Mohammad Yunus : भारत के पूर्वोत्तर में हाल ही में बढ़ा तनाव, जो मुख्य रूप से बांग्लादेश के अंतरिम मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की उकसाने वाली कार्रवाइयों से उत्पन्न हुआ है, दक्षिण एशिया की बदलती भू-राजनीति के लिए एक गंभीर चेतावनी है. जब क्षेत्रीय स्थिरता पहले से ही महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के कारण दबाव में है, तब ढाका की यह निर्वाचित नहीं, बल्कि अंतरिम सरकार भारत के सबसे संवेदनशील सामरिक क्षेत्र में नयी अस्थिरता जोड़ रही है.
एक ऐसी सरकार जिसे चुनाव कराने और सत्ता निर्वाचित नेतृत्व को सौंपने पर ध्यान देना चाहिए था, वह अब भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और क्षेत्रीय हितों को चुनौती देने वाली कार्रवाइयों में सक्रिय दिखाई देती है. भारत की हालिया प्रतिक्रिया भी सख्त है. पूर्वोत्तर सीमा पर विस्तृत हवाई क्षेत्र में कई ‘नोटम’ (एनओटीएएम) जारी करना, जिसका अर्थ नोटिस टू एयर मिशन है, और बड़े स्तर पर वायुसेना अभ्यास शुरू करना- इस स्थिति की गंभीरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है.
ढाका की उकसाने वाली हरकतें यूनुस के सत्ता में आने के तुरंत बाद शुरू हो गयी थीं. हाल में यूनुस ने पाकिस्तान के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्जा को ‘आर्ट ऑफ ट्रायंफ’ नामक एक कॉफी टेबल बुक भेंट की. इसके कवर पर भारत के संप्रभु क्षेत्रों- असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल- को बांग्लादेश का हिस्सा दिखाने वाली विवादास्पद तस्वीर थी. जाहिर है, यूनुस की वह हरकत सुनियोजित थी. यूनुस समर्थकों ने हालांकि उस तस्वीर को अमूर्त कला कहा, लेकिन भारत में इसे ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की खतरनाक सोच से जोड़कर देखा गया है. यह कोई अकेली घटना नहीं है, पिछले एक वर्ष में इस तरह के कई मामले सामने आये हैं.
दिसंबर, 2024 में यूनुस के सलाहकार ने एक नक्शा पोस्ट किया था, जिसमें भारतीय राज्य बांग्लादेश के हिस्से के रूप में दर्शाये गये थे. उस पर भारत ने सख्त राजनयिक विरोध दर्ज कराया था. इससे भी अधिक चिंता दरअसल यूनुस के बयानों से पैदा हुई है. इस वर्ष के शुरुआत में चीन यात्रा के दौरान यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर को लैंडलॉक्ड बताते हुए कहा था कि बांग्लादेश इस क्षेत्र का ‘ओशन गार्जियन’ है. यूनुस का वह दावा आपत्तिजनक और उकसाने वाला था. उन्होंने यहां तक कहा था कि चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहिए, क्योंकि उनके अनुसार भारत का पूर्वोत्तर ‘चीनी आर्थिक क्षेत्र का विस्तार’ है. उनका वह बयान भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाला था.
यूनुस के भारत विरोध के बरक्स नयी दिल्ली ने संयम और दृढ़ता का परिचय दिया है. इस बीच केंद्र सरकार ने बांग्लादेश को मिलने वाली कुछ पारगमन सुविधाएं समाप्त कर दी हैं, जिनके तहत बांग्लादेशी माल भारत के रास्ते नेपाल और भूटान भेजा जाता था. व्यापार और ट्रांजिट नियमों को भी कड़ा किया गया है. पर यूनुस की हरकतें बढ़ने के साथ भारत की सहनशीलता कम होती जा रही है. पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र पर ‘नोटम’ जारी करना, जो चीन, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश से घिरा है, स्पष्ट संकेत है कि भारत स्थिति को हल्के में नहीं ले रहा.
