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विकास और महंगाई के बीच संतुलन बनाने की पहल

Growth And Inflation : रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, जून तिमाही में बैंकिंग ऋण में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि में जमा राशि में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 10.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसका प्रमुख कारण ग्रीष्मकालीन बुवाई और मॉनसून के समय निवेश और खपत में नरमी रहना है.

Growth And Inflation : भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अक्तूबर को टैरिफ से उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितताओं, भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभावों, रुपये की कमजोरी और विकास तथा मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए नीतिगत ब्याज दरों को लगातार दूसरी बार 5.5 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रखा. चूंकि 2025 की शुरुआत से रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में 100 आधार अंकों की कटौती कर चुका है, फिर भी नये ऋणों में 58 आधार अंकों की कटौती बैंकों ने अभी तक नहीं की है. रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में कटौती नहीं करने के बावजूद बैंकों द्वारा उधारी दरों में कटौती करने की संभावना बनी हुई है. साथ ही, आवश्यकता पड़ने पर रिजर्व बैंक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती करके भी बैंकों को सस्ती पूंजी उपलब्ध करा सकता है.


रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, जून तिमाही में बैंकिंग ऋण में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी अवधि में जमा राशि में वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 10.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसका प्रमुख कारण ग्रीष्मकालीन बुवाई और मॉनसून के समय निवेश और खपत में नरमी रहना है. कमजोर मांग के कारण मार्च, 2025 को समाप्त वित्तीय वर्ष में बैंकिंग क्षेत्र की ऋण वृद्धि पिछले वर्ष के 16 प्रतिशत से घटकर 12 प्रतिशत रह गयी. जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआइसीजीसी) की मौजूदा व्यवस्था में मजबूत और कमजोर बैंक एक सामान प्रीमियम दे रहे हैं, जिसे बदलकर केंद्रीय बैंक आगामी वित्त वर्ष से जोखिम आधारित प्रीमियम मॉडल शुरू करेगा, जिसके तहत मजबूत बैंक कम प्रीमियम देंगे और कमजोर बैंक ज्यादा. इससे मजबूत बैंक की लागत कम होगी और वे पूंजी का इस्तेमाल ऋण देने में कर सकेंगे, जबकि कमजोर बैंक अपना कारोबार बढ़ाने के लिए खुद को मजबूत करने के लिए प्रेरित होंगे.

इससे आम जन का पैसा बैंकों में ज्यादा सुरक्षित रहेगा तथा बैंकिंग प्रणाली और ज्यादा मजबूत होगी. टैरिफ और रुपये में गिरावट तथा निरंतर उतार-चढ़ाव रहने के बावजूद भारत की बाह्य कारोबारी पारिस्थितिकी लचीली बनी हुई है. इसे और सशक्त बनाने के लिए केंद्रीय बैंक ने नेपाल, भूटान व श्रीलंका में अनिवासियों को सीमा पार कारोबार करने के लिए रुपये में ऋण देने की अनुमति का प्रस्ताव रखा है. ऐसे ऋण की वापसी भी रुपये में की जा सकेगी, जिससे रुपया मजबूत होगा और भारतीय कारोबारियों को आयात-निर्यात में आसानी होगी. रुपये में दूसरे देशों के साथ कारोबार किया जा सके, इसके लिए 2022 में रिजर्व बैंक ने स्पेशल ‘रुपी वोस्ट्रो खाते’ का आगाज किया था. भारत रूस के साथ रुपये में कारोबार कर चुका है और ईरान के साथ भी यह जल्द ही रुपये में कारोबार शुरू करने वाला है. रिजर्व बैंक की योजना 18 देशों के साथ रुपये में कारोबार शुरू करने की है. माना जा रहा है कि सरकार की इस पहल से विदेशी मुद्रा की मांग और मुद्रा विनिमय की जोखिम में कमी आयेगी. इस पहल से रुपये की स्वीकार्यता भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी.


जीएसटी दरों में कटौती और खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी के कारण आगामी महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) मुद्रास्फीति के कम रहने की उम्मीद है. रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमानों को 3.1 प्रतिशत से घटाकर 2.6 प्रतिशत कर दिया है. दूसरी तिमाही के लिए भी इसे 2.1 प्रतिशत से घटाकर 1.8 प्रतिशत और तीसरी तिमाही के लिए 3.1 प्रतिशत से कम करके 1.8 प्रतिशत किया है. उधर हेडलाइन मुद्रास्फीति भी जून के 3.7 प्रतिशत से घटकर अगस्त में 3.1 प्रतिशत रह गयी, जो दर्शाती है कि अंतर्निहित मूल्य दबाव काफी हद तक नियंत्रण में हैं. समग्र मुद्रास्फीति भी नियंत्रण में है.

खुदरा महंगाई के कम रहने से विकास को बल मिलेगा और आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में रिजर्व बैंक को नीतिगत दरों में कटौती करने में आसानी होगी, बैंकों की उधारी दरों में कमी और उनके उठाव में तेजी आयेगी और आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओइसीडी) ने मजबूत घरेलू मांग और जीएसटी सुधारों के कारण भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 2025 में 6.7 प्रतिशत कर दिया, जो पहले 6.3 प्रतिशत था. हालांकि एशियाई विकास बैंक ने पहली तिमाही में जीडीपी की 7.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बावजूद, टैरिफ की वजह से वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत के विकास पूर्वानुमान को घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है.


एकाध अपवाद को छोड़ दें, तो अधिकांश अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि जीएसटी सुधार से टैरिफ के प्रभाव में कमी, मौद्रिक सहजता, घरेलू मांग में मजबूती, आर्थिक गतिविधियों में तेजी और जीडीपी वृद्धि दर को बल मिलेगा. हालांकि, हाल में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि अगस्त महीने में वर्ष-दर-वर्ष धीमी होकर चार प्रतिशत पर रही, जो मोटे तौर पर विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती रहने के कारण हुई. बावजूद इसके, माना जा रहा है कि त्योहारी मांग और जीएसटी सुधार से जल्द ही इसकी वृद्धि दर में तेजी आयेगी. ऐसे में यह कहना समीचीन रहेगा कि रिजर्व बैंक ने अमेरिकी टैरिफ, रुपये की कमजोरी तथा विकास और महंगाई के बीच संतुलन बनाये रखने के लिए रेपो दर को यथावत रखा है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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