Nobel-prize-in-literature : नोबेल साहित्य पुरस्कार के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि जिनके नाम की वर्षों से प्रतीक्षा थी, इस बार उसी हंगेरियन लेखक लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है. क्रास्जनाहोरकाई को यह पुरस्कार उनके सम्मोहक और दूरदर्शी आख्यान के लिए दिया गया है, जो सर्वनाशकारी आतंक के बीच कला और मानवीय वृतांत को स्पष्टता से प्रस्तुत करते हैं. इस नये विश्व में मनुष्य की अभिव्यक्ति के कितने चेहरे हो सकते हैं, उनका साहित्य एवं उनका बुलंद वृतांत नयी दुनिया की अभिव्यक्ति में नये मनुष्य के अंतर की यात्रा को चित्रित करता है.
क्रास्जनाहोरकाई के लेखन के बारे में स्वीडिश अकादमी ने कहा है कि उनका साहित्य लोकधारा एवं समाज की धरोहर के उन पन्नों की दास्तान है, जो मानवीय अभिव्यक्ति एवं संघर्ष के वाक्यों से बुना हुआ है, जिसमें विपत्ति की छाया हमेशा मंडराती रहने के बावजूद आशा की एक पतली किरण चमकती है. यह पुरस्कार न केवल हंगरी के साहित्य को वैश्विक पटल पर स्थापित करता है, बल्कि उन लेखकों की परंपरा को भी मजबूत करता है जो मानवीय अस्तित्व की सीमाओं को टटोलते हैं.
लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई का जन्म पांच जनवरी, 1954 को हंगरी के छोटे से शहर गुयिला में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता एक वकील थे, जिन्होंने अपने यहूदी होने को वर्षों तक छिपाये रखा. बचपन की यही गोपनीयता शायद उनके साहित्य में छिपी उस रहस्यमयी परत को जन्म देती है, जो पाठकों को अंतहीन खोज में उलझा देती है. वर्ष 1972 में उन्होंने हाई स्कूल से लैटिन में विशेषज्ञता के साथ स्नातक किया. उसके बाद कानून की पढ़ाई की, लेकिन उनका असली आकर्षण हंगेरियन भाषा और साहित्य की ओर था.
उनका व्यक्तित्व विरोधाभासों का संग्रह है, जो बताता है कि वह बाहरी दुनिया से कटे हुए एकांतप्रिय हैं, जो एक पहाड़ी इलाके में एकांतवास की जिंदगी जीते हैं, परंतु आंतरिक रूप से वे एक अथक यात्री हैं. कम्युनिस्ट हंगरी के दौर में, जब पुलिस ने उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया था, तब उनके लिए यात्रा असंभव हो गयी थी. वर्ष 1990 के दौरान मंगोलिया और चीन की यात्राओं ने उनके साहित्य को पूर्वी सौंदर्य और दर्शन से समृद्ध किया. इन यात्राओं ने उन्हें एक ऐसा व्यक्तित्व बनाया जो दुनिया को इस नजर से देखता है, जैसे वह किसी महाकाव्य के कगार पर खड़ी हो.
हंगेरियन साहित्य में उनकी सार्वभौमिक दृष्टि और लेखन की गहराई की तुलना अक्सर निकोलई गोगोल की प्रसिद्ध रचना ‘डेड सोल्स’ से की जाती है. वे साक्षात्कारों में संकोची दिखते हैं, लेकिन उनकी बातों में एक गहन आध्यात्मिक खोज झलकती है. बौद्ध दर्शन और पूर्वी कला से प्रभावित, क्रास्जनाहोरकाई जीवन को एक ‘सांसारिक नृत्य’ मानते हैं, जहां सब कुछ क्षणभंगुर है. उनका यह व्यक्तित्व उनके साहित्य में भी प्रतिबिंबित होता है- निराशावादी, पर कला की मुक्ति में विश्वास रखने वाला. स्वीडिश अकादमी की उद्घोषणा इसी बात को संदर्भित करती है- ‘प्रलयंकारी भयावहता के बीच कला की शक्ति’. यह उनके रचनाकर्म के उस विश्वास को उजागर करती है कि साहित्य ही वह पुल है जो विनाश से पार ले जाता है. उनका लेखन अस्तित्व की व्यर्थता और आध्यात्मिक मुक्ति के इर्द-गिर्द घूमता है, लेकिन हमेशा एक सूक्ष्म आशा की किरण के साथ.
उनके पहले उपन्यास ‘सैटैंटैंगो’ (1985) ने उन्हें तुरंत प्रसिद्धि दी. इसमें हंगरी के एक ग्रामीण की कहानी है, जहां एक संप्रदाय का पतन एपोकैलिप्स (कयामत) की तरह चित्रित होता है. इस उपन्यास ने 2013 में अनुवाद का पुरस्कार जीता और ‘बेला टैर’ द्वारा इसे फिल्म में रूपांतरित किया गया. उनकी रचनाएं हंगेरियन साहित्य को समृद्ध करती हैं. क्रास्जनाहोरकाई का शिल्प-जो वाक्यों को एक सिंफनी की तरह बुनता है-पाठकों को दुनिया की नाजुकता का अहसास कराता है. अकादमी की उद्घोषणा में उनकी दूरदर्शी कृति का उल्लेख उनके इसी शिल्प की सराहना करता है, जो भयावहता के बीच कला को एक उद्धारक के रूप में स्थापित करता है.
क्रास्जनाहोरकाई विश्व साहित्य में एक पुल की तरह हैं जो पूर्व-पश्चिम को जोड़ते हैं. उनके साहित्य की यही धारा उनको दुनिया के दूसरे लेखकों से अलग बनाती है. उनकी समूची लेखनी में प्रेम, एक संवेदनशील लेखक और मनुष्य की गाथा शब्दों में पिरोई दिखाई देती है. उनकी समूची रचनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि मनुष्य कभी हारता नहीं है और संघर्ष खत्म नहीं होता. उनके शब्द जब दिल की गहराइयों से निकलकर कागज पर उतरते हैं, तो वे केवल कहानी नहीं कहते, बल्कि आत्माओं को जोड़ते हैं, समय को थाम लेते हैं, और मानवता के हर रंग को एक नया अर्थ देते हैं. ऐसे लेखक को साहित्य का नोबेल मिलना उस अभिव्यक्ति तथा संघर्ष का सम्मान है जो शब्दों के जरिये नयी विश्व की संभावनाओं में नये मनुष्य को तलाशता हुआ दिखाई देता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

