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नुकसानदेह कुवैत कोटा बिल

लाखों प्रवासी भारतीयों ने दुनिया के कई देशों में काम करते हुए रेमिटेंस के जरिये देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया. वैश्विक स्तर पर रेमिटेंस में गिरावट का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था और प्रवासी भारतीयों पर आश्रित उनके परिवारों पर पड़ेगा.

रिजवान अंसारी, टिप्पणीकार

rizwan911ansari@gmail.com

दुनिया ने कई आर्थिक मंदी देखी है. लेकिन, विश्वबैंक ने अप्रैल में ही आगाह कर दिया था कि कोरोना वायरस महामारी जनित मंदी सबसे गंभीर होगी. विश्वबैंक का शक यकीन में तब्दील होता दिख रहा है. पूरी दुनिया की आर्थिक व्यवस्था चरमराती जा रही है. हर देश की सरकार नौकरी और खर्च में कटौती करने में जुट गयी है. लेकिन, इन कदमों से दुनिया के दूसरे देश ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.

वैश्विक आपदा के चलते अब तक 1.5 लाख भारतीय खाड़ी देशों से वापस आ चुके हैं. इनमें से 70 हजार ऐसे हैं, जिनकी नौकरी छिन चुकी है. लेकिन, प्रवासी कोटा बिल मसौदे को मंजूरी देकर कुवैत की नेशनल असेंबली ने भारत के सामने इससे भी बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है. यह बिल पूरे कुवैत में दुनियाभर से आये प्रवासियों को कम करने के लिए लाया गया है. लेकिन, भारत के लिए यह दो वजहों से खासा चिंतित करनेवाला है.

पहली वजह, कुवैत की प्रवासी आबादी में भारत की हिस्सेदारी (14.5 लाख) सबसे ज्यादा है. दूसरी, यह कि भारतीय प्रवासियों की आबादी को घटाकर महज 15 फीसदी पर लाने का प्रावधान है. अगर इस बिल को अमल में लाया जाता है, तो आठ लाख भारतीयों को वापस लौटना पड़ सकता है. अब सवाल है कि कुवैत यह बिल क्यों ला रहा है? वर्तमान में कच्चा तेल गिरावट के दौर से गुजर रहा है और यह खाड़ी देशों की आमदनी का मुख्य स्रोत है.

इससे वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. खर्चों को कम करने के लिए कामगारों की छंटनी की जा रही है. दूसरी वजह है कि कुवैत में ज्यादातर कोरोना पॉजिटिव मामले विदेशी प्रवासियों में देखने को मिले हैं. भीड़-भाड़ वाले आवास में रहने से इनके बीच संक्रमण तेजी से हुआ है. लिहाजा, वहां प्रवासी विरोधी आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है.

खाड़ी देशों की हालत खराब होने और भारतीयों की नौकरी जाने से भारत के सामने दो तरह की चुनौती आ गयी है. पहली, प्रवासियों द्वारा भेजे जानेवाले धन (रेमिटेंस) में गिरावट से भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और दूसरी, इन बेरोजगार प्रवासियों को सरकार रोजगार कैसे मुहैया करायेगी. दरअसल, दुनियाभर के देशों से जो पैसे भारत आते हैं, उनमें संयुक्त अरब अमीरात (युएई), सऊदी अरब, कुवैत और कतर जैस खाड़ी देश शीर्ष पर हैं. पिछले कुछ सालों में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप रेमिटेंस की अहमियत बढ़ी है.

विकासशील देशों में रेमिटेंस विदेशों से होनेवाली आय का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है. लेकिन, महामारी के कारण इसमें भारी कमी आयेगी. ब्लूमबर्ग के मुताबिक युएई से भारत आनेवाले फंड में साल 2020 की दूसरी तिमाही में ही 35 फीसदी की गिरावट आयेगी. वर्ष 2018 में कुवैत से 4.8 बिलियन डॉलर धन भारत प्रेषित हुआ था. कुवैती सरकार के नये रुख के बाद इसमें भारी कमी आयेगी. विश्वबैंक के मुताबिक 2019 में भारत को रेमिटेंस के रूप में प्राप्त हुए 83 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बरक्स इस साल 64 बिलियन डॉलर प्राप्त होगा.

वर्ष 2018 में भारत दुनिया में सबसे ज्यादा रेमिटेंस प्राप्त करनेवाला देश था. लाखों प्रवासी भारतीयों ने दुनिया के कई देशों में काम करते हुए रेमिटेंस के जरिये देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया. वैश्विक स्तर पर रेमिटेंस में गिरावट का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था और प्रवासी भारतीयों पर आश्रित उनके परिवारों पर पड़ेगा.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशों से आनेवाले धन पोषण में वृद्धि, गरीबी दूर करने, स्वास्थ्य और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक रहे हैं. इस बात के भी प्रमाण हैं कि रेमिटेंस पानेवाले घरों में बाल मजदूरी के मामलों में कमी आयी है और शिक्षा पर होनेवाले खर्च में इजाफा हुआ है. लेकिन, अब न केवल इन परिवारों, बल्कि सरकार के सामने भी कई चुनौतियां खड़ी हो जायेंगी.

अभी भले ही केवल कुवैत सरकार यह कदम उठा रही हो, लेकिन भविष्य में दूसरे खाड़ी देश भी ऐसे नियम बना सकते हैं. विदेश मंत्रालय के मुताबिक करीब 85 लाख भारतीय केवल खाड़ी देशों में काम करने जाते हैं. अब आनेवाले दिनों में रोजगार की समस्या और विकराल होगी. भारत सरकार को व्यापक स्तर पर तैयारी करने की जरूरत है. खाड़ी देशों में कुशल और अकुशल दोनों ही तरह के कामगार जाते हैं.

लिहाजा, भारत सरकार को चाहिए कि वह विदेश से लौटने वाले भारतीयों के लिए एक डेटाबेस तैयार करे. इसमें उन्हें कार्यकुशलता के आधार पर चिन्हित किया जाये, ताकि उन्हें उनकी कुशलता के अनुसार रोजगार मुहैया कराया जा सके. हमें उनकी योग्यता, कार्यकौशल और अनुभवों को भारत को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प के साथ जोड़ने की जरूरत है.

मेक इन इंडिया जैसे नारों को हकीकत में बदलने का भी ये अच्छा मौका है. लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि सरकार रोजगार सृजन के उपायों पर जोर दे. भारत को खाड़ी देशों के साथ सहयोग के नये क्षेत्रों जैसे- स्वास्थ्य सेवा, दवा अनुसंधान और उत्पादन, पेट्रोकेमिकल, कम विकसित देशों में कृषि, शिक्षा और कौशल में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है. खाड़ी देश पेट्रोलियम उत्पादन के अलावा अन्य क्षेत्रों की ओर अर्थव्यवस्था को दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में भारत यहां विभिन्न क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाकर प्रमुख भूमिका निभा सकता है, ताकि वहां से भारतीयों की वापसी पर पूर्ण विराम लग सके.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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