27.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आपदा में सहकार

भारत ने दशकों से दुनिया के कई देशों को हर संभव सहायता दी है. ऐसे में आज हमें इस संकट की घड़ी में मदद लेने में गुरेज नहीं होना चाहिए.

आज हमारा देश कोरोना महामारी की भयावह चपेट में है. गंभीर रूप से संक्रमितों लोगों के उपचार के लिए जरूरी दवाओं, चिकित्सा वस्तुओं और ऑक्सीजन की कमी ने स्वास्थ्य प्रणाली को बेहाल कर दिया है. हालांकि इन चीजों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए एक ओर जहां देश में उत्पादन में बढ़ोतरी की जा रही है, वहीं अन्य देशों से भी मदद ली जा रही है. इस विकट परिस्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि देश को दुनिया से मदद मांगने की नौबत 16 सालों के बाद आयी है.

दिसंबर, 2004 की सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस आपदा का सामना करने में भारत सक्षम है और अगर आवश्यकता हुई, तो हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता मांगेंगे. यह महज एक बयान नहीं था, भारत की नीति में बड़े बदलाव की घोषणा थी. उससे पहले भूकंपों, चक्रवातों, बाढ़ आदि में विदेशों की मदद को भारत ने स्वीकारा था, लेकिन 2004 के आखिर से यह सिलसिला बंद हो गया.

दुनिया के कई देशों ने बाद की प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता का प्रस्ताव किया था, पर भारत ने उन प्रस्तावों को विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दिया था. लेकिन महामारी की दूसरी लहर का हमला बहुत बड़ा है और बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाने की चुनौती है. ऐसे में भारत ने चीन समेत कई देशों से जरूरी चीजों की आमद को हरी झंडी दे दी है. दक्षिण एशिया के अनेक पड़ोसी देशों समेत 20 से अधिक राष्ट्र भारत की मदद के लिए आगे आये हैं. कुछ समय बाद अमेरिका से टीकों की खेप आने की संभावना है.

इस संबंध में यह जरूर रेखांकित किया जाना चाहिए कि भारत ने दशकों से दुनिया के कई देशों, खासकर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों, को हर संभव सहायता दी है. अभी इस कोरोना काल में ही अनेक देशों को दवा, खाद्य पदार्थ और वैक्सीन की आपूर्ति भारत ने की है. संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न वैश्विक संस्थाओं में सामूहिक पहलों में भी भारत बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता रहा है. ऐसे में आज हमें इस संकट की घड़ी में बाहर से मदद लेने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए.

अमेरिका और चीन हमारे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार हैं. अमेरिका के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों में बीते एक-डेढ़ दशक में सहकार तेजी से बढ़ा है. ऐसे में वैक्सीन के लिए कच्चा माल और अधिशेष वैक्सीन मांगने में संकोच करना बेमतलब है. एक साल से चीन की आक्रामकता के कारण भारत क्षुब्ध है, लेकिन इसके बावजूद भारत ने आर्थिक मामलों में बदले की भावना से काम नहीं लिया है. पड़ोसी से ऐसे समय सहयोग लेना उचित है. रूस हमारा बहुत पुराना मित्र राष्ट्र है. यूरोपीय देशों से सहकार निरंतर प्रगाढ़ हो रहा है. ऐसा ही अरब देशों के साथ है. विश्व समुदाय परस्पर सहयोग से ही वैश्विक समस्याओं का समाधान कर सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें