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हिमाचल में समन्वय और संवाद में चूक

भारतीय जनता पार्टी के लिए यह राज्य खोना बड़ी बात है. हिमाचल प्रदेश छोटा राज्य भले है, पर यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसी राज्य से आता है. प्रधानमंत्री मोदी का भी यह बहुत प्रिय राज्य रहा है.

हिमाचल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के करीब 20 बागी उम्मीदवार थे. संभवत: इन उम्मीदवारों का बागी होना ही पार्टी को महंगा पड़ा है. मुद्दों की यदि बात की जाए, तो यहां कई मुद्दे हावी रहे. इस राज्य की बहुसंख्य जनसंख्या हिंदू है और उसमें भी सवर्ण बहुत अधिक हैं. इस लिहाज से देखा जाए, तो यह भारतीय जनता पार्टी का गढ़ होना चाहिए था. यह भी स्पष्ट है कि हिंदू और सवर्ण जनसंख्या अधिक होने के कारण यहां अल्पसंख्यक समुदाय की राजनीति नहीं है.

राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राजपूत जाति से आते हैं और चयनित भी थे. दूसरे, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और सांसद व मंत्री अनुराग ठाकुर, दोनों इसी राज्य से आते हैं. ये दोनों भी भाजपा के कद्दावर नेता हैं. ऐसे में इन दोनों की बात, पार्टी की बात यहां के नेतृत्व द्वारा नहीं माना जाना भाजपा की हार का एक बड़ा कारण नजर आ रहा है.

इसके अतिरिक्त, जो बातें यहां महत्वपूर्ण और बड़ी दिख रही हैं, जो भाजपा की हार का कारण बनी हैं चुनाव में, उनमें एक है पुरानी पेंशन योजना. इसे लेकर यहां काफी चर्चा हो रही थी. सरकारी नौकरी करने वालों को पेंशन नहीं मिलने से दिक्कत है, वे अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं. आशंका यह कि बिना पेंशन उनका आगे का जीवन कैसे व्यतीत होगा. केवल नौकरीपेशा ही नहीं, बल्कि जो अवकाशप्राप्त हैं, उनको भी पेंशन की कमी खली है.

इन बातों पर गौर करें, तो कहीं न कहीं यह पता चलता है कि यहां के लोगों को नौकरी और पेंशन के लिए सरकार पर ही भरोसा है. निजी क्षेत्र की नौकरियों यहां इतनी नहीं हैं. इसलिए लोग सरकार के भरोसे पर ही है. यहां के लोगों के लिए सरकार ही नौकरी और पेंशन दोनों का स्रोत है. दूसरी महत्वपूर्ण बात, सेना की भर्ती प्रक्रिया में जो बदलाव आया है, अग्निवीर योजना आदि को लेकर, वह लोगों को विशेष पसंद नहीं आयी है. चूंकि इस राज्य के बहुत से लोग सेना में जाते हैं, सो कान्ट्रैक्चुअल एम्पलॉयमेंट पर अभी लोगों को भरोसा नहीं है.

उनका मानना है कि इस योजना के कारण सेना में भर्ती होने में चार वर्ष की देरी हो जायेगी. लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अग्निवीर के कारण नौकरी करने से पहले उनका एक क्रेडेंशियल बन जायेगा, बल्कि उन्हें यह लगता है कि इस कारण नौकरी में प्रवेश करने में उनके लिए चार वर्ष का विलंब हो जायेगा. कहीं न कहीं लोगों में भाजपा को लेकर भी रोष है. इसे देखकर यही लगता है कि पार्टी की जो दलगत व्यवस्था रही है उसकी बागडोर भी प्रधानमंत्री को अपने हाथों में लेनी पड़ेगी.

भारतीय जनता पार्टी के लिए यह राज्य खोना बड़ी बात है. प्रियंका गांधी यहां कैंपेन कर रही है और कांग्रेस को सीधी लड़ाई में यहां विजय मिली है. हिमाचल प्रदेश छोटा राज्य भले है, पर यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इसी राज्य से आता है. प्रधानमंत्री का भी यह बहुत प्रिय राज्य रहा है, क्योंकि जब तक वे प्रधानमंत्री नहीं बने थे, यह राज्य उनकी राजनीतिक जिम्मेदारी का एक हिस्सा था.

प्रधानमंत्री बनने से पूर्व यहां की कैंपेनिंग वे स्वयं देखा करते थे. आज जरूर वे यह बात सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों ऐसा हुआ, क्यों लोग बागी हुए, जबकि पार्टी के दो कद्दावर लोग यहां से आते हैं. एक और महत्वपूर्ण बात, हिमाचल प्रदेश में सवर्ण आयोग बन गया था, फिर भी यहां भाजपा हार गयी. तो एक बात एकदम स्पष्ट है कि सवर्णों के बीच भी बेरोजगारी का मामला महत्वपूर्ण व बड़ा रहा है. एक बात और, कोविड के बाद जिस तरह से लोगों की आर्थिक स्थिति बदहाल हुई है, वह भी भाजपा की हार का कारण हो सकता है.

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