इस महीने से आगामी जनवरी तक भारतीय वायुसेना बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास करेगी, जिसमें कॉम्बैट ट्रेनिंग, समन्वित उड़ानें, लॉजिस्टिक ऑपरेशन और हाई इंटेंसिटी तैयारियां शामिल होंगी. इससे पहले ऐसे ‘नोटम’ भारत ने पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति में ही जारी किये थे. इस पूरे घटनाक्रम की व्यापक सामरिक पृष्ठभूमि की अनदेखी नहीं की जा सकती. शेख हसीना के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश संबंध अपेक्षाकृत स्थिर और सकारात्मक थे. लेकिन यूनुस के नेतृत्व में ढाका तेजी से चीन की ओर झुक रहा है और अब पाकिस्तान को भी इस नयी धुरी में शामिल करने का प्रयास कर रहा है. यह केवल ऐतिहासिक विडंबना ही नहीं है, बल्कि रणनीतिक रूप से खतरनाक भी है. यह कौन नहीं जानता कि 1971 में पाकिस्तान ने बांग्लादेश पर अत्याचार किया था?
इस तरह की खबरें हैं कि कुख्यात पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने कॉक्सबाजार, मौलवीबाजार, टेकनाफ और उत्तरी बांग्लादेश में, जो भारतीय सीमा के बेहद पास हैं, अपनी गतिविधियां फिर से तेज कर दी हैं. ठीक इसी समय चीन डोकलाम पठार पर स्थित भारत-भूटान-चीन त्रिसंधि क्षेत्र और लालमुनीरहाट में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, जो सिलीगुड़ी कॉरिडोर के बेहद निकट है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है, भारत की बेहद संवेदनशील जगह है. केवल 22 किलोमीटर चौड़ी यह पट्टी मुख्य भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ती है. यानी वहां किसी तरह की व्यवधान की स्थिति में पूर्वोत्तर की पूरी आबादी अलग-थलग पड़ सकती है. यूनुस समर्थक सैन्य अधिकारियों द्वारा दिये गये पुराने बयान ने भी भारत की चिंता बढ़ा दी है, जिसमें कहा गया था कि यदि भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया, तो चीन और बांग्लादेश मिलकर पूर्वोत्तर को अस्थिर कर सकते हैं. भले ही यूनुस का वह बयान अतिरंजित रहा हो, लेकिन बार-बार दोहराये जाने से अस्थिरता का माहौल बनता है.
भारत ने इस स्थिति में दृढ़ और रणनीतिक रुख अपनाया है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर में अभूतपूर्व गति से इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण हो रहा है. नयी सड़कें, समानांतर रेलवे लाइनें और लॉजिस्टिक हब बनाये जा रहे हैं. सुरक्षा अभ्यास और सेना की तैनाती मजबूत की जा रही है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने चेतावनी दी है कि यदि बांग्लादेश भारतीय ‘चिकन नेक’ को निशाना बनाता है, तो भारत भी बांग्लादेश के दो ‘चोकपॉइंट’- रंगपुर कॉरिडोर और चटगांव कॉरिडोर- को बंद करने की क्षमता रखता है. कुछ समय पहले तक भारत-बांग्लादेश संबंध दक्षिण एशिया में आदर्श माने जाते थे. पर यूनुस की अंतरिम सरकार के उकसाने वाले कदमों ने इस विश्वास को गहरा झटका दिया है. भारत में अब यह धारणा मजबूत हो रही है कि ये घटनाएं आकस्मिक नहीं, योजनाबद्ध रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य तनाव बढ़ाकर यूनुस के शासन को लंबा करना है.
यह राजनीतिक अवसरवाद बांग्लादेश के लिए भारी पड़ सकता है. भारतीय वायुसेना के मौजूदा अभ्यास केवल सैन्य ड्रिल नहीं हैं, वे स्पष्ट संदेश हैं कि भारत अपनी संप्रभुता पर किसी भी चुनौती को स्वीकार नहीं करेगा. भारत क्षेत्र में स्थिरता और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक पुनर्स्थापना चाहता है, पर ढाका की वर्तमान उकसाने वाली नीति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अब जिम्मेदारी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर है कि वह समय रहते स्थिति को संभाले, वरना दोनों देशों के संबंधों को गंभीर क्षति हो सकती है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

