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लिपुलेख पर नेपाल की आपत्ति जायज नहीं

Nepal on Lipulekh : लिपुलेख दर्रा सदियों से भारत और तिब्बत के पठार के बीच प्राचीन व्यापार और तीर्थयात्रा मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. व्यापारी, भिक्षुक और तीर्थयात्री ऊन, नमक, बोरेक्स जैसी वस्तुओं और सांस्कृतिक विचारों के आदान-प्रदान के लिए इस दर्रे से होकर गुजरते थे.

-डॉ सौरभ, एसोसिएट प्रोफेसर
साउथ एशियन स्टडीज, जेएनयू-


Nepal on Lipulekh : पिछले दिनों विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री के बीच वार्ता के दौरान भारत और चीन संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों के तहत शिपकी ला और नाथू ला के साथ लिपुलेख के माध्यम से व्यापार को फिर से खोलने पर सहमत हुए. ट्रंप के मनमाने व्यापार-एकतरफावाद ने भारत को चीन के साथ संबंधों को सुधारने की ओर बढ़ाया है. यह हिमालयी दर्रों के पुनः खुलने की संभावना बढ़ाता है, भारत के व्यापक हिमालयी संपर्क लक्ष्यों का समर्थन करता है, जिसमें तिब्बती बाजारों तक पहुंच शामिल है तथा 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा के दौरान व्यापारिक वस्तुओं का विस्तार करने के समझौतों के अनुरूप है. इस घटनाक्रम पर नेपाल की प्रतिक्रिया थी- ‘नेपाल के संविधान में शामिल आधिकारिक मानचित्र महाकाली नदी के पूर्व में लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को देश के अभिन्न अंग के रूप में दर्शाता है’. नयी दिल्ली ने कहा कि काठमांडू के क्षेत्रीय दावे ‘न तो उचित थे और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित थे.’


लिपुलेख दर्रा सदियों से भारत और तिब्बत के पठार के बीच प्राचीन व्यापार और तीर्थयात्रा मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. व्यापारी, भिक्षुक और तीर्थयात्री ऊन, नमक, बोरेक्स जैसी वस्तुओं और सांस्कृतिक विचारों के आदान-प्रदान के लिए इस दर्रे से होकर गुजरते थे. उत्तराखंड के ऊपरी पिथौरागढ़ के भोटिया जैसे स्थानीय समुदाय तिब्बत के साथ व्यापार के लिए इस दर्रे पर निर्भर थे. वर्ष 1954 में तिब्बत के साथ व्यापार और संपर्क पर भारत-चीन समझौते के तहत इस दर्रे को एक व्यापार मार्ग के रूप में औपचारिक रूप दिया गया था. वर्ष 1992 में एक सहमति पत्र के बाद आधिकारिक तौर पर व्यापार फिर से शुरू हुआ. उसके बाद 1994 में शिपकी ला और 2006 में नाथू ला को भी व्यापार के लिए खोला गया.


लिपुलेख कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए अनिवार्य है. वर्ष 2020 में निर्मित 90 किलोमीटर लंबी धारचूला-लिपुलेख सड़क के माध्यम से लिपुलेख भारत से इन स्थलों तक का सबसे छोटा और सबसे सुलभ मार्ग प्रदान करता है, जिससे यात्रा का समय हफ्तों से घटकर केवल तीन-चार दिन रह गया है. लिपुलेख उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है तथा भारत व चीन के बीच सीधे सीमा व्यापार को सुगम बनाता है. यह कोविड-19 और भू-राजनीतिक तनावों के बाद 2025 में फिर से शुरू होगा. भू-राजनीतिक दृष्टि से लिपुलेख भारत की सीमा सुरक्षा और चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य रसद आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत ने इस क्षेत्र में अपनी स्थायी सैन्य उपस्थिति स्थापित की.

नेपाल ने लिपुलेख सड़क खोलने का कड़ा विरोध किया था. तब नेपाल की संसद ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को अपना क्षेत्र दर्शाते हुए एक नये राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी दी, जिसे भारत ने नेपाल द्वारा दावों का ‘कृत्रिम विस्तार’ बताया. दरअसल लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा वर्षों से भारत के नियंत्रण में हैं, वहां रहने वाले भारतीय नागरिक हैं, भारत में कर देते हैं और भारतीय चुनावों में मतदान करते हैं. भारत-नेपाल सीमा का निर्धारण 1816 की सुगौली संधि द्वारा किया गया था. क्षेत्रीय दावे काली नदी के उद्गम स्थल पर केंद्रित हैं. नेपाल के मुताबिक, यह नदी लिपुलेख के उत्तर-पश्चिम में लिंपियाधुरा की एक धारा से निकलती है. इस प्रकार, कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख नदी के पूर्व में स्थित हैं और नेपाल का हिस्सा हैं. जबकि भारत का कहना है कि काली नदी दर्रे के काफी नीचे स्थित झरनों से निकलती है, और हालांकि संधि इन झरनों के उत्तर के क्षेत्र का सीमांकन नहीं करती, फिर भी 19वीं सदी के प्रशासनिक और राजस्व रिकॉर्ड बताते हैं कि कालापानी भारत की ओर था.

भारत ने वर्षों से इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया है और चीन के साथ सीमा दर्रे तक प्रशासन चलाने और सैन्य बल तैनात करने के अलावा पहले भी अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है. वर्ष 2015 के एक बयान में चीन ने लिपुलेख दर्रे के माध्यम से व्यापार बढ़ाने पर सहमति जताकर भारत की संप्रभुता को भी मान्यता दी थी.


तेजी से बदलती वैश्विक कूटनीतिक बिसात में भारत और नेपाल द्विपक्षीय संबंधों को बनाये रखते हुए, व्यापार सहयोग को गहरा करते हुए, आपसी हितों को आगे बढ़ाते हुए आगे बढ़ रहे हैं. विगत जून में भारत ने ऑपरेशन सिंधु के तहत इस्राइल-ईरान संघर्ष के दौरान ईरान से तीन नेपाली नागरिकों को निकाला था. नेपाल ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर भी भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की. काठमांडू ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर का भी समर्थन किया. सांस्कृतिक मोर्चे पर भारत बेंगलुरु स्थित बीसीसीआइ की राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी में नेपाल की क्रिकेट प्रतिभाओं का प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहा है. रक्षा और चिकित्सा सहायता से लेकर आपातकालीन निकासी और क्रिकेट सहयोग तक हालिया संबंध भारत-नेपाल में गर्मजोशी के दौर का संकेत देती है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की लंबे समय से विलंबित भारत यात्रा अगले महीने है और उम्मीद है कि इस बैठक से दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत होंगे. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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