इससे एक महीने पहले- यानी जून में खुदरा महंगाई दर 2.1 प्रतिशत थी. जनवरी, 2019 के बाद पहली बार खुदरा महंगाई दो फीसदी से नीचे आ गयी है और पिछले छह साल में पहली बार है, जब यह रिजर्व बैंक के दो से छह फीसदी के सहनशीलता दायरे से नीचे आयी है. खाद्य महंगाई दर भी, जिसे खुदरा महंगाई दर (सीपीआइ) से मापा जाता है, जुलाई में जनवरी, 2019 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर में यह गिरावट अनाज, दाल, चीनी, अंडे तथा परिवहन सेवाओं आदि की कीमत में कमी के कारण आयी है. खासकर सब्जियों और दालों की कीमतों में एक साल पहले के मुकाबले आयी तेज गिरावट को खुदरा महंगाई दर में कमी की सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है. एक साल पहले की तुलना में सब्जियों की कीमत में 20.69 प्रतिशत और दाल तथा उनके उत्पाद के दाम में 13.76 फीसदी की कमी आयी. मांस और मछली की महंगाई दर में भी गिरावट जारी रही. इस कारण गांवों तथा शहरों, दोनों जगह रहने वाले लोगों को राहत मिली. हालांकि इस दौरान ईंधन और बिजली की महंगाई दर में वृद्धि भी देखी गयी.
खुदरा महंगाई दर में रिकॉर्ड गिरावट को देखते हुए रिजर्व बैंक ने पूरे साल की महंगाई का अनुमान घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया है, जो पहले 3.7 फीसदी था. केंद्रीय बैंक के अनुमान के मुताबिक, औसत महंगाई दूसरी तिमाही में 2.1 फीसदी, तीसरी तिमाही में 3.1 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.4 फीसदी रहने की उम्मीद है. जबकि अप्रैल से अब तक औसत महंगाई दर तीन प्रतिशत से भी कम रही है.
गौरतलब है कि महंगाई दर में कमी लाने और जीडीपी ग्रोथ को मजबूत करने के लिए रिजर्व बैंक की तरफ से फरवरी से जून तक रेपो दर में 100 बेसिस पॉइंट (एक फीसदी) की कमी की गयी. बाजार में इसका असर दिखाई दे रहा है. हालांकि इस महीने रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित ही रखा. केंद्रीय बैंक फिलहाल ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति अपना रहा है, ताकि अमेरिकी व्यापार नीतियों और ब्याज दर में पिछली कटौतियों के असर का आकलन किया जा सके.

