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अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए गांवों का विकास जरूरी

Indian Economy : गांवों को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार ने दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की शुरुआत की है. इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देशभर में ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है. संस्कृति की प्रकृति वहां के वातावरण पर आधारित होती है.

Indian Economy : स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं. भारत की संस्कृति ऋषि, कृषि और पशुपालन के साथ ही हस्तशिल्प पर आधारित रही है. निःसंदेह भारत की संस्कृति के मूल तत्वों में सबसे महत्वपूर्ण आत्मनिर्भरता ही है. भारत के महान अर्थशास्त्री ‘चाणक्य’ ने बताया है कि जो व्यक्ति दूसरे पर आश्रित होता है, उसका जीवन कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकता और वह चलती-फिरती लाश के समान होता है. इसलिए परंपरा में आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और इसके माध्यम से समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार व गांव की व्यवस्था प्रशासित और शासित होती रही है.

आधुनिक भारत में स्वावलंबन, ग्राम विकास और आत्मनिर्भरता पर सबसे अधिक जोर महात्मा गांधी ने दिया. उनके बाद इस विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य विनोबा भावे, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ राम मनोहर लोहिया, दत्तोपंत ठेंगड़ी और धर्मपाल जैसे चिंतकों ने भारतीय समाज को प्रबोधित किया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान केंद्र सरकार भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता पर विशेष ध्यान दे रही है.


गांवों को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार ने दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की शुरुआत की है. इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देशभर में ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है. संस्कृति की प्रकृति वहां के वातावरण पर आधारित होती है. भारत की जलवायु समशीतोष्ण है. इसलिए यहां की संस्कृति पर उसका स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है. आज हम जिस प्रकार की खेती कर रहे हैं, वैसी खेती के लिए हमारे पूर्वजों ने एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक पद्धति विकसित की. उन्होंने मिट्टी, पानी, जीवों, वृक्षों की सुरक्षा, यहां तक कि कीट-पतंगों की सुरक्षा पर भी संवेदनशील और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया. यदि इस प्रकार की सुरक्षित खेती को आत्मसात कर उसमें नवीन प्रयोग सम्मिलित किये जायें, तो विकास की बेहतर अवधारणा प्रकट होगी.

व्यक्ति, समाज, देश, दुनिया और ब्रह्मांड, सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. व्यक्ति समष्टि का एक छोटा रूप है. इसकी क्रिया और प्रतिक्रिया ब्रह्मांड तक को प्रभावित करती है. इसलिए महात्मा गांधी ने अहिंसक कार्य के सिद्धांत को प्रतिपादित किया. वे बड़े-बड़े हिंसक कारखानों के विरोधी थे. उन्होंने कुटीर उद्योग को अहिंसक उद्योग बताया. उन्होंने मानव के विकास की परिभाषा को ही बदल कर प्रस्तुत किया. आज दुनिया जहां खड़ी है, वहां कई समस्याएं उसको घेरे हुए है. हालांकि उत्तर आधुनिक और भौतिकवादी चिंतक इस बात से सहमत नहीं हैं.


स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता तभी संभव है, जब व्यक्ति अपने कौशल का विकास कर अपने कौशल के माध्यम से आवश्यकता की सभी चीजों को प्राप्त करे. ईशावास्योपनिषद में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि ‘जो व्यक्ति त्याग के बिना भोग करता है, वह मानव के आदर्श मूल्य के खिलाफ है. इसलिए भोग त्याग की कसौटी पर ही होना चाहिए.’ भारत में त्याग के साथ भोग करने की परंपरा अनादि काल से रही है. इस कारण भारत की ग्रामीण व्यवस्था इतनी सुदृढ़ और सुव्यवस्थित थी कि उस पर बाहरी किसी शक्ति का प्रभाव ही नहीं पड़ता था.

भारत में यह व्यवस्था लंबे समय तक रही, पर बाहरी आक्रांताओं के कारण व्यवस्थाएं टूटीं और उसका परिणाम आज हमें देखने को मिल रहा है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जब हम बात करते हैं, तो आधुनिक अर्थशास्त्री गांव को कम करके आंकते हैं. उन्हें बड़े-बड़े कल-कारखानों एवं उद्योगों पर भरोसा होता है. उनका मानना है कि इन कल-कारखानों से ही विकास संभव है और देश की प्रगति होती है, पर कोरोना ने इस चिंतन को झूठा साबित कर दिया. जब बड़े-बड़े उद्योग बंद हो गये, तब भारत को भारत के गांवों ने ही बचाया. करोड़ों की संख्या में कामगार जब गांव आये, तब गांव ने ही उनका संपोषण और संवर्धन किया. यह साबित करता है कि देश के गांव यदि स्वावलंबी और मजबूत हैं, तो अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनी रहेगी.


यदि ग्रामीण क्षेत्र आत्मनिर्भर, स्वावलंबी नहीं हैं, वहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, तो देश की अर्थव्यवस्था कभी मजबूत नहीं हो सकती. अभी हाल ही में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ रघुराम राजन ने कहा कि ‘भारत को चीन बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. अब विनिर्माण का क्षेत्र धीरे-धीरे सिकुड़ने वाला है और सेवा के क्षेत्र का विस्तार होने वाला है, इसलिए भारत को सेवा क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए.’ यह बयान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की ओर इशारा करता है, साथ ही, एक व्यक्ति को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने की भी वकालत करता है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि कौशल और तकनीक वह ताकत है, जो व्यक्ति, समाज और देश की दिशा बदल सकता है. दुनिया का कोई भी देश अपने नौजवानों की कार्य क्षमता और कौशल की बदौलत ही मजबूत बनता है. हमें भी इस दिशा में प्रयास करना चाहिए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए सुदृढ़ीकरण की योजना बनानी चाहिए. अपनी युवा ताकत को आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की दिशा में प्रेरित करना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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